acn18.com कोरबा/ राख और कोरबा एक दूसरे के पूरक हो गए हैं। राखड़ का शहर कह दीजिए तो कोरबा अपने आप राख में अपना अक्स दिखाने लगता है। इसी राख ने फिर एक महिला की जान ले ली। इस दुर्घटना से सवाल उठने लगा है कि क्या कोरबा का कोई माई बाप नहीं रह गया है।
विद्युत संयंत्रों से निकलने वाली राख जिसे हम राखड़ कहा करते हैं, ने कोरबा वासियों का जीना मुहाल कर दिया है। जल थल नभ तीनों को प्रदूषित करने वाली राख अब प्रत्यक्ष मौत का भी कारण बन रही है। रखड़ से भरे भीमकाय डंपर वा टिपर सड़क पर बेतहाशा भागते देखे जाते हैं। यह जिस मार्ग से गुजरते हैं उस क्षेत्र को प्रदूषित करने में कोई कोर कसर बाकी नहीं रखते।
उड़ती राख उनके आसपास से गुजरने वाले वाहन चालकों के लिए दुर्घटना का कारण बनती है। अक्सर लोग आंख में राख चली जाने के कारण लड़खड़ा कर दुर्घटना का शिकार हो जाते हैं। राख ढोने वाले वाहनो का कहीं से भी मुड़ जाना और कहीं भी खड़े हो जाना भी दुर्घटना को न्योता देते हैं। ऊर्गा रिसदी बायपास मार्ग जहां से सर्वाधिक राखड़ भरे वाहन गुजरते हैं अक्सर रक्त रंजित दिखाई देता है। चार दिन पहले ही खड़े ट्रक से बचते एक युवक की गाड़ी स्लिप हो गई थी और वह चंद सेकंड में ही कैसे मौत का ग्रास बन गया था यह देखकर लोग कांप गए थे । बुधवार की शाम एक शिक्षिका भी स्कूल से घर नहीं पहुंची क्योंकि राखड़ भरे एक ट्रक चालक ने रोशनी टंडन को परलोक पहुंचा दिया
आए दिन लोग मौत का ग्रास बन रहे हैं। रखड़ के कारोबार में जो लोग लगे हैं वह मामूली लोग नहीं है। तभी तो उनकी कारगुजारियों पर अंकुश लगाने की कोई हिम्मत नहीं कर पा रहा है। सड़क के किनारे, नदियों के तट पर ,वृक्षों के बीच ,स्कूल कॉलेज के आसपास कहीं भी यह राख डाली जा रही है लेकिन मजाल है कि पर्यावरण संरक्षण मंडल अथवा अन्य जिम्मेदार विभाग के लोग राखड़ परिवहन में लगे लोगों के विरुद्ध कोई कार्रवाई करने की जुर्रत करते।