spot_img

जब कलाम की अगुआई में पोखरण में पांच विस्फोटों के साथ आपरेशन ‘शक्ति’ हुआ था सफल

Must Read

ACN18.COM / स्वाधीनता के अमृत महोत्सव के अवसर पर राष्ट्र की उपलब्धियों का अवलोकन करने पर पाते हैं कि कई क्षेत्रों में भारत ने इतनी प्रगति की, जिसकी कल्पना स्वतंत्रता के समय की भी नहीं जा सकती थी। एक ऐसा ही क्षेत्र है परमाणु ऊर्जा का। जो देश सैकड़ों वर्षों तक पराधीनता की जंजीर में जकड़ा रहा, वह 75 वर्ष में परमाणु ऊर्जा उत्पादन के क्षेत्र में न केवल स्वावलंबी बना बल्कि आज दूसरे देश भी भारत की ओर आशा भरी नजरों से देख रहे हैं।

- Advertisement -
1945 में द्वितीय विश्वयुद्ध के समय अमेरिका ने जापान पर जब अणु बम गिराया था, उसी समय भारत के होमी जहांगीर भाभा ने भारत को परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्र बनाने का संकल्प कर लिया था। उनके प्रयास से 1945 में टाटा ट्रस्ट ने मुंबई में टाटा इंस्टीट्यूट आफ फंडामेंटल रिसर्च की स्थापना की। भाभा ने पंडित जवाहर लाल नेहरू को परमाणळ् ऊर्जा का महत्व बताया, जिससे जवाहर लाल नेहरू सहमत हुए। देश में एटामिक एनर्जी आयोग (ए.ई.सी.) का गठन हुआ और भाभा इसके पहले चेयरमैन बने। होमी जहांगीर भाभा, सारा भाई, पी.के.आयंगर तथा राजा रमन्ना, जिन्हें फादर आफ द बम भी कहा जाता है, अपने अभियान में आगे बढ़ने लगे। जवाहर लाल नेहरू ने डिपार्टमेंट आफ एटामिक एनर्जी को आर्थिक स्वतंत्रता प्रदान कर दी। तब तक ‘चीन परमाणु बम की तैयारी कर रहा है’-ऐसी गुप्त सूचनाएं मिलने लगी थीं। भाभा चाहते थे कि जवाहर लाल नेहरू भी देश में परमाणु बम बनाने की अनुमति प्रदान करें। तब 1962 में प्रो. आर. के. असुदी समिति बनाई गई। जवाहर लाल नेहरू के निधन और बाद में भाभा के निधन से भारत के परमाणु कार्यक्रम में ठहराव आ गया।
सामना खुली चेतावनी का: अमेरिका, रूस, चीन, फ्रांस, जर्मनी, ब्रिटेन जैसे देशों ने जब परमाणु परीक्षण किया, तब उन देशों के नागरिकों ने उसका स्वागत किया वहीं दूसरी तरफ भारत को न केवल देश के बाहर के विरोध का सामना करना पड़ा बल्कि बाहर से ज्यादा देश के अंदर का विरोध झेलना पड़ा। परमाणु हथियारों से संपन्न अमेरिका भारत पर दबाव बना रहा था कि भारत व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि (सीटीबीटी) पर हस्ताक्षर करे, जिसके अनुसार भारत परमाणु बम का निर्माण नहीं करेगा। अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने मई 1994 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव से मुलाकात में स्पष्ट कर दिया था, ‘भारत ऐसा कुछ भी न करे जिससे क्षेत्र में हथियारों की होड़ शुरू हो जाए।’ इशारा साफ था कि भारत परमाणु परीक्षण न करे। तत्कालीन वित्त मंत्री मनमोहन सिंह भी इसके पक्ष में नहीं थे। हालांकि प्रधानमंत्री राव ने ए.ई.सी. के चेयरमैन चिदंबरम को परमाणु परीक्षण करने हेतु तैयारी शुरू कर देने का निर्देश दे दिया था। इसी क्रम में अमेरिकी राजदूत वाइजनर ने भी प्रधानमंत्री सचिवालय और विदेश मंत्रालय को दो टूक शब्दों में चेतावनी दी कि भारत ऐसा कुछ भी न करे जिससे अमेरिका-भारत संबंधों पर असर पड़े। 1996 में लोकसभा का चुनाव होने वाला था तथा देश के बाहर और खळ्द राव के मंत्रिमंडल के सहयोगी विरोध में थे, इस वजह से उस वक्त परमाणु परीक्षण नहीं हो पाया।
मिल गई शक्ति परमाणु की: 16 मई,1996 को जब अटल बिहारी वाजपेयी का प्रधानमंत्री पद के लिए शपथ ग्रहण समारोह था, पी.वी. नरसिम्हा राव ने भेद न खुलने के डर से हाथ से लिखा एक नोट अटल जी को दिया, जिसमें लिखा था कि- कलाम से बात करें। वे एन (न्यूक्लियर) के बारे में सब कुछ जानते हैं। अटल जी ने अगले ही दिन कलाम साहब से मिलकर उन्हें परीक्षण करने हेतु तैयारी करने को कहा, पर दुर्भाग्यवश 13 दिन में ही अटल जी की सरकार चली गई। इसके बाद नए प्रधानमंत्री एच.डी. देवगौड़ा पर तत्कालीन विदेश मंत्री इंद्र कळ्मार गुजराल और वित्त मंत्री चिदंबरम के दबाव तथा सरकार को समर्थन दे रहे वामपंथियों की सहमति नहीं होने की वजह से परमाणु परीक्षण नहीं हो पाया। राजनीति की वजह से भारत के परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में स्वावलंबी बनने की ओर बढ़ रहे कदम ठिठक गए थे। 1998 में अटल बिहारी वाजपेयी दूसरी बार प्रधानमंत्री बने। कलाम साहब के अनुरोध पर उन्होंने परमाणु परीक्षण की अनुमति दे दी। इसकी तैयारी की भनक भी किसी को नहीं लगी। इसके बाद अमेरिकी गळ्प्तचर एजेंसी सी.आइ.ए. की आंखों में धूल झोंकते हुए ‘आपरेशन शक्ति’ में एक, दो नहीं बल्कि पांच सफल परमाणु परीक्षण हुए।
बढ़ रही है हिस्सेदारी: परमाणु सैन्य शक्ति संपन्नता के साथ-साथ भारत ने परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में भी अपनी क्षमता बखूबी बढ़ाई। 1969 में देश का पहला परमाणु विद्युत गृह महाराष्ट्र के पालघर जिले में स्थापित किया गया था। 1970 से देश में परमाणु ऊर्जा से बिजली बनाने का कार्य आरंभ हुआ। अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्रित्व काल में परमाणु ऊर्जा से बिजली उत्पादन की हिस्सेदारी सबसे अधिक रही थी और यह साढे़ तीन प्रतिशत से अधिक थी। आज देश में आठ परमाणु ऊर्जा संयंत्र काम कर रहे हैं। इन आठ संयंत्रों में 22 परमाणु रिएक्टर कार्यरत हैं। इन परमाणु संयंत्रों की कुल क्षमता 6,780 मेगावाट है। परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में स्वावलंबन की दिशा में भारत में लगातार काम हो रहा है। 2017 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने 700 मेगावाट के दस स्वदेशी प्रेशराइज्ड हेवी वाटर संयंत्र लगाने की मंजूरी दी थी। इसकी कुल लागत एक लाख करोड़ रुपए से अधिक की होगी। अगले वर्ष कर्नाटक के कैगा में सात सौ मेगावाट के संयंत्र की तैयारी है। परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में भारत का यह अब तक का सबसे बड़ा कदम होगा, जब इतनी बड़ी संख्या में परमाणु ऊर्जा संयंत्रों को शक्तिशाली बनाने का कार्य किया जाएगा।
कह गए बात पते की: डा. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम और वाई एस राजन ने ‘भारत 2020 और उसके बाद’ पुस्तक के माध्यम से भारत की रक्षा और सुरक्षा के लिए तीन बातों पर बल दिया था- सुरक्षा बलों का आधुनिकीकरण, रक्षा उत्पादन का स्वदेशीकरण तथा साइबर सुरक्षा के अलावा राष्ट्रीय प्रयोगशालाओं, भारतीय उद्योगों के अनुसंधान एवं विकास के साथ बौद्धिक संपति अधिकार को सावधानीपूर्वक बचाना। भारत को भी उभरती प्रौद्योगिकी की न केवल बराबरी करनी है बल्कि उससे आगे निकलना है। अत: हमें भी ‘विजन 2050’ तैयार कर उस पर अमल शुरू कर देना चाहिए। परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में एक ड्राफ्ट नीति तैयार की गई है। उसको और परिष्कृत करते हुए, उस पर समय के अनुरूप निर्णय लेकर देश को परमाणु संपन्न शक्तिशाली राष्ट्र बनाने की दिशा में लगातार काम करना होगा।
चलता रहे विकास का क्रम: वर्तमान समय में युद्ध का पारंपरिक स्वरूप बदल गया है। आज के युग में परमाणु बम शांति और सुरक्षा का एक सशक्त रक्षा कवच है। रूस-यूक्रेन युद्ध में परमाणु हथियार रखने वाले नाटो देश खुलेआम युद्ध में शामिल होने से इसलिए डर रहे हैं क्योंकि उन्हें इस बात का भय सता रहा है कि इससे परमाणु युद्ध शुरू हो जाएगा। आज जब पूरी दुनिया परमाणु ऊर्जा के साथ-साथ ऊर्जा के अन्य वैकल्पिक माध्यमों को अपनाने के लिए आगे बढ़ रही है तो स्वाधीनता के अमृत काल में भारत को भी वैकल्पिक ऊर्जा की राह पर चलने के साथ-साथ देश के परमाणु संयंत्रों का भी लगातार विकास करना होगा।
दंग रह गई दुनिया: 1974 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के समय भारत ने राजस्थान के पोखरण में पहला परमाणु परीक्षण किया। इसके बाद 11 और 13 मई, 1998 को पोखरण में पांच सफल परमाणु परीक्षणों का इतिहास लिखा गया। उस समय अमेरिकी गुप्तचर एजेंसी सी.आइ.ए. के चार उपग्रह दिन-रात भारत पर नजर रख रहे थे। भारतीय विज्ञानियों ने अमेरिकी जासूसी उपग्रहों को योजना की भनक तक नहीं लगने दी। जब सी.आइ.ए. को विश्वास हो गया कि भारत परमाणु परीक्षण नहीं करने वाला है तब हमारे विज्ञानियों ने सफलतापूर्वक परीक्षण किया। सी.आइ.ए. निदेशक जार्ज टेनेट को समाचार माध्यमों से पता चला कि भारत ने परमाणु परीक्षण किया है। कई देशों ने भारत पर आर्थिक प्रतिबंध लगाया पर भारत झुका नहीं। भारत ने अपने विज्ञानियों की सफलता को सम्मान देने के लिए 11 मई को ‘राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस’ घोषित किया।
377FansLike
57FollowersFollow
377FansLike
57FollowersFollow
Latest News

पालतु कुत्ते के चक्कर में दो भाईयों ने एक युवक को पीटा,पुलिस से की गई शिकायत

Acn18.com/कोरबा के पोड़ीबहार क्षेत्र में दो भाईयों ने मिलकर एक एलआईसी एजेंट की जमकर पिटाई कर दी। मारपीट की...

More Articles Like This

- Advertisement -