रविवार, 4 दिसंबर को गीता जंयती है। इस बार पंचांग भेद की वजह से अगहन शुक्ल एकादशी शनिवार और रविवार को रहेगी। द्वापर युग में महाभारत युद्ध की शुरुआत से ठीक पहले अर्जुन ने श्रीकृष्ण से कहा था कि मैं ये युद्ध नहीं करना चाहता। इतना कहकर अर्जुन ने धनुष-बाण रख दिए थे। ये घटना अगहन शुक्ल पक्ष की एकादशी की है।
श्रीमद् भागवत गीता के पहले अध्याय में जिक्र है कि अर्जुन ने श्रीकृष्ण के सामने युद्ध न करने की बात कही थी। दूसरे अध्याय में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को कर्म करते रहने का उपदेश दिया था। श्रीकृष्ण ने अर्जुन को समझाया था कि फल की चिंता किए बिना अपने कर्तव्य का पालन करना चाहिए। ये युद्ध धर्म और अधर्म के बीच है। जो लोग अधर्मी हैं, उनके साथ पूरी शक्ति के साथ तुम्हें युद्ध करना है, यही तुम्हारा कर्तव्य है।
श्रीकृष्ण ने गीता का उपदेश देकर अर्जुन की शंकाएं की थीं। गीता के तीसरे अध्याय में श्रीकृष्ण कहते हैं कि कोई भी व्यक्ति कर्म किए बिना अपने लक्ष्य तक नहीं पहुंच सकता है।
कर्म नहीं करना भी है एक कर्म
अगर कोई व्यक्ति कर्म नहीं करेगा तो उसके काम पूरे नहीं होंगे। कोई भी व्यक्ति किसी भी अवस्था में एक पल भी कर्म किए बिना नहीं रह सकता है। सभी लोग अपनी-अपनी प्रवृत्ति के अनुसार कर्म करते हैं। कर्म न करना भी एक कर्म ही है और इसका भी फल हमें भोगना होता है।
सिर्फ अपने कर्म पर लगाएं ध्यान
जो लोग अपनी इंद्रियों पर, अपने भावों पर, अपने मोह पर काबू रखते हैं और बिना किसी स्वार्थ के काम करते हैं, उन्हें सफलता के साथ ही सुख-शांति भी जरूर मिलती है। हमें सिर्फ अपने कर्म पर ध्यान लगाना चाहिए। कर्म न करने से कर्म करना अच्छा है। कर्म किए बिना किसी भी व्यक्ति के जन्म का उद्देश्य पूरा नहीं हो सकता है।
श्रीकृष्ण ने सूर्य को भी दिया था गीता का ज्ञान
श्रीमद् भगवद् गीता के चौथे अध्याय के पहले श्लोक में श्रीकृष्ण ने अर्जुन कहा है कि तुमसे पहले मैं कर्म योग का ये ज्ञान सूर्य को दे चुका हूं। सूर्य ने अपने पुत्र वैवस्वत मनु को और मनु ने अपने पुत्र राजा इक्ष्वाकु को गीता का उपदेश दिया था। इसके बाद ये ज्ञान ऋषियों तक पहुंचा, लेकिन अब इस बात को काफी समय हो गया है, इसलिए ये ज्ञान लुप्त हो गया है। इस कारण अब मैं ये ज्ञान तुम्हें दे रहा हूं।