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शिंदे मुख्यमंत्री बने रहेंगे, सुप्रीम कोर्ट का फैसला:उद्धव इस्तीफा न देते तो सरकार बहाल हो सकती थी; शिवसेना के 16 बागी विधायकों पर फैसला स्पीकर करें

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Acn18.com/सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को उद्धव बनाम शिंदे की शिवसेना का मामले को 7 जजों की बेंच को सौंप दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा उद्धव ठाकरे के फ्लोर टेस्ट का सामना नहीं किया। उन्होंने इस्तीफा दिया था। ऐसे में कोर्ट इस्तीफे को रद्द तो नहीं कर सकता है। हम पुरानी सरकार को बहाल नहीं कर सकते हैं।

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सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल से विधायकों की बातचीत में कहीं भी इस बात का संकेत नहीं था, जिसमें असंतुष्ट विधायकों ने कहा हो कि वह सरकार से समर्थन बाहर लेना चाहते हैं। राज्यपाल ने शिवसेना के एक गुट के विधायकों की बात पर भरोसा करके गलती कि उद्धव ठाकरे के पास विधायकों का बहुमत नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट की बड़ी बातें

  • 2016 का फैसला सही नहीं था। इसमें कहा गया था कि डिप्टी स्पीकर या स्पीकर के खिलाफ अयोग्यता का मामला है तो उसे कोई फैसला लेने का अधिकार नहीं होगा।
  • स्पीकर ने कोशिश नहीं की कि शिवसेना की ओर से शिंदे गुट के गोडावले आधिकारिक व्हिप हैं या फिर उद्धव गुट के प्रभु। स्पीकर को यह जरूर पता होना चाहिए कि राजनीतिक पार्टी ने किसे व्हिप चुना है।
  • स्पीकर ने शिंदे गुट वाले गोडावले को व्हिप नियुक्त किया, यह फैसला गैरकानूनी था। नवंबर 2019 में विधायकों ने एकमत होकर उद्धव ठाकरे को पार्टी का लीडर चुना था।
  • महाराष्ट्र में शिंदे और उनके गुट के 15 बागी विधायकों को अयोग्य ठहराए जाने के फैसले पर बड़ी बेंच को विचार करना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर विधायक सरकार से बाहर होना चाहते हैं तो वो केवल एक गुट बना सकते हैं। पार्टी के भीतरी झगड़े सुलझाने के लिए फ्लोर टेस्ट का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।

महाराष्ट्र में शिवसेना विधायकों की बगावत के बाद महाराष्ट्र विकास अघाड़ी गठबंधन सरकार पिछले साल जून में गिर गई थी। इसके बाद 30 जून को शिंदे ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। इसके खिलाफ उद्धव ठाकरे सुप्रीम कोर्ट गए। मामला पांच जजों की कॉन्स्टिट्यूशनल बेंच को ट्रांसफर हुआ। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस एमआर शाह, जस्टिस कृष्ण मुरारी, जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की बेंच इस पर फैसला सुना रही है।

पहले जान लेते हैं महाराष्ट्र की राजनीति से जुड़े इस केस में अब तक क्या हुआ…

  • 17 फरवरी को पीठ ने शिवसेना के उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे गुट की याचिकाओं पर सुनवाई की।
  • 21 फरवरी से कोर्ट ने लगातार 9 दिन यह केस सुना था।
  • 16 मार्च को सभी पक्षों की दलीलें पूरी होने पर कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया था।
  • उद्धव गुट की मांग पर कोर्ट ने कहा- उद्धव इस्तीफा दे चुके अब बहाली कैसे करें?
    सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के आखिरी दिन यानी 16 मार्च को इस बात पर आश्चर्य जताया था कि कोर्ट उद्धव सरकार की बहाली कैसे कर सकता है क्योंकि उद्धव ने फ्लोर टेस्ट के पहले ही इस्तीफा दे दिया था। उद्धव ने अपनी याचिका में मांग की थी कि राज्यपाल का जून 2022 का आदेश रद्द किया जाए जिसमें उद्धव से सदन में बहुमत साबित करने को कहा गया था। इस पर उद्धव गुट ने कहा कि यथा स्थिति (स्टेटस को) बहाल की जाए, यानी उद्धव सरकार बहाल की जाए जैसा कोर्ट ने 2016 में अरुणाचल प्रदेश में नबाम तुकी सरकार की बहाली के ऑर्डर में किया था।

    23 अगस्त को पांच जजों की बेंच को सौंप दिया केस
    23 अगस्त, 2022 को, तत्कालीन CJI एनवी रमना की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों वाली बेंच ने दोनों गुटों की याचिकाओं पर कानून से जुड़े कई प्रश्न तैयार किए थे और केस को पांच जजों की बेंच को रेफर कर दिया था। याचिकाओं में दलबदल, विलय और अयोग्यता कई संवैधानिक प्रश्न उठाए गए हैं।

    शिंदे और उद्धव की ओर से इन वकीलों ने की पैरवी
    मामले में मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाले गुट की ओर से वरिष्ठ वकील नीरज किशन कौल, हरीश साल्वे, महेश जेठमलानी और अभिकल्प प्रताप सिंह ने दलीलें पेश की थीं। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने मामले में राज्यपाल ऑफिस की पैरवी की। वहीं उद्धव गुट कि तरफ से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल, अभिषेक मनु सिंघवी, देवदत्त कामत और अधिवक्ता अमित आनंद तिवारी ने दलीलें पेश कीं।

    उद्धव गुट ने राज्यपाल का आदेश रद्द करने की मांग की थी
    उद्धव गुट ने मांग की थी कि राज्यपाल के जून 2022 के फ्लोर टेस्ट करने के आदेश को रद्द किया जाए। राज्यपाल का फैसला लोकतंत्र के लिए खतरनाक है और यह देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए घातक है।

    उद्धव के वकील कपिल सिब्बल ने कहा था कि विधायिका और राजनीतिक दल के बीच संबंधों में राजनीतिक दल की प्रधानता होती है। सिब्बल ने तर्क दिया कि संविधान किसी भी गुट को मान्यता नहीं देता है चाहे बहुमत हो या अल्पमत। सिब्बल ने आगे तर्क दिया कि विधायकों की सरकार से असहमति सदन के बाहर थी सदन के अंदर नहीं।

  • CJI चंद्रचूड़ ने पूछा- क्या राज्यपाल समर्थन वापस लेने वालों की बात नहीं मान सकते?
    CJI चंद्रचूड़ ने उद्धव ठाकरे खेमे के वकील से जानना चाहा था कि क्या राज्यपाल उन सदस्यों की बात नहीं मान सकते जो सरकार से समर्थन वापस लेना चाहते हैं। CJI ने कहा कि विधायकों का एक गुट था जो तत्कालीन उद्धव सरकार का समर्थन नहीं करना चाहता था। उसे अयोग्यता का सामना करना पड़ सकता है। इससे सदन की स्ट्रेंथ पर असर हो सकता है।

    सिब्बल ने कहा ऐसा तब होता था जब दसवीं अनुसूची नहीं थी
    कपिल सिब्बल ने जवाब दिया कि ऐसा तब होता था जब संविधान की दसवीं अनुसूची नहीं होती थी। उन्होंने कहा कि राज्यपाल किसी गुट के की मांग आधार पर विश्वास मत लेने को नहीं कह सकते, क्योंकि विश्वास मत की मांग गठबंधन पर आधारित होती है। महाराष्ट्र में​​​​​ अचानक कुछ विधायकों ने समर्थन वापस लेने का फैसला किया है।

    उद्धव गुट ने कहा था कि अगर महाराष्ट्र में शिंदे सरकार चलने दी गई तो इसके देश के लिए दूरगामी परिणाम होंगे। क्योंकि तब किसी भी सरकार को गिराया जा सकता है। उद्धव गुट ने यह भी कहा था कि शिंदे गुट के पास दसवीं अनुसूची के मामले में कोई तर्क नहीं है।

    उद्धव सरकार के साथ नहीं रहना चाहता था शिंदे गुट
    सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने महाराष्ट्र के राज्यपाल की ओर से बहस की। उन्होंने कोर्ट बताया कि शिंदे गुट के विधायकों ने राज्यपाल को लिखा था कि वे उद्धव सरकार के साथ बने रहना नहीं चाहते। इस पर राज्यपाल ने उद्धव ठाकरे को सदन में बहुमत साबित करने के लिए कहा था।

    शिंदे गुट ने कहा- शक्ति परीक्षण राजभवन में नहीं सदन में होता है
    शिंदे गुट ने सुप्रीम कोर्ट के सामने तर्क दिया था कि शक्ति परीक्षण राजभवन में नहीं होता बल्कि सदन के पटल पर होता है। राज्यपाल ने शक्ति परीक्षण का आदेश देकर कुछ भी गलत नहीं किया। शिंदे गुट की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील एनके कौल ने कहा कि राजनीतिक दल और विधायक दल आपस में जुड़े हुए हैं।

    उद्धव ठाकरे गुट का यह तर्क कि अन्य गुट विधायक दल का प्रतिनिधित्व करते हैं न कि राजनीतिक दल का, एक भ्रम है। उन्होंने यह भी कहा कि असहमति लोकतंत्र की पहचान है।

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