Acn18.com/आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्टेशन में चंद्रयान-3 की लॉन्चिंग के लिए अपग्रेडेड बाहुबली रॉकेट यानी लॉन्च व्हीकल मार्क-3 (MV-3) तैयार है। MV-3 का लॉन्चिंग सक्सेस रेट 100% है।
मिशन चंद्रयान-3 का काउंटडाउन आज दोपहर से शुरू होगा और लॉन्चिंग शुक्रवार दोपहर 2:35 बजे सतीश धवन स्पेस सेंटर से होगी।
मिशन की सफलता के लिए ISRO के वैज्ञानिक तिरूपति वेंकटचलापति मंदिर पहुंचे। पूजा के लिए वैज्ञानिक चंद्रयान-3 का मिनिएचर मॉडल भी अपने साथ ले गए।
चंद्रयान 24-25 अगस्त को चांद पर उतरेगा। अगले 14 दिन रोवर लैंडर के चारों ओर 360 डिग्री में घूमेगा और कई परीक्षण करेगा। रोवर के चलने से पहिए के जो निशान चंद्रमा की सतह पर बनेंगे, उनकी तस्वीर भी लैंडर भेजेगा।
भारत चंद्रमा पर राष्ट्रध्वज पहुंचाने वाला चौथा देश बनेगा ही, चांद के दक्षिणी ध्रुव के करीब पहुंचने वाला पहला देश भी होगा। यह वही इलाका है जहां चंद्रयान-1 के दौरान मून इंपैक्ट प्रोब छोड़ा था और इसरो ने पानी होने का पता लगाया था। यहीं चंद्रयान-2 की क्रैश लैंडिंग हुई थी।
इतना अहम है चांद
- चांद के गुरुत्व बल से पृथ्वी धीमी गति से घूमती है। चांद न हो तो पृथ्वी तेजी से घूमेगी, दिन जल्दी बीतेगा। दिन महज छह घंटे का होगा।
- चांद न हो तो हम न चंद्र ग्रहण देख पाएंगे, न ही सूर्य ग्रहण।
- जब पृथ्वी पर चंद्र ग्रहण होता है, तब चांद पर सूर्य ग्रहण होता है।
- धरती से सूर्य-चंद्रमा एक आकार के दिखते हैं। सूर्य की तुलना में पृथ्वी से 400 गुना करीब होने से चंद्रमा सूर्य के बराबर दिखता है।
- धरती से चांद का सिर्फ 55% से 60% हिस्सा ही दिखाई देता है।
- चांद पर अब तक 12 मानव जा चुके हैं। हालांकि, 1972 के बाद पिछले 51 साल से कोई मानव चांद की सतह पर नहीं उतरा।
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इस बार लैंडर में चार ही इंजन, पांचवां हटाया
इस बार लैंडर में चारों कोनों पर लगे चार इंजन (थ्रस्टर) तो होंगे, लेकिन पिछली बार बीचोंबीच लगा पांचवां इंजन हटा दिया गया है। इसके अलावा फाइनल लैंडिंग केवल दो इंजन की मदद से ही होगी, ताकि दो इंजन आपातकालीन स्थिति में काम कर सकें।इसी तरह इस बार ऑर्बिटर नहीं है, लेकिन प्रोपल्शन मॉड्यूल होगा जो लैंडर और रोवर से अलग होने के बाद भी चंद्रमा की परिक्रमा में घूमेगा और चंद्रमा से धरती पर जीवन के लक्षण पहचानने की कोशिश करेगा। भविष्य में इस डेटा का इस्तेमाल अन्य ग्रहों, उपग्रहों और तारों पर जीवन की खोज में हो सकेगा।
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चंद्रयान-2 की गलतियों से सीखकर चंद्रयान-3 को बेहतर बनाया
2019 में चंद्रयान-2 की आंशिक सफलता के बाद 4 साल में ISRO ने लगातार ऐसे परीक्षण किए, जिनसे चंद्रयान-3 की हर संभावित खामी से निपटा जा सके। मसलन, फेल होने पर क्या होगा और हल या विकल्प क्या हो सकते हैं। यह जानकारी ISRO के चेयरमैन एस. सोमनाथ ने दैनिक भास्कर के साथ शेयर की।उन्होंने बताया कि 2019 में हम सॉफ्ट लैंडिंग में असफल रहे थे। इसकी वजह यह थी कि खोजने के लिए हमारे पास सड़क हादसे की तरह मौके पर पहुंच हालात को जानने या फुटेज देखने का जरिया नहीं था। इसलिए चंद्रयान-2 मिशन के डेटा का विश्लेषण किया और उसके सिमुलेशन से देखा कि क्या गलत हुआ, कहां समस्या थी।