झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के बाद उनके भाई और दुमका से विधायक बसंत सोरेन की विधायकी का मामला भी राजभवन पहुंच गया है। सूत्रों की माने तो ECI ने झारखंड के राज्यपाल रमेश बैस को बसंत सोरेन की अयोग्यता के संबंध में को जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के 9A के तहत अपनी राय भेज दी है। अब राज्यपाल को चुनाव आयोग की राय पर फैसला लेना है।
इससे पहले 25 अगस्त को ही निर्वाचन आयोग ने हेमंत सोरेन की सदस्यता पर अपना फैसला झारखंड के राज्यपाल रमेश बैस को भेज दिया था, जिस पर 17 दिन बाद भी राज्यपाल की ओर से कोई निर्णय नहीं लिया गया है।
बसंत सोरेन के मामले में 29 अगस्त को आयोग में सुनवाई हुई थी। इस दौरान बसंत के अधिवक्ता ने आयोग से कहा कि उनकी विधानसभा सदस्यता रद्द करने से जुड़े इस मामले में सुनवाई उचित नहीं है। यह राज्यपाल के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता।
इस दौरान भाजपा के अधिवक्ता ने बताया था कि बसंत जिस माइनिंग कंपनी से जुड़े हैं, वह राज्य में खनन का काम करती है। ऐसे में यह संविधान के अनुच्छेद 191 (1) के तहत राज्यपाल के अधिकार क्षेत्र में है। BJP ने उनके खिलाफ चुनाव आयोग से शिकायत की थी। BJP का आरोप है कि बसंत सोरेन ने चुनाव के समय दिए गए शपथ पत्र में खनिज लीज लेने से जुड़े तथ्य छिपाए थे।
BJP ने की थी शिकायत
BJP की इस शिकायत के बाद गवर्नर ने यह मामला चुनाव आयोग को भेज दिया था। प्रदेश में विपक्षी दल BJP ने आरोप लगाया था कि बसंत सोरेन चंद्र स्टोन वर्क्स में पार्टनर हैं। साथ ही ग्रैंड माइनिंग कंपनी में भी साझेदार हैं। इस बाबत भाजपा ने राज्यपाल से शिकायत की थी । साथ ही निर्वाचन आयोग से परामर्श लेकर अयोग्य ठहराने की कार्रवाई अमल में लाने का आग्रह किया था।
इलेक्शन कमीशन ने भेजा था बसंत सोरेन को नोटिस
राज्यपाल की ओर से परामर्श मांगने पर आयोग ने बसंत को नोटिस भेजा था। इस मामले में सोरेन को आयोग के समक्ष अपना पक्ष रखने के लिए 5 मई 2022 को नोटिस दिया गया था तब बसंत सोरेन ने 138 पन्नों में अपना जवाब चुनाव आयोग को सौंपा था। अपने जवाब में उन्होंने दावा किया था कि उनके खिलाफ ऑफिस ऑफ प्रॉफिट का कोई मामला नहीं बनता है।
CM की सदस्यता मामले पर अभी तक संशय बरकरार
वहीं CM सोरेन से जुड़े ऑफिस ऑफ प्रॉफिट मामले को लेकर भी अभी संशय बरकरार है। इस संबंध में इलेक्शन कमीशन ने 25 अगस्त को अपना मंतव्य राजभवन भेज दिया है। उस पर गवर्नर ने फैसला नहीं सुनाया है। झारखंड में सियासी उठापटक के चलते हेमंत सोरेन को UPA गठबंधन के विधायकों को टूट से बचाने के लिए रायपुर ले जाना पड़ा था। फिर उन्होंने बहुमत दिखाने के लिए विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर विश्वास मत हासिल किया।