संकेत साहित्य समिति द्वारा पर्यावरण पर केन्द्रित काव्य गोष्ठी
वृंदावन हॉल रायपुर में संकेत साहित्य समिति के तत्वावधान में डॉ. डॉ.सुधीर शर्मा के मुख्य आतिथ्य, डॉ.चितरंजन कर की अध्यक्षता, मीर अली मीर के सारस्वत आतिथ्य एवं डॉ.मृणालिका ओझा एवं डॉ.सीमा निगम के विशिष्ट आतिथ्य में पर्यावरण प्रबंधन एवं प्रदूषण नियंत्रण विषय पर केन्द्रित काव्य गोष्ठी
का आयोजन किया गया। इस अवसर पर प्रसिद्ध उद्यमी एवं समाजसेवी शशि वरवंडकर,दिव्य छत्तीसगढ़ के संपादक शशांक खरे ,गायक सुनील सोनी, गणेश दत्त झा एवं ऋतुराज साहू विशेष रूप से उपस्थित रहे। माँ सरस्वती की प्रतिमा पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्जवलन के पश्चात अतिथियों का अंगवस्त्र एवं श्रीफल से स्वागत किया गया।कार्यक्रम के आरंभ में विषय की प्रस्तावना देते हुए संकेत साहित्य समिति के संस्थापक एवं प्रांतीय अध्यक्ष डॉ माणिक विश्वकर्मा ‘नवरंग’ ने पर्यावरण प्रबंधन एवं प्रदूषण नियंत्रण विषयक नियम कानूनों का उल्लेख करते हुए कहा कि स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मन का विकास होता है। कार्यक्रम अध्यक्ष भाषाविद् एवं वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. चितरंजन कर ने कहा कि-हमारा आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक क्षेत्र सुदृढ़ होना चाहिए क्योंकि मानसिक प्रदूषण पर्यावरण प्रदूषण से भी अधिक घातक होता है। मानसिकता सहीं होने से पर्यावरण प्रदूषण की समझ पुख़्ता होती है। मुख्य अतिथि लब्धप्रतिष्ट भाषाविद् एवं छत्तीसगढ़ मित्र के संपादक डॉ.सुधीर शर्मा ने पर्यावरणीय गोष्ठी की प्रशंसा करते हुए कविता की तात्विकता पर प्रकाश डाला एवं काव्य मनोरंजन ही नहीं संदेशपरक भी होना चाहिए कहा।पल्लवी झा रूमा के कुशल संचालन में रायपुर एवं आसपास से आए जिन पैंतालीस से रचनाकारों ने अपनी कविताएँ प्रस्तुत कीं उनमें -डॉ. चितरंजन कर,डॉ.सुधीर शर्मा, मीर अली मीर मीर,डॉ.माणिक विश्वकर्मा ‘नवरंग’, डॉ. मृणालिका ओझा ,डॉ.सीमा निगम ,प्रो.सी.एल.साहू, लतिका भावे, रामेश्वर शर्मा, श्रवण चोरनेले, राजेन्द्र रायपुरी, डॉ.रविन्द्र सरकार, हरीश कोटक,नर्मदा प्रसाद विश्वकर्मा, पल्लवी झा, सिद्धार्थ कुमार श्रीवास्तव, प्रज्ञा त्रिवेदी, हरीश कोटक, ए.आर.देवांगन, प्रीति रानी तिवारी, शुभा शुक्ला निशा, राजेश चौहान, लोकनाथ साहू ललकार,सुषमा पटेल, पूर्वा श्रीवास्तव, सुमन शर्मा बाजपेयी ,युधिष्ठिर कुमार सिन्हा, शुभा शुक्ला, दिलीप वरवंडकर , राजेन्द्र ओझा,राजेन्द्र पांडे, लवकुश तिवारी, तीरबाला देवांगन,कुमार जगदलवी,भारती यादव मेघ आर.डी.अहिरवार,प्रदीप मिश्रा, मोनिका सोनी, इन्द्रदेव यदु ,गोपाल सोलंकी, उत्तम देवहरे, यशवंत यदु,राहुल साहू, एच.एल. चन्द्राकर, राखी विश्वकर्मा, माधुरी कर के नाम प्रमुख हैं। पढ़ी गई रचनाओं के कुछ अंश बानगी के तौर पर –
● हरियाली की गोद में, नव जीवन आधार।
पेड़ों की छाया तले, मिलता सब कुछ सार।।
सुषमा पटेल
● लगाओ,पेड़ हर ऑ॑गन, ये धरती, मुस्कुराएगी।
लगाकर, पूत सा पालो, हवा तब, शुद्ध आएगी।
राजेंद्र रायपुरी।
● पुरइन के पत्तों पर नाचे ज्यों बुंदिया। फुदक रही छज्जे पर, नन्ही गौरैया। सुरेन्द्र रावल
● इसमें धुआँ-ओ-धूल को मिश्रित न कीजिए
मौसम हसीन शह्र का दूषित न कीजिए
कहते हैं आप माँ इसे, सम्मान भी करो
गंगा में गन्दगी को प्रवाहित न कीजिए
आर डी अहिरवार
● सारे पेड़ों को मानवों ने काट डाला,
मेरे पथ-निशान, सारी पहचान चाट डाला।
डॉ रवींद्र नाथ सरकार
● कर दो श्रृंगारित मुझको, तुम फिर से,
हरा भरा मेरा दामन कर दो,
पेड़ लगाओ, नदियाँ बचाओ,
अब तो करुण पुकार मेरी तुम सुन लो।
भारती यादव मेघा
● शहर चबाता गांव जा रहा
जंगल चट कर रहे गांव।
टॉवर सारे पंक्षी निगलते
मैं भी गूंगा तुम भी चुप हो।
कुमार जगदली
● हम अपने पैरों पर ही कुल्हाड़ी मार रहे हैं
क्योंकि हरे भरे वृक्षों को ही काट रहे हैं।
● नदिया सागर से मिली,कहने दिल का हाल।
जर्जर काया हो गयी,चलती धीमी चाल।।
बड़ी दूर से आ रही, हरती सबकी प्यास।
गगरी नगरी बावली,सबको मुझसे आस।।
पल्लवी झा (रूमा)
● पर्यावरण की चिंता सबको /रक्षा कौन करेगा।
अटी पड़ी बारुद से धरती ,हरियर कौन करेगा ।।
जन कवि गोपाल जी सोलंकी
● वायु सदा जिउ राखनि है,
मनई पशु पेड़न का हितकारी।
पेंड़ परान समान हमैं,
सबका उइँ देंइँ हवा सुखकारी।।
नर्मदा प्रसाद विश्वकर्मा “तृण”
● बैठ खेत की मेड़ ,देख रहा था पेड़
बीज ने जब नाजुक जड़ों से, मिट्टी को पकड़ा था।
दिलीप वरवंडकर
● भैया सुनो रामचरण, सुना तँय भाई रामरतन,
चारों ओर ज़हर होगे परयावरण
राजेन्द्र पांडे
● वो मेरे पास बहुत छोटी सी उम्र में आया था
उसे देख मेरा मन बहुत ज्यादा हरसाया था
शुभा शुक्ला निशा
● पर्यावरण प्रदूषण की चर्चा चहुँओर है
पर्यावरण संरक्षण की चिंता चहुँओर है
पर्यावरण में असंतुलन का प्रभाव दुखद है
संपूर्ण मानवता के भविष्य के लिए दुखद है
डॉ. सीमा निगम
●पर्यावरण बचाइए, मन को मिले सुकून।
आँगन पेड़ लगाइए,सींचे दोनों जून।
खिले फले जैतून, जलवायु भी सही रहे…
माटी भी चन्दन लगे, दिल में खिले प्रसून।
श्रवण चोरनेले ‘श्रवण’
● मंत्री महोदय ने वन अधिकारियों से कहा, बड़ी खुशी की बात है, प्रकृति भी हमारे साथ है. हमने तो पौधरोपण करवाए थे, पर यहां तो घास उग आयी है. वन अधिकारी ने कहा, आप की ही जुबानी है, आपके निर्देश पर लिखी गई कहानी है।
शशांक खरे
●पेट बर हंकर के हपटत झपटे लपटपट।
मछरी सोचन लगिस काय फंसगे अटपट।
उलट पुलट छटपटा के होगे बेसहारा।
मरत भूख बिचारी मछरी खोजन लगिस चारा।
रामेश्वर शर्मा
● समय ही नहीं /उनके लिए /सुरक्षित और /
आरक्षित रखी जानी चाहिए जगह /उनका होना
किसी पशु या /पंछी का होना ही नहीं है /
उनके होने में ही शामिल है /पृथ्वी का
पृथ्वी की तरह बचे रहना।
राजेंद्र ओझा
● मैं विशाल बरगद वृक्ष का
बना हुआ बोन्साई
काट दिए जड़, टहनी मेरे
माली को भी दया न आई l
पूर्वा श्रीवास्तव
● बाग तालाब, मैदान गली।
बचपन से सब, साथ चली।
कितना सुख हमे दिया इन्होंने।
बचपन से पाला हमे इन्होंने।
क्यो न इनको,भव्य बनाये।
आओ आओ देश अपना स्वर्ग बनाएं।
जग स्वछ बनाएं,मन स्वस्थ बनाये।
.लवकुश तिवारी
● देशकाल छोड़ गईं ऋतुएँ स्वच्छंद
सुमनों में किसी तरह बच गई सुगंध।
डॉ.चितरंजन कर
● अच्छे फसल की उम्मीद की बिमारी है
गगनचुंबी इमारतों में ,धुआं है,चिंगारी है
परिंदों ने बस्तियाँ छोड़ दीं, हवा में खुमारी है
मीर अली मीर
● कुछ घरों में आज भी हैं / तोते और पिंजरे /तोते आज भी रटाए जाते हैं राम राम ..
● पेड़ों से जीवन है तुम उसे न काटना,
बाँट सको तो घर घर हरियाली बाँटना।
डॉ.माणिक विश्वकर्मा ‘नवरंग’
कार्यक्रम के अंत में समिति के महासचिव प्रो.सी.एल. साहू ने आमंत्रित अतिथियों एवं रचनाकारों के प्रति आभार व्यक्त किया।
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