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राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र-पुत्रियों की बस्तियों तक पीएम जनमन योजना से फैली विकास के उजाले की किरण

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acn18.com/  डॉ. ओम डहरिया, सहायक जनसम्पर्क अधिकारी रायपुर। विशेष पिछड़ी जनजाति के लोगों को राष्ट्रपति जी के दत्तक पुत्र-पुत्रियां कहा जाता था लेकिन आजादी के कई साल बाद तक भी इनकी बस्तियों में शुद्ध पेयजल भी नहीं था। घास फूस के घरों में बिजली कहां से पहुंच पाती और शिक्षा तथा स्वास्थ्य सुविधाएं तो इनके लिए लक्जरी ही समझिये। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने इस परिस्थिति को पूरी संवेदनशीलता से समझा और उन्हें लगा कि इस परिस्थति को ठीक करने के लिए मामूली प्रयत्नों से कुछ नहीं होगा जब तक एक लक्ष्योन्मुखी वृहत योजना विशेष पिछड़ी जनजाति के लिए नहीं बनेगी तब तक इनके कल्याण की सूरत नहीं बनेगी। फिर उन्होंने पीएम जनमन योजना लाई और इस एक योजना से उजाले की किरण इन बस्तियों में फैल गई है। पक्के घरों में बिजली पहुंच रही है। बच्चों के लिए स्कूल खोले गये हैं और इन तक पहुंचने के लिए सड़कें भी बनाई जा रही हैं।

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इस योजना को शुरू हुए अभी एक साल का अरसा भी नहीं बीता है कि इस योजना के प्रभावी कार्यान्वयन से विशेष पिछड़ी जनजातियों के रहवासी इलाकों में विकास का उजियारा साफ-साफ दिखाई देने लगा है। इस उजियारे से जनजातीय समुदाय के लोगों में शासन के प्रति एक नया विश्वास जगा है और उनके चेहरे पर एक चमक दिखाई देने लगी है। पीएम जनमन योजना का उद्देश्य विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूहों के बीच विकास, समावेशिता और सशक्तिकरण को बढ़ावा देना है। यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के मार्गदर्शन और मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय के नेतृत्व में छत्तीसगढ़ सरकार जनजातीय समुदाय के लोगों की स्थिति को बेहतर बनाने और उनके रहवासी इलाकों में बुनियादी सुविधाएं की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए पूरी शिद्दत से जुटी हुई है।

छत्तीसगढ़ में डबल इंजन की सरकार है। इसके चलते पीएम जनमन के क्रियान्वयन में छत्तीसगढ़ देश के अग्रणी राज्यों में से एक है। शासन की विभिन्न योजनाओं के कन्वर्जेस के चलते छत्तीसगढ़ के जनजातीय समुदायों की जीवन स्तर और उनके रहवासी क्षेत्रों में तेजी से बदलाव दिखाई देने लगा है। पीएम जनमन योजना के तहत विशेष पिछड़ी जनजाति परिवारों को प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत पक्के मकान की स्वीकृति एवं निर्माण का काम तेजी से शुरू कर दिया गया हैं।

छत्तीसगढ़ में 42 जनजातियां और इसके 161 उपजातियां है। इस वर्ग में बिंझवार, सावरा, गोंड, मुरिया, हलबा, भतरा, भुंजिया, भूमिया (भूइया), बियार, कंवर, मझवार, माझी, मुण्डा, भैना, नगेसिया आदि विभिन्न जनजातियां आते है। इस वर्ग की जनजातियां जंगली उपज संग्रह, िशकार, आदिम कृषि के साथ-साथ बांस से टोकरी आदि बनाते है। इस समूह में कमार, कंडरा, धनवार, सोता, बैगा, माझी आदि आते है। भारत सरकार ने छत्तीसगढ़ के लिए पांच जनजातियों को विशेष पिछड़ी जनजाति घोषित किया है, जिसमें बैगा, कमार, पहाड़ी कोरवा, बिरहोर, अबूझमाड़ियां जनजाती आते हैं। छत्तीसगढ़ में पिछड़ी जनजाति की कुल जनसंख्या 3,10,625 है. इनमें से पहाड़ी कोरवा जनजाति की कुल जनसंख्या 1,29,429 है. छत्तीसगढ़ में पहाड़ी कोरवा जनजाति मुख्य रूप से जशपुर, सरगुजा, बलरामपुर, कोरबा, और रायगढ़ ज़िलों में पाई जाती है। पहाड़ी कोरवा प्राचीन समय में बेबर कृषि करते थे अर्थात जंगल में आग लगाकर ज़मीन साफ़ करते थे तथा बरसात के समय बीज छिड़क देते थे। पहाड़ी कोरवा स्त्री-पुरुष दैनिक मजदूरी हेतु ग्राम के अन्य जनजातियों के यहाँ कार्य करते हैं। ये मुख्यतः कृषि-मजदूरी एवं गड्ढे खोदने हेतु मजदूरी का कार्य करते हैं।

 

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