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रविवार को उत्पन्ना एकादशी पर करें विष्णु जी की पूजा:अगहन कृष्ण एकादशी पर प्रकट हुई थीं देवी एकादशी और किया था एक दैत्य का वध

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रविवार, 19 नवंबर को अगहन मास (मार्गशीर्ष) के कृष्ण पक्ष की एकादशी है। इसका नाम उत्पन्ना है, क्योंकि इसी दिन एकादशी नाम की एक देवी प्रकट हुई थीं। इस बार ये तिथि रविवार को होने से इस दिन विष्णु जी के साथ ही सूर्य की विशेष पूजा का शुभ योग बन रहा है।

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उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा कहते हैं कि सालभर की सभी एकादशियों के बारे में स्कंद पुराण के वैष्णव खंड में जिक्र है। इस खंड के एकादशी महात्म्य नाम का एक अध्याय है। इसमें सभी एकादशियों की जानकारी दी गई है। अगहन के कृष्ण पक्ष की एकादशी के संबंध में मान्यता है कि इस तिथि पर एक देवी प्रकट हुई थीं, जिन्हें एकादशी के नाम से जाना जाता है। इसी वजह से इस एकादशी का नाम उत्पन्ना पड़ा।

एकादशी ने किया था मूर नाम के असुर का वध

पुराने समय मूर नाम का एक असुर था। वह बहुत शक्तिशाली था और उसने देवताओं को पराजित करके स्वर्ग पर कब्जा कर लिया था। देवराज इंद्र मदद के लिए विष्णु जी के पास पहुंचे। विष्णु जी ने देवताओं की प्रार्थना सुनी और मूर दैत्य का वध करने का निश्चय किया। इसके बाद विष्णु जी और मूर असुर का युद्ध शुरू हो गया।

इन दोनों का युद्ध लंबे समय तक चला, लेकिन विष्णु जी मूर को पराजित नहीं कर पाए। विष्णु जी थक चुके थे। इस वजह से वे बद्रिकाश्रम की एक गुफा में विश्राम करने चले गए।

भगवान विष्णु का पीछा करते हुए मूर दैत्य भी वहां पहुंच गया। उस समय विष्णु जी विश्राम कर रहे थे। मूर विष्णु पर प्रहार करने ही वाला था, ठीक उसी वजह समय वहां एक देवी प्रकट हो गईं। देवी ने मूर का वध कर दिया। उस दिन अगहन कृष्ण पक्ष की एकादशी थी।

जब विष्णु जी का विश्राम पूरा हुआ तो उन्होंने आंखें खोलीं। सामने देवी को देखा तो देवी ने उन्हें मूर के वध की जानकारी दी। इस बात विष्णु जी बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने देवी को वर मांगने के लिए कहा।

देवी ने वर मांगा कि अब जो इस तिथि पर जो लोग व्रत-उपवास करेंगे, उनके सभी पाप नष्ट हो जाए और उनका कल्याण हो।

विष्णु जी ने देवी की ये इच्छा पूरी करने का वर दिया। इसके बाद भगवान विष्णु ने उस देवी को एकादशी नाम दिया। इस तिथि पर एकादशी देवी उत्पन्न हुई थीं, इसीलिए इसे उत्पन्ना एकादशी कहा जाता है।

उत्पन्ना एकादशी पर करें ये शुभ काम

इस तिथि पर विष्णु जी के लिए व्रत-उपवास करें। इसके साथ ही जरूरतमंद लोगों को धन और अनाज का दान करें। किसी मंदिर में पूजन सामग्री चढ़ाएं। गौशाला में घास और धन का दान करें। ठंड के दिनों के लिए जरूरतमंद लोगों को कंबल और गर्म कपड़े दान करें।

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