acn18.com दीपका/ सनातन परंपरा में विवाह बंधन को सबसे पवित्र माना गया है। इसलिए दोहराया जाता है कि इस संबंध को एक नही बल्कि 7 जन्म तक निभाया जाएगा। ऐसे में एक पहिये के अलग होने पर दूसरे का स्थायित्व भला कैसे हो सकता है। दीपका में 92 वर्षीय पति के निधन के वियोग से कुछ घण्टे बाद 84 वर्षीय धर्मपत्नी ने भी दुनिया छोड़ दी। धूमधाम के साथ उनकी अंतिम यात्रा निकाली गई और एक ही चिता पर दोनों का अंतिम संस्कार किया गया।
सच भी है कि जब साथ जनम जनम का है तो फिर जुदाई कैसी और इसे कैसे बर्दाश्त किया जाए। आखिर क्या होगा शेष जीवन का। कई सारे सवाल, को करते रहेंगे परेशान। इन्ही सबके बीच दीपका के प्रगतिंगर में रमावती सिन्हा का निधन हो गया। आखिर वे अपने जीवनसाथी वशिष्ठ नारायण सिन्हा के बिना जीती भी कैसे, जिनका एक दिन पहले ही निधन हो गया। विवाह के बाद दंपति ने 72 साल सुखद जीवन व्यतीत किया। पति के निधन से रो-रो कर पत्नी का बुरा हाल हो गया और वियोग में वह कई बार चक्कर खाकर गिर पड़ी। बिहार के सिवान से नजदीकी रिश्तेदार कोरबा जिले के दीपका पहुंचे और अंतिम संस्कार की तैयारी में जुट गए। इसी दौरान रामवती की हालत बिगड़ गई और उन्होंने भी अंतिम सांस ले ली। पति-पत्नी के जीवन के इस अंत में हर किसी को सोचने के लिए मजबूर कर दिया । फिर भी सामाजिक और दार्शनिक दृष्टिकोण से दोनों की अंतिम यात्रा धूमधाम से निकल गई और एक ही चिता तैयार कर पार्थिव शव का अंतिम संस्कार किया गया। एसईसीएल के अधिकारी संतोष सिन्हा ने बताया कि पूरा आखिर घटनाक्रम कैसे हुआ। सिन्हा ने बताया कि कुकिंग कॉल लिमिटेड से कोरबा जिले में स्थानांतरण के बारे में यहां काम कर रहे थे और तब से ही माता-पिता उनके साथ थे।
भारतीय संस्कृति में स्त्री शक्ति को सर्वोच्च प्राथमिकता दी गई है । अपने वैवाहिक जीवन काल में स्त्री की इच्छा अखंड सौभाग्य की होती है। वह इसी भाव के साथ अपना सम्पूर्ण समर्पण करती है। इसलिए पति के सुख में ही उसे अपना सुख नजर आता है तो उसके बिना जीवन की कल्पना भला कैसे की जा सकती है। वशिष्ठ नारायण के अवसान के बाद रामवती का मृत्यु लोक को अलविदा कहना शायद ऐसा ही कुछ दर्शाता है ।
क्रॉनिक डिजीज से प्रभावित एक व्यक्ति की मौत,समय पर उपचार लेंगे तो नहीं बिगड़ेगी स्थिति