फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि के अगले दिन होली पर्व को हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस विशेष दिन पर लोग सभी आपसी मतभेद को भुलाकर होली के रंग में डूब जाते हैं और एक-दूसरे को बधाई देते हुए गुलाल व अबीर से होली खेलते हैं। इस वर्ष रंगवाली होली 08 मार्च 2023, बुधवार के दिन खेली जाएगी।
हम सभी होलिका और भक्त प्रह्लाद की कथा को अच्छे जानते हैं, लेकिन इस पर्व से जुड़ी कुछ ऐसी भी पौराणिक किवदंतियां हैं, जिनका ज्ञान कम लोगों को है। ऐसी ही एक कथा भगवान शिव और कामदेव से जुड़ी है, जिसकी चर्चा आज हम करेंगे। आइए जानते हैं क्या है इस पौराणिक कथा में खास?
होली की कथा
पुराणों के अनुसार एक बार भगवान शिव आम दिनों की भांति ही अपनी तपस्या में लीन थे। शिव गणों को यह आदेश था कि कोई भी तपस्या के बीच में विघ्न उत्पन्न नहीं करेगा। लेकिन उस दिन माता पार्वती भगवान शिव से विवाह का प्रस्ताव लेकर आई थीं और उनका ध्यान अपनी ओर खींचना चाहती थीं। माता पार्वती ने भोलेनाथ का ध्यान आकर्षित करने के लिए कई प्रयास किए, किन्तु वह सफल नहीं हो पाईं। पार्वती जी की कोशिश को देखकर कामदेव बहुत प्रसन्न हुए और शिव-पार्वती के मिलन के लिए भोलेनाथ पर पुष्पों की वर्षा कर दी। कामदेव द्वारा किए गए पुष्पवर्षा से भोलेनाथ की तपस्या भंग हो गई।
तपस्या भंग होने पर महादेव अत्यंत क्रोधित हुए और उन्होंने अपने तीसरा नेत्र को खोल दिया। क्रोध की ज्वाला से कामदेव भस्म हो गए। इस घटना के बाद भगवान शिव ने पार्वती जी की ओर देखा और उन्हें पत्नी के रूप में स्वीकार किया। लेकिन कामदेव की पत्नी रति बहुत दुखी हो गई और उन्होंने भगवान शिव की आराधना का प्रण लिया। रति की तपस्या को देखकर भगवान शिव बहुत प्रसन्न हुए। जब भगवान शिव आए तो रति ने अपने पति की तरफ में पूरी घटना का व्याख्यान किया। साथ ही उन्हें बताया कि पार्वती माता सती का ही रूप हैं और आप दोनों के मिलन के लिए ही कामदेव ने आप पर फूलों की वर्षा की थी। उन्होंने तो केवल उनका साथ दिया था। रति की इस बात को सुनकर भगवान शिव ने कामदेव को मनसिज के रूप में जीवित कर दिया और कहा कि तुम सदैव देहविहीन रहोगे। जिस दिन यह घटना हुई उस दिन फाल्गुन शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा थी और अगले दिन होली का पर्व मनाया जाना था।