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आज गीता जयंती:ज्ञान, भक्ति, कर्म सिखाती है श्रीमद्भगवद्गीता, सिर्फ गिनती के लोग ही जानते हैं गीता की ये अद्भुत बातें

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आज (रविवार, 4 दिसंबर) हिंदू पंचांग के अनुसार, मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को गीता जयंती का पर्व मनाया जाता है. इस बार ये पर्व मंगलवार, 14 दिसंबर को है. कहा जाता है कि इस दिन भगवद्गीता के दर्शन मात्र का बड़ा लाभ होता है. यदि इस दिन गीता के श्लोकों का वाचन किया जाए तो मनुष्य के पूर्व जन्म के दोषों का नाश होता है.

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स्वयं भगवान ने दिया है गीता का उपदेश

विश्व के किसी भी धर्म या संप्रदाय में किसी भी ग्रंथ की जयंती नहीं मनाई जाती. हिंदू धर्म में भी सिर्फ गीता जयंती मनाने की परंपरा पुरातन काल से चली आ रही है क्योंकि अन्य ग्रंथ किसी मनुष्य द्वारा लिखे या संकलित किए गए हैं, जबकि गीता का जन्म स्वयं भगवान श्रीकृष्ण के श्रीमुख से हुआ है-

या स्वयं पद्मनाभस्य मुखपद्माद्विनि:सृता।।

श्रीमद्भगवद्गीता की आरती

जय भगवत् गीते, मां जय भगवत् गीते, हरि हिय कमल विहारिणि सुन्दर सुपुनीते। टेक। कर्म सुकर्म प्रकाशिनि कामासक्तिहरा, तत्वज्ञान विकाशिनि विद्या ब्रह्मपरा। जय… निश्चल भक्ति विधायिनी निर्मल मलहारी, शरण रहस्य प्रदायिनी सब विधि सुखकारी। जय… राग-द्वेष विदारिणि कारिणि मोद सदा, भव-भय हारिणि तारिणि परमानंदप्रदा। जय… आसुर भाव विनाशिनि तम रजनी, दैवी सद्‍गुण दायिनि हरि रसिका सजनी। जय… समता त्याग सिखावनि हरिमुख की बानी, सकल शास्त्र की स्वामिनी श्रुतियों की रानी। जय… दया सुधा बरसावनि मातु कृपा कीजै, हरि पद प्रेम दान कर अपने कर लीजै। जय…

महाभारत काल से जुड़ी कुछ रोचक जानकारी

पाण्डवों के नाम 1. युधिष्ठिर 2. भीम 3. अर्जुन 4. नकुल 5. सहदेव

इन पांच भाइयों के अलावा महाबली कर्ण भी कुंती के ही पुत्र थे, परन्तु उनकी गिनती पांडवों में नहीं की जाती है. बताते चलें कि पाण्डु के उपरोक्त पांच पुत्रों में युधिष्ठिर, भीम और अर्जुन की मां कुन्ती थीं. जबकि नकुल और सहदेव की माता माद्री थी.

धृतराष्ट्र और गांधारी के सौ पुत्र कौरव कहलाए जिनके नाम इस प्रकार हैं-

1. दुर्योधन 2. दुःशासन 3. दुःसह 4. दुःशल 5. जलसंघ 6. सम 7. सह 8. विंद 9. अनुविंद 10. दुर्धर्ष 11. सुबाहु 12. दुषप्रधर्षण 13. दुर्मर्षण 14. दुर्मुख 15. दुष्कर्ण 16. विकर्ण 17. शल 18. सत्वान 19. सुलोचन 20. चित्र 21. उपचित्र 22. चित्राक्ष 23. चारुचित्र 24. शरासन 25. दुर्मद 26. दुर्विगाह 27. विवित्सु 28. विकटानन्द 29. ऊर्णनाभ 30. सुनाभ 31. नन्द 32. उपनन्द 33. चित्रबाण 34. चित्रवर्मा 35. सुवर्मा 36. दुर्विमोचन 37. अयोबाहु 38. महाबाहु 39. चित्रांग 40. चित्रकुण्डल 41. भीमवेग 42. भीमबल 43. बालाकि 44. बलवर्धन 45. उग्रायुध 46. सुषेण 47. कुण्डधर 48. महोदर 49. चित्रायुध 50. निषंगी 51. पाशी 52. वृन्दारक 53. दृढ़वर्मा 54. दृढ़क्षत्र 55. सोमकीर्ति 56. अनूदर 57. दढ़संघ 58. जरासंघ 59. सत्यसंघ 60. सद्सुवाक 61. उग्रश्रवा 62. उग्रसेन 63. सेनानी 64. दुष्पराजय 65. अपराजित 66. कुण्डशायी 67. विशालाक्ष 68. दुराधर 69. दृढ़हस्त 70. सुहस्त 71. वातवेग 72. सुवर्च 73. आदित्यकेतु 74. बह्वाशी 75. नागदत्त 76. उग्रशायी 77. कवचि 78. क्रथन 79. कुण्डी 80. भीमविक्र 81. धनुर्धर 82. वीरबाहु 83. अलोलुप 84. अभय 85. दृढ़कर्मा 86. दृढ़रथाश्रय 87. अनाधृष्य 88. कुण्डभेदी 89. विरवि 90. चित्रकुण्डल 91. प्रधम 92. अमाप्रमाथि 93. दीर्घरोमा 94. सुवीर्यवान 95. दीर्घबाहु 96. सुजात 97. कनकध्वज 98. कुण्डाशी 99. विरज 100. युयुत्सु

धृतराष्ट्र और गांधारी के 100 पुत्रों के अलावा एक बेटी भी थी, जिसका नाम दुशाला था. दुशाला का विवाह जयद्रथ के साथ हुआ था.

श्रीमद्भगवद्गीता के बारे में कुछ अद्भुत बातें

भगवान श्री कृष्ण ने करीब 7 हजार साल पहले अर्जुन को श्रीमद्भगवद्गीता सुनाया था. कहा जाता है कि उस दिन एकादशी तिथि थी और दिन रविवार था. भगवान कृष्ण ने अर्जुन को कुरुक्षेत्र की रणभूमि में करीब 45 मिनट में श्रीमद्भगवद्गीता सुना दिया था. बताया जाता है कि अर्जुन अपने कर्तव्यों से भटक गए थे. लिहाजा भगवान कृष्ण ने अर्जुन को उनके कर्तव्यों का ज्ञान कराने के लिए और आने वाली पीढ़ियों को धर्म-ज्ञान सिखाने के लिए श्रीमद्भगवद्गीता का सुनाया था.

श्रीमद्भगवद्गीता में कुल 18 अध्याय हैं और 700 श्लोक हैं. श्रीमद्भगवद्गीता में ज्ञान, भक्ति, कर्म योग मार्गों की विस्तृत व्याख्या की गई है. इन मार्गों पर चलने से व्यक्ति निश्चित ही परमपद का अधिकारी बन जाता है. कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण के अलावा धृतराष्ट्र और संजय ने भी सुनाया था. मान्यताओं के मुताबिक अर्जुन से पहले भगवान सूर्यदेव ने श्रीमद्भगवद्गीता का पावन ज्ञान प्राप्त किया था. गीता की गिनती उपनिषदों में की जाती है.

श्रीमद्भगवद्गीता, महाभारत के एक अध्याय शांति-पर्व का एक हिस्सा है. श्रीमद्भगवद्गीता का दूसरा नाम गीतोपनिषद है. भगवान श्रीकृष्ण की शरण में आना ही श्रीमद्भगवद्गीता का सार है. गीता में श्रीकृष्ण ने 574, अर्जुन ने 85, धृतराष्ट्र ने 1, संजय ने 40 श्लोक कहे हैं.

ये है गीता उपदेश का प्रसंग

महाभारत युद्ध की शुरुआत होने वाली थी। कौरव और पांडव पक्ष की सेनाएं आमने-सामने खड़ी थीं। उस समय अर्जुन ने श्रीकृष्ण से कहा कि वे रथ को दोनों सेनाओं के बीच ले चलें। श्रीकृष्ण ने अर्जुन की बात मानी और रथ दोनों सेनाओं के बीच ले गए। वहां से अर्जुन ने कौरव पक्ष में भीष्म पितामह, द्रोणाचार्य, कृपाचार्य और अन्य कुटुंब के लोगों को देखकर युद्ध करने का विचार त्याग दिया।

अर्जुन ने श्रीकृष्ण से कहा कि मैं ये युद्ध नहीं करना चाहता।

इतना कहकर अर्जुन ने धनुष-बाण नीचे रख दिए।

श्रीकृष्ण समझ गए कि अर्जुन मोह और संदेह में उलझ हैं। इसके बाद भगवान ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया। ये उपदेश संजय ने भी सुना और धृतराष्ट्र को सुनाया।

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