acn18.com कोरबा/ बुधवार को रंगो का पर्व होली धूमधाम से मनाया जाएगा लेकिन अब इस त्योहार में वो पुराना उल्लास नजर नहीं आता. ऐसा प्रतीत हो रहा है मानो होली एक दिन की औपचारिकता पूरी करने वाला त्योहार बनकर रह गया है. पहले बसंत पंचमी से ही नगाड़ा बजना शुरू हो जाया करता था. बड़ी संख्या में लोग फाग गीत गाने जुटा करते थे. चारों ओर फाग गवैयों का मस्ती भरा शोर पारंपरिक लोकगीत के माध्यम से त्योहार के उत्साह को दोगुना कर देता था. अब समय के साथ फाग गीतों की परंपरा ही विलुप्त होती जा रही है।
होली आपसी भाईचारे वाला त्यौहार हुआ करता था, वर्तमान समय मे हुड़दंग अश्लीलता और नशे ने अपनी जगह बना ली है. लोक परंपरा और त्योहारों को संजोने का उत्तरदायित्व हम सभी का है. भविष्य में होली जैसे त्योहार इतिहास बनकर रह जाएंगे. खोती फाग की फनकार और नगाड़े की थाप को लेकर हमने स्थानीय लोक कलाकार थिरमन दास महंत और पीजी कॉलेज के हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. भुनेश्वरी दुबे से इस विषय पर बातचीत की.कोरबा निवासी थिरमन दास महंत लगभग 50 वर्षों से पारंपरिक लोकगीतों का गायन कर रहे हैं. उनका कहना है कि पहले बसंत पंचमी के दिन से ही फाग गायन का दौर शुरू हो जाता था. आसपास के लोग अपने सभी द्वेषों को मिटाकर एक जगह बैठ फाग गीत गया करते थे. इससे आपसी भाईचारा मजूबत होता था. टोलिया बना कर जगह-जगह मांदर और नगाड़े की थाप पर होली गीत गाते लोग दिख जाया करते थे. अब वो दृश्य कहीं देखने को नही मिलता।
गवर्नमेंट कॉलेज की हिंदी विभाग की अध्यक्षा डॉ. भुनेश्वरी दुबे का कहना है कि प्राचीन परंपरा विलुप्त होती जा रही है. वर्तमान में इसका मुख्य कारण कोरोना है. कोरोना के दौर में लोगो को संक्रमण से बचाव के लिए सामाजिक दूरियां रखना पड़ा था. इस दूरी ने समाज मे लोगों के बीच बहुत ज्यादा दूरियां पैदा कर दी. ग्रामीण इलाकों में होली गीत गायन का बहुत ज्यादा महत्व हुआ करता था, लेकिन वहां भी अब डीजे और फिल्मी गानों ने अपनी जगह बना ली है.
लोग अपनी परंपरा को भुलाते जा रहे है. एक दिन बाद होली मनाई जाएगी लेकिन बिल्कुल भी नहीं लग रहा कि होली का त्योहार नजदीक है. लोक त्योहार और गीतों को खत्म होने से बचाने के लिए सरकार को भी इस ओर ध्यान देना चाहिए. अगर बात करे फाग गीतों की तो इसकी प्रतियोगता करवा बढ़वा दिया जा सकता है।
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