ACN18.COM कोरबा/रामायण और महाभारत काल में धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाने के साथ कई बड़े राक्षसों को मार गिराने से लेकर आकाश में अकल्पनीय दृश्य निर्मित कर देने वाले धनुषधारियों की चर्चा आज भी होती है। गुरु द्रोण के शिष्य एकलव्य का जिक्र आने पर लोग रोमांचित हो उठते है। इसलिए अभी भी तीरंदाजी का क्रेज बना हुआ है। कोरबा में 50 से अधिक बच्चे अच्छे धनुर्धर बनने के लिए प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे हैं।
भगवान राम और लक्ष्मण सहित उनके दोनों भाई श्रेष्ठ धनुर्धर थे। कुंती पुत्र अर्जुन को भी इस मामले में महारत हासिल थी.। इन सभी ने गुरुजनों के सानिध्य में यह शिक्षा प्राप्त की जबकि गुरु द्रोणाचार्य की प्रतिमा बनाने के साथ उसके आगे धनुष चलाने का अभ्यास करते हुए एकलव्य ने अपने आप को साबित कर दिया। उस जमाने की कई घटनाओं की चर्चा तब से अब तक लगातार हो रही है। ओलंपिक खेलों मैं विभिन्न खेलों के साथ आर्चरी यानी धनुरविद्या को शामिल किया गया है। लगातार इस खेल में बच्चे सामने आ रहे हैं और बेहतर प्रदर्शन करने के साथ दुनिया का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित कर रहे हैं। छत्तीसगढ़ सरकार के द्वारा खेल नीति में परिवर्तन करने के साथ सभी खेलों को आगे बढ़ाने का काम किया जा रहा है। खिलाड़ियों को संसाधन देने के साथ प्रशिक्षण देने की व्यवस्था भी की गई है। फिलहाल कोरबा जिले में बिना किसी सरकारी सहायता के 50 बच्चों को धनुर्विद्या का प्रशिक्षण देने का काम भानु सिंह कर रहे है। एसईसीएल वॉलीबॉल ग्राउंड के पास यह बच्चे प्रतिदिन पहुंचते हैं और लक्ष्य को भेदने में दिलचस्पी लेते हैं।
प्रशिक्षक भानु सिंह ने बताया कि काफी दिनों से इस तरह का काम इन नए खिलाड़ियों के हित में किया जा रहा है। फिलहाल किसी प्रकार की सहायता सरकार से यहां के मामले में नहीं मिल पा रही हैं । अगर आगे कुछ होता है तो प्रदर्शन को और बेहतर किया जा सकेगा।
सीखने की ललक हर किसी की होती हैं और एक दिन वह इसके जरिए दक्षता को प्राप्त करता है। करत करत अभ्यास ते जड़मति होत सुजान, जैसी पंक्ति शायद इसी बात को ध्यान में रखते हुए लिखी गई है. उम्मीद की जानी चाहिए कि जिन बच्चों को कोरबा में प्रशिक्षण दिया जा रहा है वे आगे चलकर अपनी प्रतिभा से कोरबा का नाम रोशन करेंगे।