acn18.com कोरबा/भाई और बहन के स्नेह का पर्व रक्षाबंधन लावणी पूर्णिमा को मनाए जाने की परंपरा सदियों से बनी हुई है। अब बेहद नजदीक है। राखी की दुकानों से लेकर अन्य स्थानों पर विशेष रौनक बनी हुई है। पर्व की वास्तविक तिथि को लेकर बने असमंजस के बीच पुरोहित स्पष्ट करते हैं कि कैलेंडर के बजाय मुहूर्त को महत्व दिया जाना चाहिए। ऐसा करना शुभ फलदायक होता है।
रक्षा के वचन से जुड़ा हुआ रक्षाबंधन पर भारत की सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत से वास्ता रखता है। इतिहास में अनेक अवसरों पर दिए गए वचन की रक्षा के उदाहरण मिलते हैं। व्यावहारिक रूप से यह बहन के द्वारा भाई की रक्षा करने के संकल्प से जुड़ा हुआ है। रेशम के धागे से लेकर कई तरह की राखियां बाजार में उपलब्ध हैं यह की खरीद बिक्री इस दौर में हो रही है। कारोबारी अर्जुन छत्रिय मानते हैं कि बीते 2 वर्ष कोविड-19 की वजह से काफी कुछ प्रभावित हुआ। रक्षाबंधन को लेकर बाजार में चहल-पहल तो है लेकिन लोग बजट को संतुलित करने पर ध्यान दे रहे हैं।
स्थानी बाजारों में ग्राहकों की कमी होने से जुड़े सवाल पर अर्जुन बताते हैं कि विभिन्न क्षेत्रों में सड़कों की स्थिति अच्छी नहीं होने के कारण लोगों ने अपने इलाके में ही जरूरत को पूरा करने पर ध्यान दिया है।
रक्षाबंधन पर्व की तिथि को लेकर अलग-अलग बातें हो रही हैं। लोगों में संशय इस बात पर है कि पर्व 11 अगस्त को मनाए या 12 अगस्त को। इन सबके बीच पुरोहित दशरथ नंदन द्विवेदी से हमने बातचीत की और जाना कि पर्व मनाने के लिए शास्त्रीय विधान क्या कहता है। उन्होंने बताया कि मुहूर्त के आधार पर लोगों को 11 अगस्त की रात्रि 8:25 बजे से 12 अगस्त को सुबह 7:05 बजे तक रक्षाबंधन बनाना उचित होगा।
जानकारी के अनुसार तीन परिस्थितियों में प्रभावी होने वाले भद्रा काल के दौरान कुछ शुभ कर्म पूरी तरह से त्याज्य होते हैं। खास तौर पर रक्षाबंधन और होली को लेकर कई प्रकार की धारणा बनी हुई है और इसीलिए इस बारे में काफी मंथन होता ही है। धार्मिक मान्यताओं का अनुसरण करने वाले लोगों को सलाह दी जा रही है कि वे मुहूर्त विशेष में ही रक्षाबंधन संपन्न करें
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