मध्यप्रदेश के जबलपुर में न्यू लाइफ अस्पताल में 8 लोगों के जिंदा जलने के मामले में खामियां ही खामियां नजर आईं। इस हादसे के होने में सरकारी सिस्टम ही कसूरवार है। पूरे सिस्टम को पता था कि ‘न्यू लाइफ’ अस्पताल ‘नो लाइफ’ में तब्दील हो चुका है, लेकिन नगर निगम और CMHO सिर्फ चिट्ठी लिखते रहे। मार्च 2022 में इस अस्पताल की फायर NOC की वेलिडिटी खत्म हो चुकी थी। सबसे हैरान करने वाली बात तो यह है कि जिस बिल्डिंग में यह अस्पताल संचालित हो रहा है, वहां शॉपिंग कॉम्प्लेक्स बनाने की अनुमति दी गई थी।
8 मौतों के बाद जितनी जल्दी जिम्मेदारों ने अस्पताल का लाइसेंस निरस्त किया, उतनी ही फुर्ती पहले दिखाई होती तो शायद इस भीषण हादसे को रोका जा सकता था। इस खबर में हम आपको उन्हीं 8 जिम्मेदार लोगों के बारे में बता रहे हैं, जिन्होंने अपनी ड्यूटी नहीं निभाई।
ये 8 हैं इस हादसे के जिम्मेदार, 4 अस्पताल के डायरेक्टर्स
अस्पताल के 4 डायरेक्टर्स का गुनाह
डॉ. निशिंत गुप्ता , डॉ. सुरेश पटेल, डॉ. संजय पटेल और डॉ. संतोष सोनी
मई 2021 में अस्पताल चालू किया, तब प्रोविजनल NOC ली। एक साल बाद जब इसकी वेलिडिटी खत्म हो गई, तब भी इसकी परवाह नहीं की। ये चारों डॉक्टर जानते थे कि उनके अस्पताल में आने और जाने के लिए एक ही रास्ता है। यदि आग लगी तो यहां जान बचाना मुश्किल होगा। CMHO के नोटिस की भी परवाह नहीं की। मरीज भर्ती करते रहे और पैसे कमाते रहे। कभी ये नहीं सोचा कि वे मरीजों की जिंदगी दांव पर लगा रहे हैं।
मैनेजर विपिन पांडेय
अस्पताल के मैनेजर विपिन पांडेय मरीजों को एडमिट करते रहे, लेकिन कभी उन्होंने अस्पताल प्रबंधन को इस बात से आगाह नहीं किया कि अस्पताल बारूद के ढेर पर है। हादसा हुआ तो जान बचाना मुश्किल होगा। इन्होंने बिजली सुरक्षा संबंधी ऑडिट भी नहीं कराया। यदि कराया होता तो अस्पताल का लोड और जनरेटर के लोड में अंतर के कारण जनरेटर से वायर जलने जैसा हादसा नहीं होता। अस्पताल में रखे जनरेटर की लोकेशन भी ठीक जगह पर नहीं थी। अस्पताल में इमरजेंसी की स्थिति में कोई एग्जिट गेट भी नहीं था।
CMHO डॉ. रत्नेश कुररिया
नर्सिंग होम्स की गाइडलाइन की अनदेखी कर अस्पताल का रजिस्ट्रेशन किया। ये जानते हुए भी कि अस्पताल में आग से निपटने के इंतजाम नहीं हैं, इसके बाद भी अस्पताल के खिलाफ एक्शन नहीं लिया। वे सिर्फ नगर निगम को पत्र लिखकर अपनी ड्यूटी पूरी करते रहे।
कुशाग्र ठाकुर, फायर ऑफिसर
नगर निगम के फायर ऑफिसर कुशाग्र ठाकुर भी अस्पताल की लापरवाही पर बेपरवाह बने रहे। CMHO को चिट्ठी लिखकर ड्यूटी पूरी कर ली। यदि वे अपने अधिकार का उपयोग करते तो अस्पताल के खिलाफ तुरंत एक्शन ले सकते थे।
बिल्डिंग परमिशन प्रभारी आरके गुप्ता
नगर निगम के बिल्डिंग परमिशन प्रभारी आरके गुप्ता भी इसके लिए बराबर के दोषी हैं। जिस बिल्डिंग में यह अस्पताल संचालित हो रहा है, वहां शॉपिंग कॉम्पलेक्स बनाने की अनुमति दी गई थी। लेकिन बिल्डिंग का प्रारूप बदल दिया गया, लेकिन इसके बाद भी इस पर कोई ध्यान नहीं दिया गया।