ACN18.COM नई दिल्ली/ सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एक अहम फैसला सुनाते हुए एक अविवाहित युवती को 24 हफ्ते के गर्भ को गिराने की इजाजत दे दी है। मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस सूर्यकांत त्रिपाठी और जस्टिस एएस बोपन्ना की बेंच ने कहा कि महिला की शादी नहीं हुई है, केवल इस वजह से उसे गर्भपात करवाने की अनुमति देने से नहीं रोका जा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में अविवाहित युवती के गर्भपात को लेकर कई दिशा-निर्देश भी जारी किया है। कोर्ट ने दिल्ली एम्स के डॉयरेक्टर को 22 जुलाई तक एक मेडिकल बोर्ड बनाने का निर्देश दिया है। अगर मेडिकल बोर्ड अपनी रिपोर्ट में कहेगी कि अविवाहित महिला को के जीवन को कोई खतरा नहीं है तो गर्भपात कराया सकता है।
हाई कोर्ट ने गलत दृष्टिकोण अपनाया
जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि दिल्ली हाई कोर्ट ने महिला की अंतरिम राहत को अस्वीकार करते हुए मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी रूल्स के प्रावधानों को लेकर रोक लगाने में गलत दृष्टिकोण अपनाया था। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि याचिकाकर्ता को केवल इस आधार पर लाभ से वंचित नहीं किया जाना चाहिए कि वह एक अविवाहित महिला है।
अवांछित गर्भधारण की अनुमति देना भावना के विपरीत
पीठ ने सुनवाई के दौरान कहा कि 2021 में संशोधन के बाद मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट में धारा 3 के स्पष्टीकरण में पति के बजाय पार्टनर शब्द का इस्तेमाल किया जाने लगा है। अदालत ने कहा कि यह अधिनियम के तहत अविवाहित युवती को कवर करने के विधायी इरादे को दर्शाता है।
हाई कोर्ट ने गर्भपात की अनुमति देने से कर दिया था इनकार
15 जुलाई को इस मामले पर सनवाई करते हुए दिल्ली हाई कोर्ट ने 25 साल की अविवाहित युवती को गर्भपात की मंजूरी देने से इनकार कर दिया है। यही नहीं मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने टिप्पणी की कि हम बच्चे की हत्या की अनुमति नहीं देंगे। इसकी बजाय उसे किसी को गोद देने का विकल्प चुन सकती हैं। चीफ जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा ने कहा, ‘बच्चों को मारना क्यों चाहती हैं? हम आपको एक विकल्प देते हैं। देश में बड़े पैमाने पर गोद लेने के इच्छुक लोग हैं।’ चीफ जस्टिस ने कहा कि हम युवती को बच्चे के लिए पालने के लिए मजबूर नहीं करते। लेकिन वह एक अच्छे अस्पताल में जाकर उसे जन्म दे सकती है।