acn18.com जगदलपुर/रायपुर/ छत्तीसगढ़ में भी अब केरल की तरह रबर की खेती की जाएगी। जल्द ही बस्तर में रबर के पौधे रोपे जाएंगे। इसके लिए जमीन भी तलाशी जा रही है। कोट्टायाम के रबर अनुसंधान संस्थान ने बस्तर में रबर की खेती करने के लिए यहां का वातावरण अनुकूल बताया है। इसलिए अब बस्तर में एक हेक्टेयर क्षेत्रफल में रबर की प्रायोगिक खेती करने जा रहा है। रायपुर के इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय और रबर रिसर्च इंस्टिट्यूट के बीच इसके लिए अनुबंध भी हो गया है।
दरअसल, रायपुर के इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. गिरीश चंदेल की मौजूदगी में इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर और रबर अनुसंधान संस्थान कोट्टायाम के मध्य एक समझौता किया गया। समझौता ज्ञापन पर इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के संचालक अनुसंधान डॉ. विवेक कुमार त्रिपाठी ,रबर रिसर्च इंस्टिट्यूट कोट्टायाम की संचालक अनुसंधान डॉ. एम.डी. जेस्सी ने हस्ताक्षर किए हैं।
रबर इंस्टिट्यूट करवाएगा पूरी व्यवस्था
इस समझौते के अनुसार रबर इंस्टिट्यूट कृषि अनुसंधान केंद्र बस्तर में एक हेक्टेयर रकबे में रबर की खेती के लिए सात सालों की अवधि के लिए पौध सामग्री, खाद-उर्वरक, दवाएं और मजदूरी पर होने वाला व्यय इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय को उपलब्ध कराएगा। साथ ही रबर की खेती के लिए आवश्यक तकनीकी मार्गदर्शन और रबर निकालने की तकनीक भी उपलब्ध कराएगा। पौध प्रबंधन का कार्य रबर इंस्टिट्यूट के वैज्ञानिकों के मार्गदर्शन में इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय करेगा।
कुलपति बोले- किसानों की आमदनी बढ़ेगी
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. गिरीश चंदेल ने कहा कि रबर एक अधिक लाभ देने वाली फसल है। भारत में केरल, तमिलनाडु समेत दक्षिणी राज्यों में रबर की खेती होती है। इस काम ने किसानों को सम्पन्न बनाने में अहम भूमिका निभाई है। उन्होंने कहा कि रबर अनुसंधान संस्थान कोट्टायाम के वैज्ञानिकों ने छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र की मिट्टी, आबोहवा, भू-पारिस्थितिकी को रबर की खेती के लिए बेहतर बताया है। प्रायोगिक तौर पर एक हेक्टेयर क्षेत्र में रबर के पौधों का रोपण किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि, रबर की खेती को निश्चित रूप से सफलता मिलेगी। किसानों को अधिक आमदनी प्राप्त हो सकेगी।