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पुलिस कस्टडी में मौत पर सवाल:वकील बोले- 7 साल से कम सजा फिर भी गिरफ्तारी क्यों, मेंटली टॉर्चर करना भी अपराध,अफसर कर रहे बचाव

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Acn18.com/बिलासपुर में पुलिस कस्टडी में एक व्यक्ति की मौत से अब थाना प्रभारी से लेकर पूरे स्टाफ की भूमिका संदेह के घेरे में है। बावजूद इसके पुलिस के आला अधिकारी इस गंभीर केस में जिम्मेदारों का बचाव कर रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट का आदेश है कि धोखाधड़ी जैसे सात साल से कम सजा के केस में सीधे गिरफ्तारी नहीं की जा सकती।

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आरोपी ब्लड प्रेशर का पेसेंट था और दवाईयां लेता था। उसके पास से आपत्तिजनक दवाएं भी मिली है। बावजूद, इसके पुलिस ने उसका मेडिकल नहीं कराया। ऐसे कई सवाल है, जिससे थानेदार की कार्यप्रणाली पर सवाल उठ रहा है। हालांकि, एसपी संतोष कुमार का कहना है कि पूरे मामले की न्यायिक जांच होगी, जिसके बाद कार्रवाई की जाएगी।

धोखाधड़ी के आरोपी श्याम मोहदीकर की बुधवार को पुलिस कस्टडी में मौत हो गई। इस मामले में डॉक्टरों ने प्रारंभिक पीएम रिपोर्ट में मौत की वजह ब्रेन हेमरेज बताया है। पुलिस का कहना है कि आरोपी के साथ मारपीट के कोई निशान नहीं मिले हैं। उसके पास से विगोर 100 नामक कामोत्तेजक और अन्य दवाओं के खाली रैपर मिले हैं। संभवतः इन्हें खाने से उसकी तबीयत बिगड़ी थी। कस्टडी में मौत के इस गंभीर केस में टीआई मनोज नायक का यह बयान अपने आप में सवाल खड़े करता है।

छोटी सजा के केस में गिरफ्तारी नहीं
AAP पार्टी की नेता, सामाजिक कार्यकर्ता और अधिवक्ता प्रियंका शुक्ला ने हिरासत में मौत से पहले पुलिस की कार्रवाई पर सवाल उठाया है। उनका कहना है कि सुप्रीम कोर्ट का स्पष्ट आदेश है कि सात साल से कम की सजा के केस में सीधे तौर पर आरोपी की गिरफ्तारी नहीं की जा सकती। उसे गिरफ्तार करने से पहले नोटिस देना था। क्या पुलिस ने इस केस में कानून के प्रावधानों का पालन किया है। जांच, यहां से शुरू होनी चाहिए। दूसरी बात कस्टोरियल डेथ के केस में न्यायिक जांच स्वाभाविक प्रक्रिया है। प्रदेश में ऐसे कई कस्टोरियल मौत हुई है। लेकिन, एक भी केस में जिम्मेदारों पर कोई कार्रवाई नहीं की गई है। इस तरह की जांच महज एक औपचारिकता है।

हाईकोर्ट में याचिका, फिर भी कार्रवाई नहीं
अधिवक्ता प्रियंका शुक्ला ने यह भी बताया कि सरकंडा थाना क्षेत्र के बाल सुधार गृह में चोरी के आरोपी नाबालिग की मौत हुई थी। इस केस में भी न्यायिक जांच की गई। लेकिन, जांच में एक भी जिम्मेदार को दोषी नहीं बताया गया। इसी तरह सरकंडा थाने में ही पुलिस हिरासत से भागते समय एक नाबालिग की मौत हो गई थी। इसमें भी कोई कार्रवाई नहीं हुई, तब उन्होंने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर दी। यह मामला लंबित है। लेकिन, केस में न तो जिला प्रशासन ने कोई कार्रवाई की और न ही पुलिस अफसरों ने ध्यान दिया।

मेंटली टॉर्चर करना भी अपराध की श्रेणी में आता है
हाईकोर्ट के अधिवक्ता समीर सिंह का कहना है कि पुलिस कस्टडी में मौत होना अपने आप में गंभीर मामला है। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने गाइडलाइन जारी किया है। अगर, मौत से पहले वह व्यक्ति पूरी तरह से स्वस्थ्य था तो लॉकअप में आने के बाद उसकी तबीयत कैसे बिगड़ी। जब वह दवाएं लेता था तो पुलिस ने क्या उसे दवाइयां खाने की अनुमति दे दी। अगर ऐसा हुआ है तो भी यह एक गंभीर लापरवाही है। क्योंकि, अगर कोई व्यक्ति पुलिस की हिरासत में है तो उसकी जान की रक्षा करना पुलिस की जिम्मेदारी है। उसे अस्पताल ले जाना था, उसका मेडिकल चेकअप होना था। इसके बाद ही उसे दवाइयां खाने की अनुमति दी जा सकती थी।

टीआई ने रात भर किया होगा टॉर्चर
जिस रात आरोपी को पुलिस हिरासत में लेकर आई थी और उसकी गिरफ्तारी बताई गई। उस रात में टीआई मनोज नायक सेक्टर गश्त पर थे। जाहिर है कि रात में उन्होंने आरोपी से पूछताछ की होगी और इस दौरान उसे मानसिक रूप से टॉर्चर किया गया होगा। हालांकि, आरोपी के हिरासत में मौत को लेकर सीधे तौर पर परिजनों ने कोई आरोप नहीं लगाया है। लेकिन, उन्होंने एक स्वस्थ व्यक्ति की मौत पर सवाल उठाते हुए निष्पक्ष जांच की मांग की है।

डॉक्टर बोले- ब्लड प्रेशर बढ़ने से होता है ब्रेन हेमरेज
एमडी मेडिसीन डॉक्टर अंकित शर्मा ने बताया कि किसी भी व्यक्ति को ब्रेन हेमरेज होने के कई कारण हो सकते हैं। इसके साथ ही या तो वह ब्लड प्रेशर से पीड़ित होगा। या फिर अचानक मानसिक तनाव के कारण भी ब्लड प्रेशर हाई हो जाता है और ब्रेन हेमरेज हो सकता है। शक्तिवर्धक और यौन उत्तेजक दवाएं लेने से भी ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है। इससे ब्रेन हेमरेज के साथ हार्ट अटैक भी हो सकता है।

थानेदार की मौजूदगी में जांच पर सवाल
आमतौर पर कोई भी केस में जब जांच की जाती है, तो जिम्मेदार को वहां से हटा दिया जाता है। इसके बाद जांच शुरू की जाती है। ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि, वह जांच की प्रक्रिया को प्रभावित न कर सके। लेकिन, पुलिस कस्टडी में मौत के इस केस में पुलिस अफसरों ने न्यायिक जांच कराने की बात कही है। लेकिन, अब तक जिम्मेदारों को नहीं हटाया गया है। ऐसे में केस की जांच पर भी सवाल उठ रहा है।

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