Acn18.com/ओडिशा 12वीं बोर्ड के रिजल्ट घोषित हो गए हैं। अच्छे रिजल्ट को लेकर छात्र-छात्राओं में खुशी की लहर है। इसी बीच पिछले साल इंटर कॉमर्स की टॉपर की मजदूरी करते तस्वीर आई है, जिसने सभी को झकझोर दिया है।
मलकानगिरी जिले की कर्मा मुदुली ने पिछले साल 12वीं बोर्ड में बेहतर प्रदर्शन किया था। जिला टॉपर बनने पर वो सुर्खियों में थी। इस साल फिर वो सुर्खियों में हैं लेकिन अपनी मजबूरी के लिए।
20 साल की कर्मा मुदुली आर्थिक तंगी के कारण दिहाड़ी मजदूरी करने को मजबूर हैं। पिछले एक साल में उनकी जिंदगी ने यू टर्न ले लिया है। अब अपनी पढ़ाई का खर्चा पूरी करने की जम्मेदारी कर्मा ने अपने कंधों पर ले ली है।
कर्मा मुदुली के माता-पिता बुदरा मुदुली और सुकरा मुदुली किसान हैं। कर्मा बोंडा हिल के विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूह (पीवीटीजी) की पहली लड़की थी, जिसने पिछले साल मलकानगिरी जिले में प्लस टू परीक्षा के कॉमर्स स्ट्रीम में टॉप किया था। उन्होंने 82.66 प्रतिशत अंक हासिल किए थे।
अब कर्मा की पढ़ाई में आर्थिक परेशानी आड़े आ रही है। जब माता-पिता से पढ़ाई का खर्चा पूरा करना मुश्किल होने लगा तो कर्मा भी मजदूरी करने को मजबूर हो गईं। वे अब कॉलेज फीस भरने के लिए चिलचिलाती धूप में कड़ी मेहनत को मजबूर हैं।
बता दें कि 12वीं के बाद कर्मा को भुवनेश्वर में प्रतिष्ठित रमा देवी महिला विश्वविद्यालय के प्लस थ्री डिग्री कोर्स में प्रवेश के लिए चुना गया था। उनके पढ़ाई के खर्च की राशि 24,000 रुपये है, जिसमें 12,000 रुपये की वार्षिक छात्रावास शुल्क शामिल है।
कर्मा कहती हैं कि चूंकि मेरे माता-पिता मेरी पढ़ाई का खर्च उठाने में सक्षम नही हैं, इसलिए मैंने अपने पढ़ाई का खर्च उठानी की ठानी।
कर्मा को मलकानगिरी जिला मुख्यालय अस्पताल के पास एक घर के निर्माण स्थल पर बोंडा हिल की अन्य लड़कियों के साथ काम करते देखा गया। वर्तमान में, वह मल्कानगिरी में है क्योंकि गर्मी की छुट्टी के कारण उनका कॉलेज बंद है।
पढ़ाई जारी रखने की ललक
कर्मा ने कहा कि कर्म कठिनाइयों और आर्थिक संकट से विचलित नहीं होता है। मैं काम कर रही हूं क्योंकि मुझे अपनी शिक्षा और व्यक्तिगत खर्चों को पूरा करने के लिए पैसे की जरूरत है लेकिन एक बार जब मेरा कॉलेज 19 जून को फिर से खुल जाएगा, तो मैं भुवनेश्वर वापस जाऊंगी और अपनी पढ़ाई जारी रखूंगी।
सिविल सेवक बनना चाहती हैं कर्मा
वे आगे कहती हैं कि मैं या तो सिविल सेवक या शिक्षक बनना चाहती हूं। वहीं, कर्मा के पास कॉपी खरीदने को पैसे नहीं है। ऐसे में वो कॉपी पर पेंसिल से लिखती हैं, फिर लिखे को रबर से मिटाकर फिर से उसी पन्ने पर लिखने का काम करती हैं।
संपर्क करने पर, मल्कानगिरी के जिला कल्याण अधिकारी (डीडब्ल्यूओ) प्रफुल कुमार भुजबल ने स्वीकार किया कि कर्मा डीएचएच के पास अपने गांव की 10 अन्य लड़कियों के साथ काम कर रही थी।
उन्हें पोस्ट मैट्रिक स्कॉलरशिप के रूप में 13 हजार रुपये मिल रहे हैं। इसके अलावा, कर्मा को रेडक्रॉस फंड से 10,000 रुपये और आईईसी योजना के तहत 10,000 रुपये दिए गए। उसके माता-पिता को भी बोंडा विकास एजेंसी से वृद्धावस्था पेंशन और अन्य आजीविका सहायता मिल रही है।
डीडब्ल्यूओ ने आगे कहा कि कर्मा को 13,000 रुपये का वार्षिक वजीफा मिल रहा है, जिसमें छात्रावास के लिए 10,000 रुपये और स्कूल की फीस के लिए 3,000 रुपये शामिल हैं लेकिन वह इस बात से सहमत थे कि लड़की की शिक्षा का खर्च पूरा करने के लिए अल्प राशि पर्याप्त नहीं थी।