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छत्तीसगढ़ में सस्ती होगी शराब, फेवरेट ब्रांड भी मिलेंगे:FL-10 लाइसेंस खत्म, इसी की वजह से हो पाया 2200 करोड़ का स्कैम

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acn18.com रायपुर / छत्तीसगढ़ में बीजेपी सरकार ने शराब की FL-10 लाइसेंस व्यवस्था को खत्म कर दिया है। इस फैसले के बाद सरकार ये दावा कर रही है कि शराब खरीदी में बिचौलियों का रोल पूरी तरह खत्म हो जाएगा। साय सरकार का ये भी आरोप है कि FL-10 लाइसेंस व्यवस्था की वजह से ही पिछली भूपेश सरकार में शराब के कारोबार में 2200 करोड़ का घोटाला हुआ।

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सरकार के इस फैसले के बाद इस बात की चर्चा सबसे ज्यादा है कि शराब खरीदने वाले उपभोक्ताओं पर इसका क्या असर होगा? प्रदेश में इस नई व्यवस्था के लागू होने से क्या फायदा होगा, आखिर FL-10 लाइसेंस क्या होता है, किस तरह इस लाइसेंस की आड़ में लिकर स्कैम के सभी सवालों के जवाब सिलसिलेवार जानते हैं।

पहले समझते हैं कि आखिर FL-10 लाइसेंस क्या है?

FL-10 का फुल फॉर्म है, फॉरेन लिकर-10। इस लाइसेंस को छत्तीसगढ़ में विदेशी शराब की खरीदी की लिए राज्य सरकार ने ही जारी किया था। जिन कंपनियों को ये लाइसेंस मिला है, वे मेनूफैक्चर्स यानी निर्माताओं से शराब लेकर सरकार को सप्लाई करते थे। इन्हें थर्ड पार्टी भी कह सकते हैं।

खरीदी के अलावा भंडारण और ट्रांसपोर्टेशन का काम भी इसी लाइसेंस के तहत मिलता है। हालांकि इन कंपनियों ने भंडारण और ट्रांसपोर्टेशन का काम नहीं किया इसे बेवरेज कॉर्पोरेशन को ही दिया गया था। इस लाइसेंस में भी A और B कैटेगरी के लाइसेंस धारक होते थे।

  • FL-10 A इस कैटेगरी के लाइसेंस-धारक देश के किसी भी राज्य के निर्माताओं से इंडियन मेड विदेशी शराब लेकर विभाग को बेच सकते हैं।
  • FL-10 B राज्य के शराब निर्माताओं से विदेशी ब्रांड की शराब लेकर विभाग को बेच सकते हैं।

बीजेपी सरकार में FL-10 ने लिया आकार

आबकारी मामलों के जानकार बताते हैं कि, FL-10 लाइसेंस की व्यवस्था साल 2017-18 में बनी थी, जो लागू नहीं हो पाई। तब प्रदेश में बीजेपी की सरकार थी। कांग्रेस सरकार बनने के बाद पुराने अधिनियम में संशोधन करते हुए FL-10 की व्यवस्था फरवरी 2020 में लागू की गई। इसके बाद थर्ड पार्टी ही सरकार को शराब की सप्लाई करने लगी। इसमें बड़ा कमीशन थर्ड पार्टी की कमा रही थी। ED ने अपनी 10 हजार पेज की रिपोर्ट में FL-10 को ही भ्रष्टाचार की जड़ बताया है।

प्राइवेट कंपनियों को ठेका देकर उनसे खरीदी गई शराब

इस व्यवस्था से पहले बाजार से शराब खरीदने की जिम्मेदारी बेवरेज कॉर्पोरेशन ऑफ छत्तीसगढ़ के पास थी। मार्च 2020 में इसे छीनकर सारे अधिकार 3 प्राइवेट संस्थाओं को दे दिए गए। जानकारी के मुताबिक इस समय कुल 28 कंपनियों ने टेंडर भरा था, जिनमें 8 शॉर्ट लिस्टेड की गई, लेकिन टेंडर 3 को ही मिला।

इन तीनों कंपनियों के पास कोई पुराना अनुभव नहीं था। फरवरी 2020 में ही ये कंपनियां बनीं और मार्च 2020 में इन्हें करोड़ों का कॉन्ट्रैक्ट भी मिल गया। इन तीनों कंपनियों के मालिकों को लिकर स्कैम के मास्टरमाइंड अनवर ढेबर का करीबी बताया गया है।

दूसरे राज्यों से छत्तीसगढ़ आते ही कई गुना महंगी हो जाती थी शराब

दरअसल, मल्टीनेशनल फॉरेन लिकर्स की कंपनियों का बड़ा बाजार है। साथ ही उनकी डिमांड भी ज्यादा होती है। इनकी मैन्युफैक्चरिंग के बाद जल्दी खराब होने का डर नहीं होता। इसलिए बड़ी कंपनियां अपना प्रोडक्ट बेचने के लिए जल्दबाजी नहीं करतीं। इसके लिए वे कमीशन भी नहीं देती।

ऐसे में शराब से कमाई का दूसरा रास्ता निकाला गया। निर्माता कंपनियों से सीधे खरीदी करने की बजाय थर्ड पार्टी अपॉइंट की गई, जो निर्माताओं से शराब लेकर सरकार को बेच रही थी। इसमें बिचौलिए बड़ी रकम वसूल रहे थे। आरोप है कि विभागीय मंत्री समेत आबकारी विभाग के अधिकारियों और इस सिंडिकेट के बड़े रसूखदारों के पास इसका कमीशन पहुंचता था।

प्रीमियम ब्रांड की कोई शराब अगर दूसरे राज्यों में 1400 की बिकती है, तब बिचौलियों के जरिए छत्तीसगढ़ की शराब दुकानों में आते ही उसकी कीमत 2000 से 2400 रुपए तक हो जाती थी। इसका नतीजा ये हुआ कि छत्तीसगढ़ में शराब काफी महंगी बिकने लगी। इस दौरान नकली होलोग्राम और मिलावटी शराब बिकने की भी शिकायतें आईं।

पसंद की नहीं मिल रही थी ब्रांड

चालू साल, यानी 2024-25 के लिए पुरानी व्यवस्था के ही तहत FL-10 (A, B) लाइसेंस धारकों ने 375 ब्रांड का रेट ऑफर किया था, लेकिन इनमें से केवल 165 ब्रांड की आपूर्ति ही वे कर रहे थे। पसंद की ब्रांड नहीं मिलने के कारण शराब उपभोक्ता भी नाराज थे।

इन लाइसेंस धारकों की ओर से शराब निर्माता कंपनियों से अपनी शर्तों पर शराब की खरीदी की जाती थी। इसका भंडारण छत्तीसगढ़ स्टेट बेवरेजेस कॉर्पोरेशन लिमिटेड के गोदाम में किया जाता था। लोगों को उसी ब्रांड की शराब मिलती, जिनसे थर्ड पार्टी को बड़ा कमीशन मिलता था।

अब इस तरह सस्ती होगी शराब

अपने अनुभवों के आधार पर पूर्व एक्साइज कमिश्नर गणेश शंकर मिश्रा का दावा है कि बेवरेज कॉर्पोरेशन अगर सीधे शराब निर्माता कंपनियों से खरीदी करता है तो इससे ग्राहकों को फायदा होगा। बिचौलियों के हटने से आम उपभोक्ता को शराब कम कीमत में मिलेगी। नई व्यवस्था में शराब की कीमतों में सरकार का नियंत्रण रहेगा। नई व्यवस्था के तहत FL-10 को जो कमीशन मिलता था, उसे कम करके ही शराब कंपनियां रेट कोट करेंगी। इससे शराब की कीमतें स्वाभाविक तौर पर कम होंगी।

2 महीने में नई व्यवस्था शुरू करने की तैयारी

शराब में बदली गई व्यवस्था 2 महीने में शुरू करने की तैयारी चल रही है। विभाग ने FL-10 लाइसेंसधारी कंपनियों को 2 महीने में स्टॉक खत्म करने के निर्देश दिए हैं। जितना स्टॉक बचेगा, उसे शराब कंपनियों को लौटाया जाएगा। साथ ही सरकार उनकी लाइसेंस फीस भी लौटाएगी।

हालांकि एग्रीमेंट के हिसाब से 31 मार्च 2025 तक FL-10 लाइसेंसधारकों को शराब की सप्लाई की जानी थी। जिसे लेकर वे कोर्ट जाने की भी तैयारी में हैं। वहीं, गणेश शंकर मिश्रा ने बताया कि इस तरह के फैसले लेने से पहले कैवियट दाखिल की गई है। यानी इस मामले में शासन का पक्ष सुने बगैर कोर्ट सीधे कोई आदेश नहीं करेगा।

अब शराब में नकली होलोग्राम स्कैम का एपिसोड जानिए…

ED की चार्जशीट के मुताबिक पिछली सरकार में शराब की स्केनिंग से बचने के लिए नकली होलोग्राम भी बनाया गया। जिसकी सप्लाई के बाद बॉटल में चिपकाया गया और बिना स्केनिंग के बिकने वाली शराब तैयार की गई। हर महीने शराब की 200 गाड़ियों की सप्लाई एजेंसियों के जरिए होती रही और अवैध शराब के 800 केस हर गाड़ी में रखे जाते थे।

560 रुपए में शराब मंगवाई जाती थी, जिसकी बिक्री 2880 रुपए की MRP पर की जाती थी। इसके बाद सप्लाई की संख्या बढ़ी और यह संख्या बढ़कर करीब 400 ट्रक प्रति माह हो गई। इसी तरह 2019 से 2022 तक छत्तीसगढ़ की सरकारी शराब दुकानों में 2161 करोड़ की अवैध शराब खपाई गई।

आबकारी विभाग के अधिकारी अरुणपति त्रिपाठी को होलोग्राम सप्लायर से अवैध कमीशन मिला और सिंडिकेट से एक बड़ा हिस्सा मिलता रहा। अपनी भूमिका के लिए हर मामले में त्रिपाठी 50 रुपए कमा रहे थे। अनुमान के मुताबिक शराब की लगभग 40 लाख पेटियां बेची गईं और इस तरह अकेले त्रिपाठी को 20 करोड़ रुपए मिले। ED को ये भी शक है कि कमाई का बड़ा हिस्सा विदेशों में जमा किया गया है।

जुलाई 2023 में नकली होलोग्राम मामले में ED के डिप्टी डायरेक्टर ने नोएडा के कासना थाने में FIR दर्ज कराई थी। 3 मई को यूपी STF ने प्रिज्म होलोग्राफी सिक्योरिटी फिल्म्स प्राइवेट लिमिटेड के मालिक विधु गुप्ता को गिरफ्तार किया था और पूछताछ में गुप्ता ने अनवर ढेबर और अरुणपति का नाम लिया था।

रिटायर्ड IAS अनिल, अनवर, अरुणपति और ढिल्लन मास्टरमाइंड

रायपुर की विशेष अदालत में 10 हजार पेज की चार्जशीट के साथ ही 200 पेज का आरोप पत्र भी पेश किया गया है। इस चार्जशीट में रिटायर्ड IAS ​​​​​अनिल टुटेजा, कारोबारी अनवर ढेबर, त्रिलोक ढिल्लन और आबकारी विभाग में अधिकारी रह चुके अरुणपति त्रिपाठी को घोटाले का मास्टरमाइंड बताया गया है।

दस्तावेजों में यह भी कहा गया है कि इन्हीं लोगों ने मिलकर सरकारी सिस्टम का दुरुपयोग कर बड़े भ्रष्टाचार को अंजाम दिया है। चार्जशीट में इस बात का भी जिक्र है कि घोटाले से मिली रकम को राजनीतिक साझेदारी के साथ बांटा गया। चार्जशीट में कारोबारियों और अधिकारियों के बीच हुए वॉट्सऐप चैट से लेकर शराब घोटाले के सिंडिकेट के बीच बंटे कामकाज का ब्योरा भी विस्तार से दिया गया है।

छत्तीसगढ़ के शराब घोटाला केस में 8 अप्रैल को मनी लॉन्ड्रिंग मामले में ED की ECIR को सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिया था। इससे IAS अनिल टुटेजा और उसके बेटे यश समेत 6 आरोपियों को राहत मिल गई थी। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद इस केस में ACB-EOW की FIR को आधार बनाते हुए ने ED ने नई ECIR दर्ज की।

इसके बाद ही ED ने अनिल टुटेजा को गिरफ्तार कर पूछताछ की थी। ED इस मामले में नए सिरे से जांच कर रही है। एजेंसी ने कहा है कि शराब घोटाले में अनवर ढेबर ने सिंडिकेट बनाया। इस सिंडिकेट में सबसे ज्यादा पावर अनिल टुटेजा को थी, जो कंट्रोलर की भूमिका में थे। ED ने उन्हें आर्किटेक्ट ऑफ लिकर स्कैम बताया है।

अनवर ढेबर 10 दिन यूपी की जेल में

कारोबारी अनवर ढेबर को नकली होलोग्राम मामले में यूपी पुलिस ने मेरठ कोर्ट में पेश किया। जहां कोर्ट ने आरोपी ढेबर को 10 दिन की न्यायिक हिरासत पर जेल भेज दिया है। मामले में अगली सुनवाई 1 जुलाई को होगी। अगली सुनवाई पर यूपी STF रिमांड के लिए आवेदन लगा सकती है। आबकारी विभाग के पूर्व विशेष सचिव अरुणपति त्रिपाठी को भी यूपी पुलिस ने नकली होलोग्राम मामले में गिरफ्तार किया है।

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