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आज भगवान जगन्नाथ का रथ तोड़ेंगी लक्ष्मीजी:बिना बताए मौसी के घर जाने से गुस्सा, पुजारी ने बताया क्या है परंपरा

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Acn18.com/दिल्ली से 1300 किलोमीटर भुवनेश्वर और वहां से 60 किलोमीटर दूर पुरी में भगवान जगन्नाथ का भव्य मंदिर। भगवान जगन्नाथ, बहन सुभद्रा और बड़े भाई बलदाऊ मंदिर से चले गए हैं। उनके रथ मंदिर से 3 किलोमीटर दूर गुंडिचा मंदिर के बाहर खड़े हैं। ये उनकी मौसी का घर है। तीनों यहां 9 दिन रहेंगे। जगन्नाथ मंदिर का आसन खाली है। साल में बस इन्हीं 9 दिन ये खाली होता है।

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मंदिर में फोटो लेने की मनाही है। मंदिर प्रशासन आसन की मरम्मत में लगा है। लेकिन, भगवान जगन्नाथ के साथ हमेशा विराजमान रहने वाली लक्ष्मी और सरस्वती भी वहां नहीं हैं। इधर-उधर देखा तो आसन से कुछ आगे दो मूर्तियों पर नजर गई। पुजारियों से पूछा तो पता चला ‘मां लक्ष्मी भगवान जगन्नाथ की तलाश में आसन छोड़कर बाहर आ गई हैं। सरस्वती भी उनके साथ हैं।’

भगवान जगन्नाथ के सबसे खास दोस्त नील माधव पूरे साल उनके पीछे रहते हैं। किसी को दिखाई नहीं पड़ते, वे अब लक्ष्मीजी के पीछे हैं। पुजारी बताते हैं कि ‘लक्ष्मीजी गुस्से में हैं कि जगन्नाथ उन्हें छोड़कर क्यों गए। नवविवाहित जोड़े के बीच बात न बिगड़े, इसलिए नील माधव लक्ष्मीजी को समझा रहे हैं, लेकिन लक्ष्मीजी बिगड़ चुकी हैं। क्या है पूरी कहानी, आइए जानते हैं…

जगन्नाथ यात्रा महोत्सव का आज 5वां दिन, हेरा पंचमी की परंपरा निभाई जाएगी
ओडिशा के पुरी में 20 जून से शुरू हुए भगवान जगन्नाथ यात्रा महोत्सव का आज 5वां दिन है। भगवान जगन्नाथ, भाई बलदेव और बहन सुभद्रा के साथ मौसी के घर हैं और 28 जून को लौटेंगे। इस बीच उत्सव की परंपराए निभाई जा रही हैं। इनमें आज सबसे खास हेरा पंचमी का रिवाज होगा।

हेरा पंचमी भगवान जगन्नाथ की पत्नी देवी लक्ष्मी से जुड़ी है। यात्रा से भक्त और पुजारी सब खुश हैं, पर लक्ष्मीजी खफा हैं। पति से नाराज देवी लक्ष्मी उनके रथ का पहिया तोड़ देती हैं। ये परंपरा आज रात 9 बजे होगी।

लक्ष्मीजी ने अपने विमान तैयार करने का आदेश दे दिया है। उनके सेवक विमान की धुलाई में लग गए हैं। ये विमान उड़ता नहीं, सेवक कंधों पर रखकर ले जाते हैं। सेवक भी वही चुने जाते हैं, जिनकी रफ्तार सबसे तेज होती है। मैंने मंदिर के अंदर सेवा में लगे व्यक्ति से पूछा- इसे विमान क्यों कहते हैं? उसने बताया, ‘ये प्रतीकात्मक है। विमान तैयार करने के आदेश का मतलब है कि लक्ष्मीजी जल्दी से जल्दी गुंडिचा मंदिर पहुंचना चाहती हैं।’

ये परंपरा है क्या और क्यों मनाई जाती है, हमने ये बात जगन्नाथ मंदिर में लक्ष्मीजी के मुख्य सेवक दुर्गा माधव से पूछी। वे बताते हैं, ‘भगवान जगन्नाथ का मौसी से मिलने जाना उनकी पत्नी लक्ष्मी को रास नहीं आता। अब उनका गुस्सा सातवें आसमान पर है। यही गुस्सा जगन्नाथ यात्रा के 5वें दिन सामने आता है।’

सेवक दुर्गा माधव मुस्कुराते हुए कहते हैं, ‘पति भाई-बहन को लेकर घूमने चले गए, पत्नी को लेकर नहीं गए, तो पत्नी गुस्सा होगी ही। शादी हुई, फिर पूर्णिमा स्नान और फिर 15 दिन बुखार। उसके बाद जगन्नाथजी रथ यात्रा पर निकल गए।’

‘रुक्मिणी हरण एकादशी को जगन्नाथ और रुक्मिणी का ब्याह हुआ। रुक्मिणी यानी लक्ष्मी का रूप। दूसरे दिन पूर्णमासी हुई। भगवान जगन्नाथ ने 108 तालाबों के पानी से खूब स्नान किया। फिर क्या था, बुखार चढ़ गया और 15 दिन इलाज में चले गए। विवाह के दौरान लगाई गई लक्ष्मी और जगन्नाथ की गांठ भी अभी नहीं खुल पाई।’

‘लक्ष्मी जी पहले ही परेशान और उदास थीं। भगवान जगन्नाथ ठीक हुए, भक्तों को दर्शन दिए और दो दिन बाद ही भाई बलदाऊ और बहन सुभद्रा को लेकर मौसी के घर चले गए।’

ये कहानी बताते वक्त बिल्कुल दुर्गा माधव के चेहरे पर वही भाव थे, जो घर के किसी नए विवाहित जोड़े के बीच होने वाली नोकझोंक के बारे में बताते वक्त होते हैं। दुर्गा माधव कहते हैं, ‘इधर लक्ष्मीजी को मंदिर में पति नहीं मिलते, तो वे बलराम की पत्नी और अपनी जेठानी विमला से पूछती हैं कि जगन्नाथ कहां हैं। जैसे ही उन्हें पता लगता है कि जगन्नाथ मौसी के घर गए हैं। उनका गुस्सा फूट पड़ता है। वे फौरन जेठानी से अनुमति लेकर ससुराल की तरफ चल देती हैं।’

‘वे ससुराल यानी गुंडिचा मंदिर पहुंचती हैं, तो भगवान जगन्नाथ डर के मारे दरवाजा बंद कर लेते हैं। वे उनसे नहीं मिलते।’

गुंडिचा मंदिर और जगन्नाथ जी के मंदिर के बीच की दूरी 3 किलोमीटर है। मान्यता है कि भगवान जगन्नाथ का जन्म यहीं हुआ था। दुर्गा माधव कहते हैं, ‘लक्ष्मीजी पति की बेरुखी से तमतमा उठती हैं। जगन्नाथ के दरवाजा न खोलने पर वे पति के रथ की एक लकड़ी निकालकर उसका पहिया तोड़ देती हैं और वापस अपने घर चली जाती हैं।’

ये सभी रिवाज दोनों पक्षों के पुजारी करते हैं। भगवान जगन्नाथ और लक्ष्मीजी के बीच बातचीत उनके पुजारियों के जरिए होती है। इसमें क्या कहा जाएगा, ये भी तय होता है। इस दिन को हेरा पंचमी के तौर पर मनाया जाता है। इसके बाद भगवान जगन्नाथ फौरन वापसी की तैयारी करते हैं। हेरा पंचमी के तीसरे दिन तीनों के रथ अपने मंदिर की तरफ मुड़ जाते हैं। यह भी एक धार्मिक संस्कार है, जिसे दक्षिणामुख कहते हैं।’

तो क्या लक्ष्मीजी भगवान जगन्नाथ को माफ कर देती हैं? ‘नहीं, रथ का पहिया तोड़ने के बाद भी उनका गुस्सा शांत नहीं होता। वे अपने मंदिर में गुस्से के साथ घुसती हैं। वहां नील माधव, जिन्हें जगन्नाथ का भाई जैसा दोस्त कह सकते हैं। वे लक्ष्मी को धैर्य रखने की सलाह देते हैं।’

आषाढ़ शुक्ल दशमी के दिन भगवान जगन्नाथ मां से मिलकर अपने घर या मंदिर के लिए रवाना हो जाते हैं। इसे बाहुड़ा यात्रा या वापसी की यात्रा कहते हैं। इस बार यह बाहुड़ा यात्रा 28 जून को होगी।

सेवक दुर्गा माधव कहते हैं, ‘लक्ष्मीजी भगवान जगन्नाथ का बेसब्री से इंतजार कर रही होती हैं। नील माधव उन्हें भरोसा दिलाते हैं कि वे जगन्नाथ से इस बारे में सवाल करेंगे। हर पति की तरह जगन्नाथ रूठी पत्नी को मनाने के लिए जतन करते हैं। वे लक्ष्मीजी से मिलने के लिए मंदिर में जाना चाहते हैं, लेकिन जैसे भगवान जगन्नाथ ने लक्ष्मीजी के लिए दरवाजे नहीं खोले थे, वे भी दरवाजा नहीं खोलती हैं। भगवान जगन्नाथ का रास्ता लक्ष्मी की दासियां रोकती हैं। इधर जगन्नाथजी की तरफ से कुछ सेवक होते हैं, तो उधर लक्ष्मी की हठी दासियां। इस संस्कार को नीलाद्री बिजे कहा जाता है।’

नील माधव की वजह से दोनों में होती है सुलह…
भगवान जगन्नाथ अपने खास दोस्त नील माधव की बात नहीं टालते। आखिरकार वे लक्ष्मी को मना लेते हैं। इसके लिए उन्हें खास तोहफा देना पड़ता है। ये खास तोहफा होता है सफेद रसगुल्ला।

दुर्गा माधव कहते हैं, ‘मान्यता है कि पुरी का मंदिर नील माधव ने ही बनवाया था। सामान्य दिनों में वे किसी को नहीं दिखते, क्योंकि वे भगवान जगन्नाथ के आसन के पीछे बैठे होते हैं। रथ यात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ का आसन खाली रहता है, तो नील माधव 10 दिन के लिए आसन के सामने बैठते हैं।

नीलाद्रि बिजे यानी जिस दिन भगवान जगन्नाथ घर या अपने मंदिर आने वाले होते हैं, उसी दिन वे लक्ष्मी के बगल में विराजमान होते हैं। ऐसा वे दोनों के बीच झगड़ा न बढ़ने देने के लिए करते हैं।

भगवान जगन्नाथ की दो पत्नी, लक्ष्मी नाराज, लेकिन सरस्वती का जिक्र नहीं…
मंदिर में भगवान जगन्नाथ के आसन के पास सरस्वती यानी भूदेवी और लक्ष्मी यानी श्रीदेवी विराजमान हैं। लक्ष्मी नई-नई ब्याह कर आई होती हैं, इसलिए वे पति के यात्रा पर जाने से गुस्सा हो जाती हैं। सरस्वतीजी का इस यात्रा में कोई किरदार नहीं होता। इसलिए उनका जिक्र भी नहीं होता।

भक्तों के सैलाब के बीच भगवान जगन्नाथ ने किया भक्त का इंतजार!
खैर, ये तो हुई परंपरा। उधर, जगन्नाथ मंदिर के बाहर भक्तों की भीड़ कम है। उनके भक्त गुंडिचा मंदिर के बाहर रथ के दर्शन के लिए खड़े हैं। भीड़ इतनी की चलने की जरूरत नहीं, आप खुद-ब-खुद आगे या पीछे पहुंचते रहेंगे।

इस बार पुजारी कह रहे हैं कि जगन्नाथजी का रथ देर से गुंडिचा मंदिर पहुंचा। भला क्यों? तो अलग-अलग लोगों ने एक ही कहानी बताई, ‘प्रभु तो प्रभु हैं, कई बार रथ आगे नहीं बढ़ने देते, शायद किसी भक्त को आने में देर हो गई, उसे दर्शन दिए बगैर कैसे मंदिर के भीतर जा सकते हैं।’

दरअसल उन्हें मंदिर से शाम के पहले गुंडिचा मंदिर जाना था, लेकिन इस बार रात हो गई। वे रात करीब 9:30 बजे रथ से उतरे। इसका कोई प्रमाण तो नहीं, पर शायद उन्हें जिस भक्त का इंतजार था वह आ गया हो। आस्था में सवाल नहीं होते। तभी तो सदियों से यहां हर साल रथ यात्रा होती है। भगवान जगन्नाथ 9 दिन के लिए अपनी मां जैसी रानी गुंडिचा के मंदिर जाते हैं। हर बार लक्ष्मी रूठती हैं और जगन्नाथ उन्हें मनाते हैं।

214 फीट ऊंचा मंदिर, रोज बदलता है ध्वज
भगवान जगन्नाथ की नगरी पुरी इन दिनों गुलजार है। ये रथयात्रा का असर है। यहां मूर्तियां बदलने, खाना बनाने तक के नियम हैं। 214 फीट ऊंचे इस मंदिर का ध्वज तो हर दिन बदला जाता है। इसमें एक दिन भी चूक नहीं होती। चाहे बारिश आए या तूफान। मान्यता है कि अगर एक दिन ध्वज नहीं बदला गया तो 18 साल के लिए मंदिर बंद हो जाएगा।

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