नई दिल्ली। हमास के घातक हमले के बाद इजरायल ने आतंकी संगठन के समूल नाश की तरफ कदम बढ़ा दिए हैं। इजरायल दुश्मनों से ऐसी कीमत वसूल करना चाहता है कि दोबारा कोई भी आतंकी संगठन उसकी सीमाओं में घुस कर नागरिकों या सुरक्षाबलों पर बड़े पैमाने पर हमला करने की जुर्रत न कर पाए। हालांकि इजरायल हमास संघर्ष ने सिर्फ अरब देशों और इजरायल के बीच संबंध सामान्य होने की प्रक्रिया को रोक दिया है। बल्कि इस संघर्ष ने इजरायल के खिलाफ अरब देशों की एकजुटता के खतरे को भी काफी बढ़ा दिया है।
फलस्तीनियों और अरबों के लिए इजरायल के साथ युद्ध सात अक्टूबर की सुबह हमास के हमले के साथ शुरू नहीं हुआ है। उनके लिए इजरायल के साथ लड़ाई 1948 से जारी है जब फलस्तीनियों को उनके घर से निकाला गया और हजारो फलस्तीनियों की हत्या की गई। इसे नकबा या तबाही कहा गया।
1948 में अरब देशों और नए राष्ट्र इजरायल के बीच पहला पहला संघर्ष हुआ था। पांच अरब देशों के सैन्य गठबंधन मिस्र, इराक, जार्डन, लेबनान और सीरिया ने इजरायल पर हमला किया था। हमले का नतीजा ये हुआ कि आधी से अधिक फलस्तीनी आबादी को स्थाई तौर पर विस्थापित होना पड़ा।
जंग का दौर
- 1956 के स्वेज संकट के बाद इजरायल और अरब देशों के संबंध और खराब हुए
- 1967 में मिस्र ने इजरायली पोतों के लिए तीरान खाड़ी बंद करने की घोषणा की
- 6 दिन के युद्ध में मिस्र ने गाजा पट्टी, सीरिया ने गोलन हाइट्स गवां दिया और जार्डन ने पूर्वी यरुशलम और वेस्ट बैंक से नियंत्रण खो दिया।
- 1969 और 1973 की लड़ाई इजरायल, मिस्र और सीरिया के बीच हुई। अमेरिका और सोवियत संघ ने भी अपने-अपने पक्ष की लड़ाई में मदद की।
अरब राष्ट्रवाद
अरब देशों ने इजरायल के साथ बार बार युद्ध किया और नतीजे के तौर पर न सिर्फ फलस्तीन बल्कि दूसरे अरब देशों को भी अपनी जमीन इजरायल के हाथों गंवानी पड़ी। 1950 और 1960 के दशक में अरब राष्ट्रवाद पूरे उभार पर था और इस दौर में फलस्तीन का मुद्दा अरब राष्ट्रवाद के केंद्र में रहा। कई अरब नेताओं की इसकी वजह से सत्ता भी मिली और जिन अरब नेताओं ने इजरायल के साथ संबंधों को सामान्य बनाने का प्रयास किया उनको इसकी कीमत चुकानी पड़ी।