spot_img

सेंधमारी में अव्वल BJP नीतीश से हारी: 6 साल में 4 राज्य सरकारें गिराईं, लेकिन बिहार में दूसरी बार अपनी ही सरकार गंवाई

Must Read

acn18.com नई दिल्ली। विपक्ष की सरकारें पलटने में माहिर भाजपा बिहार में नीतीश कुमार से हार गई। 9 साल में ऐसा दूसरी बार हुआ है, जब बिहार में भाजपा अपनी ही गठबंधन सरकार नहीं बचा पाई। इससे पहले 16 जून, 2013 को नीतीश कुमार ने भाजपा से नाता तोड़ा था और महागठबंधन के साथ मिलकर सरकार बनाई थी।

- Advertisement -

आइए जानते हैं कि आखिर बीते 6 साल में 7 राज्यों में सेंधमारी की कोशिश कर चुकी भाजपा 4 राज्यों में सरकार बनाने में तो कामयाब रही, लेकिन ऐसा क्या हुआ कि यही भाजपा बिहार में नीतीश कुमार से दो-दो बार मात खा गई।

9 साल और भाजपा-नीतीश के बीच गतिरोध की पूरी कहानी…
जून 2013 में गुजरात के तत्कालीन CM नरेंद्र मोदी को 2014 में होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए BJP की इलेक्शन कैंपेन कमेटी का अध्यक्ष बनाया गया। भाजपा नेता और बिहार के डिप्टी CM सुशील मोदी ने बयान दिया कि यह लोकसभा चुनाव नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में लड़ा जाएगा। नीतीश कुमार नरेंद्र मोदी को PM प्रोजेक्ट किए जाने को लेकर नाराज थे।

वे पहले ही ऐलान कर चुके थे कि BJP अगर मोदी को PM कैंडिडेट बनाती है, तो जदयू BJP से रिश्ता तोड़ लेगी। राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक, इस दौरान नीतीश कुमार अपनी सेक्युलर इमेज भी बचाना चाहते थे।

नीतीश ने BJP कोटे के दो मंत्रियों को मिलने के लिए बुलावा भेजा, लेकिन दोनों मंत्रियों ने मिलने से मना कर दिया। इनमें एक नेता थे डिप्टी CM और बिहार में NDA के संयोजक नंद किशोर यादव। यह BJP और जदयू में बढ़ती कड़वाहट का एक बड़ा उदाहरण था।

दोनों मंत्रियों ने बताया कि नीतीश उनसे BJP के PM कैंडिडेट और नरेंद्र मोदी से जुड़े मसले पर बात करना चाहते थे। उन्होंने नीतीश को संदेश भिजवाया कि इस मसले पर BJP का केंद्रीय नेतृत्व ही आपसे बात करेगा। वहीं, भाजपा कोटे के मंत्रियों ने ऑफिस जाना और सरकारी फाइलें निपटाना बंद कर दिया।

नीतीश ने भाजपा के सभी मंत्रियों को बर्खास्त कर दिया और 16 जून को गठबंधन से अलग हो गए। उस समय 243 सदस्यों वाली विधानसभा में जदयू के 118 सांसद थे, जबकि सरकार चलाने के लिए 122 के बहुमत की जरूरत थी। विधानसभा में BJP के 91 विधायक थे। सरकार में बने रहने के लिए नीतीश को सिर्फ 4 और विधायकों की जरूरत थी।

9 साल और भाजपा-नीतीश के बीच गतिरोध की पूरी कहानी…
जून 2013 में गुजरात के तत्कालीन CM नरेंद्र मोदी को 2014 में होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए BJP की इलेक्शन कैंपेन कमेटी का अध्यक्ष बनाया गया। भाजपा नेता और बिहार के डिप्टी CM सुशील मोदी ने बयान दिया कि यह लोकसभा चुनाव नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में लड़ा जाएगा। नीतीश कुमार नरेंद्र मोदी को PM प्रोजेक्ट किए जाने को लेकर नाराज थे।

वे पहले ही ऐलान कर चुके थे कि BJP अगर मोदी को PM कैंडिडेट बनाती है, तो जदयू BJP से रिश्ता तोड़ लेगी। राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक, इस दौरान नीतीश कुमार अपनी सेक्युलर इमेज भी बचाना चाहते थे।

नीतीश ने BJP कोटे के दो मंत्रियों को मिलने के लिए बुलावा भेजा, लेकिन दोनों मंत्रियों ने मिलने से मना कर दिया। इनमें एक नेता थे डिप्टी CM और बिहार में NDA के संयोजक नंद किशोर यादव। यह BJP और जदयू में बढ़ती कड़वाहट का एक बड़ा उदाहरण था।

दोनों मंत्रियों ने बताया कि नीतीश उनसे BJP के PM कैंडिडेट और नरेंद्र मोदी से जुड़े मसले पर बात करना चाहते थे। उन्होंने नीतीश को संदेश भिजवाया कि इस मसले पर BJP का केंद्रीय नेतृत्व ही आपसे बात करेगा। वहीं, भाजपा कोटे के मंत्रियों ने ऑफिस जाना और सरकारी फाइलें निपटाना बंद कर दिया।

नीतीश ने भाजपा के सभी मंत्रियों को बर्खास्त कर दिया और 16 जून को गठबंधन से अलग हो गए। उस समय 243 सदस्यों वाली विधानसभा में जदयू के 118 सांसद थे, जबकि सरकार चलाने के लिए 122 के बहुमत की जरूरत थी। विधानसभा में BJP के 91 विधायक थे। सरकार में बने रहने के लिए नीतीश को सिर्फ 4 और विधायकों की जरूरत थी।

BJP और जदयू के बीच केंद्र सरकार की पॉलिसी को लेकर कई बार मतभेद नजर आए। वन नेशन-वन इलेक्शन और अग्निपथ योजना को लेकर भी दोनों पार्टियों का स्टैंड अलग रहा। यूनिफॉर्म सिविल कोड और तीन तलाक जैसे मुद्दों पर भी जदयू BJP के खिलाफ रही।

इससे पहले मार्च 2022 में CM नीतीश कुमार ने BJP कोटे से विधानसभा स्पीकर विजय कुमार सिन्हा पर नियम तोड़ने का आरोप लगाया। सदन के अंदर और बाहर नीतीश कुमार और विजय सिन्हा के बीच विवाद भी हुआ। नीतीश यह भी चाहते थे कि उनकी सरकार में BJP कोटे से बनने वाले मंत्रियों पर उनका कंट्रोल हो, जबकि ऐसे मामलों में उनकी नहीं एक भी नहीं सुनी गई।

अब पढ़िए, बीते 6 साल में 7 राज्यों में भाजपा किन राज्यों में सेंधमारी में कामयाब रही और कहां उसे नाकामी हाथ लगी…

1महाराष्ट्र में उद्धव की शिवसेना में फूट का प्लान पास

शिवसेना के असंतुष्ट नेता एकनाथ शिंदे और उनके समर्थक विधायकों को BJP के पाले में करना और उद्धव सरकार को गिरा देना। इसके लिए BJP नेता और पूर्व CM देवेंद्र फडणनवीस के हाथ में कमान सौंपी गई।

क्या-क्या हुआ:
21 जून को शिंदे 35 से अधिक विधायकों के साथ गुजरात पहुंचे। उन्होंने 35 से अधिक विधायकों के साथ होने का दावा किया। 22 जून को शिंदे 40 विधायकों के साथ गुवाहाटी पहुंचे। 7 विधायकों ने शिंदे को शिवसेना विधायक दल का नेता घोषित किया।

मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा। 29 जून शीर्ष अदालत में सुनवाई हुई, अदालत ने विधानसभा में 30 जून को फ्लोर टेस्ट का आदेश दिया। उद्धव ने 29 जून को प्रेस कॉन्फ्रेंस कर इस्तीफा दे दिया। अगले दिन 30 जून को एकनाथ शिंदे ने CM पद की शपथ ली। साथ ही देवेंद्र फडणवीस ने डिप्टी CM के तौर पर शपथ ली। यहां BJP ने शपथ के 40वें दिन कैबिनेट विस्तार किया।

इससे पहले, 24 अक्टूबर 2019 को आए इलेक्शन रिजल्ट में BJP-शिवसेना गठबंधन को स्पष्ट बहुमत मिला था, लेकिन CM पद को लेकर BJP और शिवसेना अलग हो गईं। इसके बाद शिवसेना ने NCP और कांग्रेस से हाथ मिलकर सरकार बनाने की घोषणा की, लेकिन इसके एक दिन बाद 23 नवंबर 2019 को ही CM के तौर देवेंद्र फडणवीस ने शपथ ले ली।

फडणवीस के साथ अजित पवार ने भी डिप्टी CM पद की शपथ ली। NCP प्रमुख शरद पवार ने पार्टी के विधायकों को अजित के साथ जाने से रोक लिया। सुप्रीम कोर्ट ने फ्लोर टेस्ट का आदेश दिया। जब फडणवीस को लगा कि वह बहुमत नहीं हासिल कर पाएंगे तो उन्होंने 72 घंटे में ही CM पद से इस्तीफा दे दिया। यहां BJP की स्ट्रैटजी फेल हो गई।

2. मध्य प्रदेश में BJP की तख्तापलट मुहिम पास

कांग्रेस के असंतुष्ट नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके समर्थक विधायकों को BJP के पाले में करना और कमलनाथ की सरकार गिरा देना। इसके लिए BJP नेता नरोत्तम मिश्रा के हाथ में कमान सौंपी गई।

क्या-क्या हुआ:
2018 के विधानसभा चुनाव में किसी पार्टी को बहुमत नहीं मिला। कांग्रेस ने BSP और निर्दलियों की बैसाखी पर सरकार बनाई। एक तरफ सरकार के पास मजबूत संख्याबल नहीं था, दूसरी तरफ कांग्रेस नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया पार्टी में अपनी अनदेखी से परेशान थे।

‘ऑपरेशन लोटस’ के लिए ये सबसे मुफीद स्थिति थी। BJP के बड़े नेताओं ने सिंधिया से संपर्क साधा और 9 मार्च 2020 को सिंधिया ने अपने समर्थक विधायकों के साथ बगावत कर दी। इन विधायकों को चार्टर प्लेन से बेंगलुरु पहुंचा दिया गया।

तमाम कोशिशों के बाद भी सिंधिया नहीं माने और कमलनाथ सरकार अल्पमत में आ गई। 20 मार्च 2020 को महज 15 महीने मुख्यमंत्री रहने के बाद कमलनाथ ने इस्तीफा दे दिया और कांग्रेस सरकार गिर गई। शिवराज सिंह चौहान प्रदेश के नए मुख्यमंत्री बने।

3. राजस्थान में अशोक गहलोत का सिंहासन हिलाने की कोशिश फेल

राजस्थान का CM नहीं बन पाने के कारण नाराज सचिन पायलट के जरिए कांग्रेस विधायकों को BJP के पाले में कर अशोक गहलोत की सरकार को गिराना। इसके लिए राजस्थान BJP की स्टेट यूनिट को अहम जिम्मेदारी सौंपी गई।

क्या-क्या हुआ:

राजस्थान में 2018 के चुनाव में कांग्रेस ने 100 सीटें जीतकर मुश्किल से बहुमत आंकड़ा छुआ था। बसपा और निर्दलियों को कांग्रेस के पाले में कर CM अशोक गहलोत ने अपनी कुर्सी मजबूत करने की कोशिश की। वहीं विधानसभा में कांग्रेस का चेहरा रहे सचिन पायलट ने CM बनने के लिए अपनी कोशिशें जारी रखीं।

ऐसे में BJP के ‘ऑपरेशन लोटस’ के लिए सचिन पायलट सबसे मुफीद चेहरा थे। राजस्थान BJP के नेताओं ने उनकी नाराजगी को भांप उनसे संपर्क किया। 11 जुलाई 2020 सचिन पायलट ने गहलोत के खिलाफ मोर्चा खोल दिया और कांग्रेस के 18 विधायकों के साथ गुरुग्राम के एक होटल में पहुंच गए।

गहलोत भी अपनी कुर्सी बचाने के लिए एक्टिव हो गए। सबसे पहले उन्होंने अपने पाले वाले विधायकों को एक होटल में रखा। इसके बाद प्रियंका गांधी वाड्रा ने सचिन पायलट से 10 अगस्त 2020 को बातचीत कर उन्हें मना लिया। यहां पर गहलोत भारी पड़े। BJP की कांग्रेस विधायकों को तोड़ने की स्ट्रैटजी विफल हो गई।

4. कर्नाटक में कुमारस्वामी को सत्ता से बेदखल करने का प्लान पास

कांग्रेस और JDS के विधायकों को अपने पाले में करके विधानसभा में बहुमत का आंकड़ा कम करना और BJP की सरकार बनाना। BJP ने बीएस येदियुरप्पा को इस पूरी स्ट्रैटजी की कमान सौंपी।

क्या-क्या हुआ:

2017 के कर्नाटक विधानसभा चुनाव में BJP 104 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। BJP नेता बीएस येदियुरप्पा ने CM पद की शपथ भी ले ली, लेकिन फ्लोर टेस्ट पास नहीं कर पाए। सरकार गिर गई।

इसके बाद कांग्रेस के 80 और JDS के 37 विधायकों ने मिलकर सरकार बना ली। 2 साल भी पूरे नहीं हुए थे कि पॉलिटिकल क्राइसिस शुरू हो गई। जुलाई 2019 में कांग्रेस के 12 और JDS के 3 विधायक बागी हो गए।

कांग्रेस-JDS सरकार के पास 101 सीटें बचीं। वहीं BJP की 105 सीटें बरकरार रहीं। मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और वहां से फ्लोर टेस्ट का आदेश दिया गया। सरकार फ्लोर टेस्ट में फेल हो गई और CM कुमारस्वामी ने इस्तीफा दे दिया।

अब इस कहानी की सबसे ताकतवर तस्वीर देखिए…

कर्नाटक के उस वक्त के मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी राज्यपाल को अपना इस्तीफा सौंपते हुए। इसके बाद 26 जुलाई 2019 को बीएस येदियुरप्पा ने एक बार फिर कर्नाटक के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली।

कर्नाटक के उस वक्त के मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी राज्यपाल को अपना इस्तीफा सौंपते हुए। इसके बाद 26 जुलाई 2019 को बीएस येदियुरप्पा ने एक बार फिर कर्नाटक के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली।

5. गोवा में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी, फिर भी बनी ‌BJP सरकार

कम सीटें होने के बावजूद सरकार बनाने का दावा पहले पेश करना।

क्या-क्या हुआ:

फरवरी 2017 के गोवा विधानसभा चुनाव में किसी पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिला, लेकिन कांग्रेस 17 सीटों के साथ सबसे बड़ा पार्टी बनकर उभरी। सत्ता की चाबी छोटे दलों और निर्दलियों के हाथ में थी।

मनोहर पर्रिकर ने 21 विधायकों के समर्थन की बात कहते हुए सरकार बनाने का दावा पेश किया। राज्यपाल मृदुला सिन्हा ने उन्हें सरकार गठन का न्यौता दे दिया। राहुल गांधी ने आरोप लगाया कि गोवा में कांग्रेस के बहुमत का BJP ने हरण कर लिया। कांग्रेस का तर्क था कि सबसे बड़ी पार्टी होने के नाते सरकार गठन के लिए उन्हें पहले बुलाया जाना चाहिए था।

6. अरुणाचल प्रदेश में पूरी कांग्रेस पार्टी ही बागी हो गई

कांग्रेस के दो तिहाई से ज्यादा विधायकों को तोड़कर नई सरकार बनाना।

क्या क्या हुआः

2014 चुनाव के बाद अरुणाचल प्रदेश में कांग्रेस ने पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई। हालांकि कांग्रेस के नेताओं के बीच की रंजिश खुलकर सामने आती रही।

आखिरकार 16 सितंबर 2016 को कांग्रेस पार्टी के मुख्यमंत्री पेमा खांडू और 42 विधायक पार्टी छोड़कर पीपुल्स पार्टी ऑफ अरुणाचल प्रदेश में शामिल हो गए। PPA ने BJP के साथ मिलकर सरकार बनाई।

7. उत्तराखंड में सुप्रीम कोर्ट के चलते BJP की स्ट्रैटजी फेल हुई

CM पद से हटाए गए कांग्रेस नेता विजय बहुगुणा की नाराजगी को भुनाकर कांग्रेस को तोड़ना और विधानसभा में बहुमत हासिल करना था।

क्या-क्या हुआ:

उत्तराखंड में 2012 के विधानसभा चुनाव में त्रिशंकु विधानसभा रही। कांग्रेस 32 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनी, जबकि BJP को 31 सीटें मिलीं। ऐसे में BJP इस हार को पचा नहीं पा रही थी, लेकिन जैसे ही कांग्रेस ने केदारनाथ आपदा के बाद विजय बहुगुणा को हटाकर 2014 में हरीश रावत को CM बनाया, BJP को यहां उम्मीदें दिखने लगीं।

BJP बहुगुणा की नाराजगी का फायदा उठाया। 18 मार्च 2016 को बहुगुणा समेत कांग्रेस के 9 विधायक बागी हो गए। हालांकि, उत्तराखंड के स्पीकर ने जब कांग्रेस के 9 बागियों को अयोग्य घोषित कर दिया तो केंद्र सरकार ने उसी दिन राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया।

इसके बाद सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर बागी विधायकों को दूर रखते हुए शक्ति परीक्षण कराया गया। 11 मई 2016 को बहुमत परीक्षण में रावत की जीत हुई। सुप्रीम कोर्ट के चलते यहां भी विधायकों को तोड़ने का BJP का पैंतरा काम नहीं आया।

पिछले सात राज्यों की स्टडी से पता चलता है कि ‘ऑपरेशन लोटस’ के तहत BJP दो तरह की रणनीति अपनाती है। पहला- विपक्षी पार्टी के नाराज गुट को अपने पाले में करके सरकार बनाना। दूसरा- छोटे दलों और निर्दलियों को अपने पाले में करके सरकार बनाना।

नहर में रिसाव,पानी जा घुसा बस्ती में,लोग दहशत में,देखिए वीडियो

377FansLike
57FollowersFollow


v

377FansLike
57FollowersFollow
Latest News

नदी में तैरते हुए मिली व्यक्ति की लाश,पुलिस कर रही मामले की जांच

Acn18.com/मछली पकड़ने के दौरान नदी में डूबने से एक व्यक्ति की मौत हो गई। मृतक का शव भिलाईखुर्द स्थित...

More Articles Like This

- Advertisement -