जब से दुनिया शुरू हुई तभी से समय का गणित चला आ रहा है। इसे हिंदू धर्म और ज्योतिष में काल गणना कहा जाता है। इसके कैलकुलेशन के हिसाब से आज से दुनिया का 1 अरब 97 करोड़ 29 लाख 40 हजार125वां साल शुरू हो चुका है। इसे हम आज हिंदू नववर्ष के तौर पर मना रहे हैं।
दुनिया की शुरुआत से अब तक अलग-अलग काल में बने कुल कैलेंडर तकरीबन 30 के आसपास है। वहीं, सिर्फ भारत में 20 पंचांग अब तक बन चुके हैं।
हर युग में ग्रहों की चाल बदलती है, जिससे मौसम भी आगे-पीछे होता है। इस कारण सटीक काल गणना के लिए भी गणित का तरीका बदलता रहा।
कैसे होती है कालगणना
वक्त का हिसाब-किताब लगाने के लिए सूर्य, चंद्रमा और पृथ्वी, तीनों की चाल समझना बहुत जरूरी है। पृथ्वी पर दिन-रात होने और मौसम बदलने के जिम्मेदार सूर्य और चंद्रमा ही हैं। पृथ्वी, चंद्रमा के साथ सूर्य का चक्कर लगाती है। इस कारण, तीनों की चाल समझ कर ही सटीक काल गणना हो सकती है। इसके लिए ज्योतिष की किताबों में कई तरह सूत्र और सिद्धांत दिए गए हैं, जिनसे ये गणना की जाती है।
हर युग में राजाओं ने चलाए अपने कैलेंडर
राजा नया संवत इसलिए चलाते थे ताकि प्रजा में ये संदेश जाए कि नए युग की शुरुआत हो रही है। ऐसा नहीं है कि हर राजा नया संवत चला सकता था, कई राजा पुरानी काल गणना को ही अपने समय में मान्यता भी देते थे।
परंपरा और शास्त्रों की विधि के मुताबिक नया संवत शुरू होने से पहले राजा को अपने राज्य के सभी लोगों का कर्ज चुकाना पड़ता था। इसके बाद ही नया संवत शुरू हो पाता था।
अब बात करते हैं विक्रम संवत की…
परमार वंश के राजा उज्जैन के विक्रमादित्य ने ये कैलेंडर चलाया था। इसकी शुरुआत की तिथि 57-58 ईसापूर्व मानी जाती है। इस हिसाब से ये 2080 साल पुराना कैलेंडर है।
राजा विक्रमादित्य के दरबार के नौ रत्नों में एक ज्योतिषाचार्य वराहमिहिर भी थे। जिनकी मदद से इस संवत में सटीक गणना की गई। आचार्य वराह मिहिर ने कई ज्योतिष ग्रंथों की रचना की थी, जो आज भी ज्योतिष के विद्यार्थियों को पढ़ाए जाते हैं।
विक्रम संवत के महीने देवताओं या इंसानों के नाम पर नहीं बल्कि सूर्य और चंद्रमा की चाल के आधार पर हैं। जो कि ज्योतिर्विज्ञान की मदद से बना है इसलिए इसे वैज्ञानिक और प्रामाणिक संवत माना जाता है। सालभर के तीज-त्योहारों की तारीखें इसी कैलेंडर के हिसाब से तय होती हैं।
विक्रम संवत् की शुरुआत और महीनों को लेकर उत्तरी-दक्षिणी भारत में भेद…
उत्तरी भारत में विक्रम संवत् की शुरुआत चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को मानी जाती है। वहीं, पूर्णिमा के अगले दिन से नए महीने की शुरुआत होती है। इसलिए उत्तरी विक्रम संवत् के महीने पूर्णिमान्त कहे जाते हैं।
दक्षिण भारत में विक्रम संवत् की शुरुआत कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को होती है। इसमें अमावस्या के अगले दिन से नया महीना शुरू होता है। इसलिए दक्षिण विक्रम संवत् के महीने अमान्त कहे जाते हैं।
सोर्स –
ग्रंथ: महाभारत, ब्रह्मांड पुराण, वायु पुराण और सूर्य सिद्धांत
एक्सपर्ट –
1. डॉ. गणेश मिश्र, असि. प्रो. ज्योतिष विभाग, केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, पुरी
2. डॉ.कृष्ण कुमार भार्गव, केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, तिरूपति
3. प्रो.अरुण उपाध्याय, प्राच्य विद्या रिसर्चर, पुरी
4. डॉ. रामेश्वर शर्मा, असि. प्रो. ज्योतिष विभाग, बीएचयू बनारस