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सावन सोमवार को महाकाल का भी उपवास:भस्म आरती के दौरान मंदिर में प्रवेश से पहले घंटी बजाकर आज्ञा लेनी होती है

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Acn18.com/आज सावन महीने का पहला सोमवार है। उज्जैन में भगवान महाकाल की झलक पाने के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ रही है। तीनों लोक में जिन तीन शिवलिंगों को पूज्य माना गया है, उसमें पृथ्वी लोक पर भगवान महाकाल की प्रधानता है, जो उज्जैन में विराजमान हैं।

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आकाशे तारकांलिंगम्, पाताले हाटकेश्वरम्।
मृत्युलोके महाकालं, सर्वलिंग नमोस्तुते।।

यानी आकाश में तारकलिंग, पाताल में हाटकेश्वर और पृथ्वी लोक में महाकाल की प्रधानता है। इसी तरह देश की सभी दिशाओं में द्वादश ज्योतिर्लिंग हैं। इनमें केदारनाथ उत्तर में, रामेश्वर दक्षिण में, सोमनाथ पश्चिम में, मल्लिकार्जुन पूर्व में और मध्य में भगवान महाकाल। महाकालेश्वर एक मात्र ज्योतिर्लिंग है, जो दक्षिणमुखी है। सावन के सोमवार को लेकर महाकालेश्वर भगवान का अपना प्रोटोकॉल होता है। ये बात कम ही लोग जानते हैं कि सावन महीने के हर सोमवार को भगवान महाकाल भी व्रत रखते हैं।

चूंकि भगवान महाकाल को उज्जैन का राजा माना जाता है, इसलिए सोमवार को सवारी के रूप में प्रजा का हाल जानने निकलते हैं। इसके बाद ही वे नैवेध (भोग) ग्रहण करते हैं। राजा की तरह भगवान महाकाल का भी प्रोटोकॉल होता है। वैसे तो, भस्म आरती से लेकर शयन आरती तक का प्रोटोकॉल प्रतिदिन का होता है। सावन में इतना फर्क रहता है कि सावन के प्रत्येक सोमवार को भगवान महाकाल व्रत रखते हैं।

महाकाल के प्रोटोकॉल और उनके रुटीन को जानने के लिए महाकाल मंदिर के पुजारी पंडित महेश शर्मा से बात की। पंडित महेश शर्मा ने भस्म आरती से लेकर शयन आरती तक के प्रोटोकॉल के बारे में बताया…

‘राजाधिराज भगवान महाकाल को रोजाना अल सुबह भस्म आरती के लिए जगाया जाता है। उन्हें जगाने से लेकर रात में शयन आरती तक कई नियम हैं, जिनका पूरी सख्ती और पवित्रता के साथ पालन किया जाता है। महाकाल मंदिर में अल सुबह भगवान महाकाल की भस्म आरती का विधान है, लेकिन इस प्रक्रिया में नियमों का पालन करना जरूरी है। महाकाल को राजा के रूप में पूजा जाता है। भस्म आरती सावन महीने में प्रति सोमवार को 2:30 बजे और बाकी दिनों में 3 बजे शुरू होती है।

कम ही लोगों को पता होगा कि आखिर इसके लिए भगवान महाकाल क्या प्रोटोकॉल होता है। महाकाल मंदिर में भस्म आरती सिर्फ 16 पुजारी या उनका परिवार ही कर सकता है। प्रत्येक 6-6 महीने में भस्म आरती करने वाले पुजारी बदलते हैं। इस दौरान पुजारी पवित्रता का पूरा ध्यान रखते हैं। जिस दिन भगवान की आरती करनी होती है, उस दिन ब्रह्मचारी की तरह रहते हैं। घर से स्नान कर सुबह 2:30 बजे मंदिर के मुख्य द्वार पर पहुंचते हैं। यहां पुजारी एक बार फिर मंदिर की कोटि तीर्थ का जल लेकर खुद को शुद्ध करते हैं। मंदिर में प्रवेश से पहले घंटी बजाकर भगवान से आज्ञा लेनी पड़ती है।

देश के 12 ज्योतिर्लिंगों में सिर्फ महाकाल का मंदिर ही है, जहां भगवान राजा के रूप में पूजे जाते हैं। आरती करने वाले मंदिर के अंदर ही वस्त्र पहनते हैं। मुख्य द्वार का ताला खोलने से पहले जल से शुद्ध किया जाता है। पहले वीरभद्र को स्नान कराया जाता है। पहली घंटी बजाकर अंदर आने की आज्ञा ली जाती है। घंटी बजाने का मतलब है महाकाल भगवान को जगाना…। पुजारियों के मंदिर में प्रवेश से पहले भगवान को सचेत करना। इसके बाद चांदी द्वार पर भगवान गणेश की पूजा करने के बाद गर्भगृह में स्थित माता पार्वती, गणेश और कार्तिकेय भगवान का पूजन अभिषेक किया जाता है।

मंदिर में वर्षों से प्रज्जवलित दोनों दीपक की सफाई की जाती है। दूसरी बार घंटी बजाने के बाद ही भक्तों को भस्म आरती के लिए प्रवेश मिलता है। इस दौरान 16 मंत्रों का पाठ किया जाता है। जिसमें भगवान का ध्यान मंत्र, आह्वान मंत्र, आसन मंत्र, पाद्य मंत्र (पैर धोना), अर्घ्य मंत्र, आचमन मंत्र समेत कुल 16 मंत्रों के साथ गंधक अष्टक बेल पत्र चढ़ाकर दूध, दही, घी, शहद, शक्कर से बने पंचामृत का पूजन अभिषेक किया जाता है। इत्र, भांग और गन्ने का रस अर्पित किया जाता है। सप्त नदी का ध्यान कर जल चढ़ाया जाता है। इसके बाद जलाधारी की सफाई कर गंधक अर्पित करने के लिए 16 मंत्र रुद्री पाठ कर भगवान का स्नान खत्म होता है। इस प्रक्रिया के बाद भगवान को जल चढ़ाना बंद हो जाता है।

भगवान महाकाल के बाद नंदी जी का जलाभिषेक किया जाता है। भगवान महाकाल का रोजाना भांग, चंदन, ड्राय फ्रूट से शृंगार किया जाता है। इस प्रक्रिया में दो से ढाई घंटे लग जाते हैं। इसका अनुभव दिव्य होता है। यहां भगवान महाकाल को साक्षात शिव से शंकर होते हुए देख सकते हैं। शृंगार के बाद श्री पंचायती महानिर्वाणी अखाड़ा के महंत भगवान महाकाल को भस्म अर्पित करते हैं।

निराकार से साकार रूप में होते हैं दर्शन

मान्यता है कि भगवान महाकाल के कई रूप हैं। कभी वे निराकर, तो कभी साकार होते हैं। कभी राजा हैं, तो कभी अर्द्धनारीश्वर होते हैं। भगवान शिव को अलग-अलग रूप बदलते हुए सिर्फ उज्जैन के महाकाल मंदिर में देखा जा सकता है। दरअसल, महाकाल मंदिर के पट खुलने से लेकर भस्म रमाने तक भगवान निराकार रूप में दर्शन देते हैं। इसके बाद बाबा महाकाल का रूप बदलता है। फिर एक राजा की तरह भगवान महाकाल का शृंगार किया जाता है। भस्म रमाने के बाद पंडे पुजारी महाकाल को आभूषण, रुद्राक्ष की माला, मुण्डमाल, बेल पत्र, शेषनाग का रजत मुकुट सहित फल मिष्ठान का भोग लगाकर उन्हें साकार रूप में शृंगारित कर देते हैं।

भस्म आरती के समय घूंघट में रहती हैं महिलाएं

भस्म आरती के दौरान शिव से शंकर बनने की प्रक्रिया में भगवान दिगंबर रूप में रहते हैं, इसलिए भगवान के सामने मर्यादा का पालन करते हुए महिलाओं को भस्म अर्पित करने के दौरान घूंघट की आड़ लेने के लिए कहा जाता है। भस्म चढ़ने के बाद भगवान फिर साकार रूप में आ जाते हैं यानी शंकर बन जाते हैं। तब घूंघट हटाने को कहा जाता है। इसके बाद आरती होती है।

विष्णु तुल्य महाकाल की पूजा कंकु और तुलसी से करते हैं

एक मात्र महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग को शिव व विष्णु का संयुक्त प्रतीक माना जाता है। इन्हें विष्णु तुल्य भी माना जाता है, इसीलिए यहां रोली (कंकु) व तुलसी भी चढ़ाई जाती है। अन्य किसी भी शिवलिंग को रोली व तुलसी नहीं चढ़ाई जाती है, इसलिए महाकाल का अभिषेक मंदिर परिसर में बने कोटि तीर्थ के जल से किया जाता है। यह परंपरा महाकाल मंदिर में रोजाना भस्म आरती में शामिल होने वाली महिलाएं ही निभाती हैं। इसी जल को हरिओम जल कहा जाता है।

भगवान के जागने से लेकर रात को सोने तक 5 आरतियां

श्री महाकालेश्वर एक, लेकिन रूप अनेक हैं। विश्व में अकेले श्री महाकाल हैं, जो विविध रूपों में भक्तों को दर्शन देते हैं। कभी प्राकृतिक रूप में तो कभी राजसी रूप में। भगवान महाकाल कभी भांग, कभी चंदन और सूखे मेवे से तो कभी फल-फूल से श्रृंगारित होते हैं। भगवान श्री महाकाल की भस्म आरती से लेकर शयन आरती तक प्रतिदिन पांच आरती होती है।

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