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मरही माता मंदिर से पहले ट्रेनों के भी थम जाते हैं पहिए, वन देवी के प्रति श्रद्धालुओं की आस्था गहरी

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acn18.com मुंगेली। यहां से करीब 70 किमी दूर छत्तीसगढ़ के सतपुड़ा कहलाने वाले पहाड़ पर भनवारटंक स्टेशन है। यहां से लगे वन देवी मां मरही माता मंदिर की ख्याति इसलिए क्योंकि यहां के लिए सड़क ही नहीं है। कठिनाई के बाद भी दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं।

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मंदिर बिलासपुर-कटनी रेललाइन के किनारे है। यहां रोज सैकड़ों श्रद्धालु पटरियों पर चलते हुए पहुंचते हैं। मंदिर से कुछ ही दूरी पर भनवारटंक रेलवे स्टेशन है। श्रद्धालु पटरियों पर रहते हैं, इसलिए उनकी सुरक्षा के लिए मंदिर समिति ने दो गार्ड लगा रखे हैं। किसी भी लाइन पर जैसे ही ट्रेन आती है, वे श्रद्धालुओं को सावधान करते हुए रेलवे ट्रैक पार नहीं करने देते। ट्रेन के जाते ही श्रद्धालु फिर पटरियों पर नजर आने लगते हैं।

भनवारटंक से जाते हैं पैदल

दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे क्षेत्र में स्थित इस मंदिर तक श्रद्धालु सड़क मार्ग और रेल मार्ग दोनों से पहुंच सकते हैं। मां की महिमा का अंदाज इसी बात से लगाया जा सकता है कि यहां से गुजरने वाले ट्रेनों की रफ्तार भी मंदिर के सामने धीमी हो जाती है। मंदिर में चैत्र नवरात्र को विशेष पूजा अर्चना होती है। नौ दिनों तक होने वाली विशेष पूजा अर्चना में भारी संख्या में श्रद्धालु शामिल होते हैं। मंदिर में मंनत पूरी होने के बाद बलि देने की परंपरा है, पर नवरात्र के नौ दिनों में इस पर रोक लगी होती है।

ट्रेन हादसे के बाद स्थापित किया गया मंदिर

ज्ञात हो कि सन 1984 में इंदौर-बिलासपुर नर्मदा एक्सप्रेस रेल हादसा हुआ था। इसके बाद रेलवे और वन विभाग कर्मचारियों ने मरही माता की मूर्ति को यहां पर विराजित किया था। फिर छोटे से मंदिर का निर्माण कराया गया। मान्यता है मरही माता के आशीर्वाद से ही बिलासपुर-कटनी रेल रूट पर जंगल और पहाड़ी क्षेत्र भनवारटंक में हादसे से रक्षा होती है। मरही माता की महिमा और यश को बताने के लिए नवरात्र में श्रद्धालुओं के लिए भंडारे का भी आयोजन कराया जाता है। मुंगेली , बिलासपुर सहित आसपास जिले के श्रद्धालु यहां आसानी से पहुंचते हैं।

श्रद्धालु नारियल बांध कर मांगते हैं मनौती

गौरेला -पेंड्रा -मरवाही जिला और बिलासपुर के बीच भनवारटंक रेलवे स्टेशन है। जंगल के बीचों-बीच होने के कारण दुर्गम स्थल में से एक है। स्टेशन के पास ही मरही माता मंदिर है। श्रद्धालुओं की आस्था गहरी होने के कारण मंदिर में सदैव भीड़ लगी रहती है। वर्ष के दोनों नवरात्र पर ज्योति कलश स्थापित कर पूजा अर्चना की जाती है। यहां श्रद्धालु नारियल बांध कर मनौती मांगते हैं और पूरी होने पर दर्शन करने पहुंचते हैं।।

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