राजधानी में मौसम बदलने के साथ ही कुत्तों के हिंसक होने की वारदातें बढ़ गईं हैं। पिछले एक माह में कुत्तों ने करीब 500 सौ से ज्यादा लोगों को काट लिया है। किसी भी इलाके में अचानक कुत्ते िहंसक होकर बच्चों के साथ-साथ बुजुर्गों और युवाओं पर भी हमला कर रहे हैं। केवल अंबेडकर अस्पताल में रोज औसतन 10 डॉग बाइट के केस पहुंच रहे हैं। प्राइवेट अस्पतालों और नर्सिंग होम में भी 5-7 केस पहुंचते हैं।
शहर में आवारा घूमने वाले कुत्तों की संख्या 40 हजार से ज्यादा हो चुकी है। निगम का नसबंदी अभियान फेल हो चुका है। फिलहाल कुत्तों की नसबंदी ही नहीं की जा रही है। कुत्तों को पकड़कर बाड़े में रखने का प्लान एक साल होने के बाद भी फाइलों से बाहर नहीं आया है। अधिकारी पांच एकड़ जमीन मिलने की बात कह रहे हैं, लेकिन इसके बाद इस योजना में कुछ नहीं किया गया।
गुढि़यारी में एक ही दिन में कुछ घंटों के भीतर 4 छोटे बच्चों को पागल कुत्ते ने काटकर घायल कर दिया। उसने करीब एक दर्जन से ज्यादा लोगों पर हमला भी किया। घटना के बाद भास्कर ने अंबेडकर अस्पताल से लेकर शहर के एक दर्जन छोटे बड़े अस्पतालों में कुत्ते काटने के केस की पड़ताल की। सरकारी के साथ-साथ निजी अस्पतालों में भी कुत्ता काटने के पीड़ित पहुंच रहे हैं।
लगातार बढ़ रही संख्या, निगम के प्रयास शून्य
शहर के कुत्तों से लोगों को राहत दिलाने के नाम पर निगम के प्रयास शून्य हैं। फिलहाल कोई प्रयास नहीं किया जा रहा है। आउटर और आस-पास के ग्रामीण इलाकों में छोड़ने का फार्मूला भारी विरोध के कारण फेल हो चुका है। कुत्तों की नसबंदी करने की योजना भी फ्लॉप हो गई है, जबकि बधियाकरण में ही दो साल पहले निगम 50 लाख से ज्यादा खर्च कर चुका है।
कुत्तों की संख्या कम होने के बजाय बढ़ गई है। कुत्तों के नसबंदी सेंटर भी एक तरह से बंद है। निगम के अफसर कह रहे हैं डाॅग स्टरलाइजेशन सेंटर और अस्पताल को भी अटारी में बाड़ा बनने के बाद शिफ्ट कर दिया जाएगा। डॉग पौंड का संचालन निगम और शहर के सामाजिक संगठन तथा डॉग लवर्स मिलकर करेंगे। इसके लिए कई संगठनों से सहमति भी ली गई है। कई संस्थाएं ऐसी हैं जिनमें 100 से ज्यादा लोगों की टीम है। इनमें बड़ी संख्या में वेटनरी डाक्टर्स हैं और वालंटियर्स भी शामिल हैं। लेकिन ये बातें सिर्फ बातें ही हैं। इसमें किसी भी योजना में कोई काम नहीं हो रहा है।
सिर के पास कुत्ते ने काटा तो खतरनाक एंटी रैबीज के साथ इमोनोग्लोबीन इंजेक्शन भी लगाना बेहतर
कुत्ता अगर आवारा है तो सावधानी जरूरी है। खासतौर पर अगर सिर के पास काटा है तो एंटी रैबीज के साथ इमोनोग्लोबीन इंजेक्शन लगाना भी जरूरी है। एंटी रैबीज इंजेक्शन का असर कुछ दिनों बाद शुरू होता है। इस दौरान कई बार कुत्ते के वायरस एक्टिव होकर दुष्प्रभाव फैलाने लगते हैं। इमोनोग्लोबीन इंजेक्शन तुरंत ही कुत्ते के वायरस को एक्टिव होने से रोकता है। कुत्ते ने अगर सिर के पास काटा है तो तुरंत ही एंटी रैबीज के साथ ये इंजेक्शन लगवाना जरूरी है। रैबीज के वायरल नसों के जरिये ब्रेन तक पहुंचते हैं। सिर के आस-पास काटने पर उसका असर तेजी से ब्रेन तक पहुंचता है। इसलिए कुत्ते के काटने की जगह भी ध्यान देना जरूरी है।
डा. योगेंद्र मल्होत्रा, मेडिसिन विशेषज्ञ