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आरक्षण देने विधेयक लाएगी छत्तीसगढ़ सरकार:विधानसभा सत्र के लिए आधी रात तक काम कर रहा मुख्यमंत्री सचिवालय, 24 को कैबिनेट में लगेगी मुहर

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ACN18.COM रायपुर/छत्तीसगढ़ में आरक्षण खत्म होने से मचे घमासान के बीच राज्य सरकार आरक्षण संशोधन विधेयक लाने जा रही है। इसी के लिए एक और दो दिसम्बर को विधानसभा का विशेष सत्र बुलाया गया है। सत्र में पेश होने वाले विधेयकों और मुख्यमंत्री के भाषण की तैयारियों के लिए मुख्यमंत्री सचिवालय आधी रात तक काम कर रहा है। बताया जा रहा है, आरक्षण पर संशोधन विधेयकों का प्रारूप लगभग तैयार है। इसको 24 नवम्बर को होने वाली राज्य कैबिनेट की बैठक में मंजूरी दी जाएगी।

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एक वरिष्ठ मंत्री ने बताया, “राज्य सरकार आरक्षण को लेकर बहुत गंभीर है। परिस्थितियों को देखते हुए तय हुआ था कि आरक्षण अधिनियम के जिन प्रावधानों को उच्च न्यायालय में रद्द किया है, उसे कानून के जरिये फिर से प्रभावी किया जाए। इसके लिए हम विधेयक ला रहे हैं। दो दिसम्बर को इसे पारित करा लिया जाएगा।’ बताया जा रहा है, सरकार इस विधेयक के साथ एक संकल्प पारित करने पर विचार कर रही है। इसमें केंद्र सरकार से आग्रह किया जाएगा कि वह छत्तीसगढ़ के आरक्षण कानून को संविधान की नवीं अनुसूची में शामिल कर ले। एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, अधिनियम के नवीं अनुसूची में शामिल होने का प्रभाव यह होता है कि उसे किसी न्यायालय में चुनौती नहीं दिया जा सकता। फिलहाल यही एक रास्ता दिख रहा है जिससे आरक्षण को अविवादित रखा जा सकता है। बताया जा रहा है, 24 नवम्बर को राज्य कैबिनेट की बैठक में प्रस्तावित आरक्षण विधेयकों और संकल्प का प्रारूप चर्चा के लिए आएगा। सब कुछ सरकार के अनुकूल रहा तो उसे मंजूरी दे दी जाएगी।

जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल बार-बार जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण देने की बात कह रहे हैं। ऐसे में संभावना बन रही है कि सरकार नये आरक्षण संशोधन विधेयक में इसे शामिल करेगी। इसका मतलब यह हुआ कि अनुसूचित जनजाति को 32% और अनुसूचित जाति को 13% आरक्षण का प्रावधान होगा। करीब 50% से अधिक आबादी वाले अन्य पिछड़ा वर्ग को मंडल आयोग की सिफारिशों के मुताबिक 27% आरक्षण की भी बात है। इसके अलावा केंद्र सरकार से लागू समान्य वर्ग के गरीबों का 10% आरक्षण भी प्रभावी होगा।

अनुसूचित जाति वर्ग का विवाद कायम

2012 तक प्रदेश में अनुसूचित जाति वर्ग को 16% आरक्षण मिल रहा था। 2012 में बदलाव के बाद इसे 12% कर दिया गया। गुरु घासीदास साहित्य एवं संस्कृति अकादमी इसी का विरोध करने उच्च न्यायालय गई थी लेकिन उसने पूरा जोर आदिवासी समाज को दिये जा रहे 32% आरक्षण को असंवैधानिक साबित करने में लगाया। अब हाईकोर्ट के आदेश से पूरा आरक्षण रोस्टर खत्म हो चुका है। ऐसे में सरकार जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण 13% करती है तो अनुसूचित जाति वर्ग की नाराजगी का सामना करना पड़ सकता है। अगर यह 16% होता है और सामान्य वर्ग के गरीबों का 10% आरक्षण भी शामिल कर लिया जाए तो आरक्षण की सीमा 85% हो जाएगी।

आरक्षण मामले में कब-कब क्या हुआ

छत्तीसगढ़ में सरकार ने 2012 आरक्षण के अनुपात में बदलाव किया था। इसमें अनुसूचित जनजाति वर्ग का आरक्षण 20 से बढ़ाकर 32% कर दिया गया। वहीं अनुसूचित जाति का आरक्षण 16% से घटाकर 12% किया गया। इसको गुरु घासीदास साहित्य एवं संस्कृति अकादमी ने उच्च न्यायालय में चुनौती दी। बाद में कई और याचिकाएं दाखिल हुईं।

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने 19 सितम्बर को इस पर फैसला सुनाते हुए राज्य के आरक्षण अधिनियमों की उस धारा को रद्द कर दिया, जिसमें आरक्षण का अनुपात बताया गया है। इसकी वजह से आरक्षण की व्यवस्था संकट में आ गई। भर्ती परीक्षाओं का परिणाम रोक दिया गया है। परीक्षाएं टाल दी गईं।

काउंसलिंग के लिए सरकार ने कामचलाऊ रोस्टर जारी कर 2012 से पहले की पुरानी व्यवस्था बहाल करने की कोशिश की। इस बीच आदिवासी समाज के पांच लोग उच्चतम न्यायालय पहुंचे। राज्य सरकार ने भी इस फैसले के खिलाफ अपील की है। एक अध्ययन दल भी तमिलनाडू और कर्नाटक की आरक्षण व्यवस्था का अध्ययन करने भेजा है। 10 नवम्बर को विधानसभा का विशेष सत्र बुलाने की अधिसूचना जारी कर दी।

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