spot_img

गौरैया को बचाने के लिए मुहिम की जरूरत, तेतरावां गांव ने पेश की मिसाल

Must Read

धीरे-धीरे गौरैया विलुप्ति के कगार पर पहुंचती जा रही है। भारत में इसकी कितनी संख्या है, इसकी गणना अभी तक नहीं की गई है, लेकिन देश के कुछ राज्यों में छिटपुट तरीके से इसकी गणना जरूर की जा रही है। एक अनुमान के अनुसार तमिलनाडु और पुदुचेरी में गौरैया की संख्या मामूली रूप से बढ़ी है। लखनऊ विश्वविद्यालय की एक रिपोर्ट के अनुसार लखनऊ में भी गौरैया की संख्या पहले के मुकाबले बढ़ी है।

20 मार्च, 2010 को नेचर फॉर ऐवर सोसाइटी के अध्यक्ष मोहम्मद दिलावर के प्रयासों से इस नन्ही-सी चिड़िया के संरक्षण को लेकर जागरूकता फैलाने के मकसद से देश भर में पहली बार विश्व गौरैया दिवस मनाया गया था। वर्ष 2012 में दिल्ली सरकार ने गौरैया को राजकीय पक्षी का दर्जा दिया, वहीं बिहार सरकार ने भी वर्ष 2013 में इसे राजकीय पक्षी घोषित किया। बिहार में गौरैया के संरक्षण हेतु विशेष अभियान चलाए जा रहे हैं। बिहार के नालंदा जिले के बिहार शरीफ प्रखंड में स्थित तेतरावां गांव में वर्ष 2010 से गौरैया संरक्षण का कार्य किया जा रहा है। गांव भर में इसके रहने के लिए घोंसले बनवाकर घरों की छतों या मुंडेर पर रखे गए हैं, साथ ही इनके भोजन व पानी की व्यवस्था भी गांव वालों के द्वारा नियमित रूप से की जा रही है। तेतरावां गांव की यह उपलब्धि इस बात का संकेत है कि अगर प्राथमिकता के आधार पर गौरैया को संरक्षित करने की कोशिश की जाए, तो निश्चित रूप से इसकी संख्या में अपेक्षित वृद्धि हो सकती है। बिहार के राज्य वन पर्यावरण विभाग ने भी राज्य के सभी सरकारी दफ्तरों और आवासों में लकड़ी का ‘गौरैया घर’ बनाया है, लेकिन योजनानुसार इस दिशा में कार्य नहीं हो पा रहा है। इसके लिए प्रभावी कदम उठाने की जरूरत है।

- Advertisement -

गौरैया की घटती आबादी निश्चित रूप से चिंता की बात है, क्योंकि यह पर्यावरण को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाती है। दरअसल बदले परिवेश में घरों की जगह गगनचुंबी इमारतों ने ले ली है। आधुनिक स्थापत्य की बहुमंजिली इमारतों में गौरैया के रहने की कोई गुंजाइश नहीं है। इधर, मोबाइल टावरों से निकलने वाली तरंगें उनकी जान लेने के लिए आमादा हैं। ये तंरगें गौरैया की दिशा खोजने वाली प्रणाली एवं उनकी प्रजनन क्षमता पर विपरीत प्रभाव डालती हैं। ज्यादा तापमान भी गौरेया के लिए जानलेवा होता है। गौरतलब है कि प्रदूषण, विकिरण, कटते पेड़ों आदि के कारण शहरों का तापमान तेजी से बढ़ रहा है। इन कारणों से गौरैया खाना और घोंसले की तलाश में शहरों से पलायन कर रही हैं, लेकिन ग्रामीण इलाकों में भी इन्हें चैन नहीं मिल पा रहा है, क्योंकि गांव-देहात तेजी से शहर में तब्दील हो रहे हैं।

घरेलू गौरैया, जिसका वैज्ञानिक नाम पासर डोमेस्टिकस है, एक छोटी प्रजाति की पक्षी है, जिसका निवास खास तौर पर एशिया, अमेरिका, यूरोप आदि हैं। वैसे, कमोबेश यह पूरे विश्व में जहां भी इंसान रहते हैं, पाई जाती है। शहरी इलाकों में गौरैया की छह तरह ही प्रजातियां पाई जाती हैं, जिसे हाउस स्पैरो, स्पेनिश स्पैरो, सिंड स्पैरो, रसेट स्पैरो, डेड सी स्पैरो और ट्री स्पैरो के नाम से जाना जाता है। इनमें हाउस स्पैरो को गौरैया कहा जाता है। ये शहरों में ज्यादा पाई जाती हैं। आज भी यह विश्व में सबसे अधिक शहरों में पाई जाने वाली पक्षियों में से एक है।

गौरैया को संरक्षित करने के लिए आज लोगों को जागरूक करने की जरूरत है। इस क्रम में नुक्कड़ नाटकों के माध्यम से गौरैया संरक्षण के लिए लोगों को प्रेरित किया जा सकता है। विद्यालयों में सेमिनार आयोजित कर गौरैया संरक्षण के प्रति बच्चों एवं शिक्षकों को जागरूक किया जा सकता है। सरकार, गैर-सरकारी संगठन, मीडिया, बच्चे और युवा को इस दिशा में महती भूमिका निभानी चाहिए।

गौरैया के पुनर्वास के लिए घर ऐसे बनाए जाएं, जिनमें झरोखे, छत व आंगन हों, उनके खाने के लिए दाने की व्यवस्था हो, आंगन और छतों पर पौधे लगाए जाएं, घर की मुंडेर पर मिट्टी के बरतन में पानी रखा जाए, फसलों में कीटनाशकों का प्रयोग न किया जाए। ये कुछ ऐसे उपाय हैं, जिनसे गौरैया को बचाने में मदद मिल सकती है। बिहार के नालंदा जिले के तेतरावां गांव ने ऐसा करके हमें दिखा दिया है। हमें इस गांव के लोगों से सीखने की जरूरत है।

377FansLike
57FollowersFollow
377FansLike
57FollowersFollow
Latest News

निकाय चुनाव के पहले मंत्रिमंडल का विस्तार जल्द

acn18.com/ रायपुर। उपचुनाव के नतीजा आने के बाद अब नगरीय निकाय चुनाव की सुगबुगाहट शुरू हो गई है। नगरीय...

More Articles Like This

- Advertisement -