सार
लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि निचली अदालत द्वारा सजा सुनाए जाने के बाद भी भाजपा सांसद नारणभाई कछाड़िया को हाईकोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट जाने का मौका मिला।
विस्तार
कांग्रेस नेता राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता जाने के बाद इसको लेकर पार्टी लगातार हमलावर है। इसी बीच पार्टी के वरिष्ठ नेता अधीर रंजन चौधरी ने लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को पत्र लिखा है। इसके जरिये कांग्रेस नेता ने आरोप लगाया कि मोदी सरकार में सत्ता और विपक्ष के लिए कानून अलग-अलग हैं। अपने खत में उन्होंने अमरेली के भाजपा सांसद नारणभाई कछाड़िया का उदाहरण दिया, जिन्हें एक आपराधिक मामले में दोषी ठहराए जाने और तीन साल की सजा सुनाए जाने के बावजूद अयोग्य नहीं ठहराया
अधीर रंजन चौधरी ने किस बारे में पत्र लिखा है?
कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने मंगलवार को लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को पत्र लिखा है। इसमें उन्होंने अपील की कि राहुल गांधी को लोकसभा की सदस्यता से अयोग्य ठहराए जाने के विषय पर सदन में चर्चा कराई जाए। उन्होंने यह भी कहा कि इस बारे में चर्चा होनी चाहिए कि क्या राहुल गांधी को अनुचित दंड दिया गया है।
कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने मंगलवार को लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को पत्र लिखा है। इसमें उन्होंने अपील की कि राहुल गांधी को लोकसभा की सदस्यता से अयोग्य ठहराए जाने के विषय पर सदन में चर्चा कराई जाए। उन्होंने यह भी कहा कि इस बारे में चर्चा होनी चाहिए कि क्या राहुल गांधी को अनुचित दंड दिया गया है।
कांग्रेस नेता के खत में और क्या है?
लोकसभा में कांग्रेस के नेता चौधरी ने गुजरात के भाजपा सांसद नारणभाई कछाड़िया के मामले का हवाला दिया। उन्होंने कहा कि निचली अदालत द्वारा सजा सुनाए जाने के बाद भी भाजपा के इस लोकसभा सदस्य को हाईकोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट जाने का मौका मिला। उन्होंने कहा कि राहुल गांधी के मामले में ऐसा नहीं हुआ और सूरत की निचली अदालत का फैसला आने के बाद उन्हें सदन की सदस्यता से तत्काल अयोग्य ठहरा दिया गया। अधीर रंजन चौधरी ने आग्रह किया कि इस विषय पर सदन में चर्चा होनी चाहिए।
लोकसभा में कांग्रेस के नेता चौधरी ने गुजरात के भाजपा सांसद नारणभाई कछाड़िया के मामले का हवाला दिया। उन्होंने कहा कि निचली अदालत द्वारा सजा सुनाए जाने के बाद भी भाजपा के इस लोकसभा सदस्य को हाईकोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट जाने का मौका मिला। उन्होंने कहा कि राहुल गांधी के मामले में ऐसा नहीं हुआ और सूरत की निचली अदालत का फैसला आने के बाद उन्हें सदन की सदस्यता से तत्काल अयोग्य ठहरा दिया गया। अधीर रंजन चौधरी ने आग्रह किया कि इस विषय पर सदन में चर्चा होनी चाहिए।
राहुल गांधी का मामला क्या है?
दरअसल, राहुल गांधी पर 2019 लोकसभा चुनाव के दौरान ‘मोदी सरनेम’ पर विवादित टिप्पणी करने का आरोप लगा था। इसी मामले में राहुल पर गुजरात के भाजपा विधायक और पूर्व मंत्री पूर्णेश मोदी ने मानहानि का मुकदमा दायर किया था। इस पर सुनवाई करते हुए पिछले दिनों सूरत की एक अदालत ने अपना फैसला सुनाया। राहुल गांधी को इस मामले में दोषी छठराते हुए दो साल की सजा सुनाई गई। नियम के अनुसार, अगर किसी सांसद या विधायक को दो साल या इससे अधिक की सजा होती है तो उसकी सदस्यता चली जाती है। राहुल के साथ भी ऐसा ही हुआ। अगले ही दिन लोकसभा सचिवालय ने उनकी सदस्यता जाने का आदेश जारी कर दिया।
दरअसल, राहुल गांधी पर 2019 लोकसभा चुनाव के दौरान ‘मोदी सरनेम’ पर विवादित टिप्पणी करने का आरोप लगा था। इसी मामले में राहुल पर गुजरात के भाजपा विधायक और पूर्व मंत्री पूर्णेश मोदी ने मानहानि का मुकदमा दायर किया था। इस पर सुनवाई करते हुए पिछले दिनों सूरत की एक अदालत ने अपना फैसला सुनाया। राहुल गांधी को इस मामले में दोषी छठराते हुए दो साल की सजा सुनाई गई। नियम के अनुसार, अगर किसी सांसद या विधायक को दो साल या इससे अधिक की सजा होती है तो उसकी सदस्यता चली जाती है। राहुल के साथ भी ऐसा ही हुआ। अगले ही दिन लोकसभा सचिवालय ने उनकी सदस्यता जाने का आदेश जारी कर दिया।
आखिर कौन हैं नारणभाई कछाड़िया?
नारणभाई कछाड़िया गुजरात की अमरेली लोकसभा सीट से भाजपा की टिकट पर लगातार तीन चुनाव जीत चुके हैं। पहली बार 2009 में वो 15वीं लोकसभा के लिए चुने गए थे। इसके बाद 2014 और 2019 के आम चुनावों में भी उन्होंने जीत दर्ज की। इसके अलावा भाजपा नेता कई संसदीय समितियों में बतौर सदस्य काम कर चुके हैं।
नारणभाई कछाड़िया गुजरात की अमरेली लोकसभा सीट से भाजपा की टिकट पर लगातार तीन चुनाव जीत चुके हैं। पहली बार 2009 में वो 15वीं लोकसभा के लिए चुने गए थे। इसके बाद 2014 और 2019 के आम चुनावों में भी उन्होंने जीत दर्ज की। इसके अलावा भाजपा नेता कई संसदीय समितियों में बतौर सदस्य काम कर चुके हैं।
कछाड़िया चर्चा में क्यों, उनका केस क्या है?
राहुल गांधी की सदस्यता जाने के बाद भाजपा सांसद नारणभाई कछाड़िया चर्चा में हैं। दरअसल, राहुल गांधी की तरह भाजपा सांसद कछाड़िया की भी सदस्यता रद्द होने का खतरा था। अमरेली की एक अदालत ने 2013 में एक सरकारी अस्पताल में डॉक्टर से मारपीट करने के मामले में कछाड़िया को अप्रैल 2016 में तीन साल कैद की सजा सुनाई थी।
राहुल गांधी की सदस्यता जाने के बाद भाजपा सांसद नारणभाई कछाड़िया चर्चा में हैं। दरअसल, राहुल गांधी की तरह भाजपा सांसद कछाड़िया की भी सदस्यता रद्द होने का खतरा था। अमरेली की एक अदालत ने 2013 में एक सरकारी अस्पताल में डॉक्टर से मारपीट करने के मामले में कछाड़िया को अप्रैल 2016 में तीन साल कैद की सजा सुनाई थी।
इस मामले में हुई थी सजा
भाजपा नेता और अन्य पर एक जनवरी, 2013 को अमरेली सिविल अस्पताल के डॉक्टर भीमजीभाई डाभी की पिटाई करने का आरोप लगा था, क्योंकि उन्होंने एक भाजपा कार्यकर्ता के रिश्तेदार को देखने से इनकार कर दिया था। जानकारी के मुताबिक, किसी दूसरे मरीज को देख रहे डॉक्टर ने भाजपा कार्यकर्ता के रिश्तेदार को इंतजार करने के लिए कहा था। रिश्तेदार ने कछाड़िया को फोन किया, जो अस्पताल आए और डॉक्टर की पिटाई कर दी। बाद में उनके खिलाफ एससी-एसटी एक्ट और आईपीसी के तहत मामला दर्ज किया गया था।
भाजपा नेता और अन्य पर एक जनवरी, 2013 को अमरेली सिविल अस्पताल के डॉक्टर भीमजीभाई डाभी की पिटाई करने का आरोप लगा था, क्योंकि उन्होंने एक भाजपा कार्यकर्ता के रिश्तेदार को देखने से इनकार कर दिया था। जानकारी के मुताबिक, किसी दूसरे मरीज को देख रहे डॉक्टर ने भाजपा कार्यकर्ता के रिश्तेदार को इंतजार करने के लिए कहा था। रिश्तेदार ने कछाड़िया को फोन किया, जो अस्पताल आए और डॉक्टर की पिटाई कर दी। बाद में उनके खिलाफ एससी-एसटी एक्ट और आईपीसी के तहत मामला दर्ज किया गया था।
अमरेली कोर्ट ने सुनाई थी तीन साल की सजा
अप्रैल 2016 में अदालत ने सांसद को एससी-एसटी एक्ट के तहत आरोपों से तो बरी कर दिया, लेकिन उन्हें लोक सेवक को अपना कर्तव्य निभाने से रोकने के लिए जानबूझकर चोट पहुंचाने के लिए, और गैरकानूनी सभा के जरिये बल या हिंसा का सहारा लेने के लिए तीन साल की कैद की सजा सुनाई। इस दौरान सांसद ने सत्र न्यायालय से अपील की कि उनकी सजा पर रोक लगाई जाए क्योंकि तीन साल की सजा उन्हें सांसद के रूप में अयोग्य घोषित कर देगी। कोर्ट ने उन्हें जमानत तो दे दी लेकिन सजा पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। इसके अलावा निचली अदालत ने फौरी राहत के रूप में भाजपा सांसद और चार अन्य दोषियों की सजा को एक महीने के लिए निलंबित कर दिया ताकि वो सजा के खिलाफ उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटा सकें।
अप्रैल 2016 में अदालत ने सांसद को एससी-एसटी एक्ट के तहत आरोपों से तो बरी कर दिया, लेकिन उन्हें लोक सेवक को अपना कर्तव्य निभाने से रोकने के लिए जानबूझकर चोट पहुंचाने के लिए, और गैरकानूनी सभा के जरिये बल या हिंसा का सहारा लेने के लिए तीन साल की कैद की सजा सुनाई। इस दौरान सांसद ने सत्र न्यायालय से अपील की कि उनकी सजा पर रोक लगाई जाए क्योंकि तीन साल की सजा उन्हें सांसद के रूप में अयोग्य घोषित कर देगी। कोर्ट ने उन्हें जमानत तो दे दी लेकिन सजा पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। इसके अलावा निचली अदालत ने फौरी राहत के रूप में भाजपा सांसद और चार अन्य दोषियों की सजा को एक महीने के लिए निलंबित कर दिया ताकि वो सजा के खिलाफ उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटा सकें।
कांग्रेस ने अयोग्यता की मांग की थी
इसी बीच, गुजरात के कांग्रेस नेताओं ने तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष, राष्ट्रपति और चुनाव आयोग को उनकी अयोग्यता की मांग करते हुए याचिका दायर की, लेकिन कुछ नहीं हुआ। कछाड़िया गुजरात उच्च न्यायालय गए, जिसने उन्हें राहत देने से इनकार कर दिया। कांग्रेस नेताओं ने फिर से लोकसभा अध्यक्ष, राष्ट्रपति और चुनाव आयोग को याचिका दी, यह तर्क देते हुए कि उच्च न्यायालय ने भी दोषसिद्धि को बरकरार रखा। लेकिन यहां भी कुछ नहीं हुआ।
इसी बीच, गुजरात के कांग्रेस नेताओं ने तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष, राष्ट्रपति और चुनाव आयोग को उनकी अयोग्यता की मांग करते हुए याचिका दायर की, लेकिन कुछ नहीं हुआ। कछाड़िया गुजरात उच्च न्यायालय गए, जिसने उन्हें राहत देने से इनकार कर दिया। कांग्रेस नेताओं ने फिर से लोकसभा अध्यक्ष, राष्ट्रपति और चुनाव आयोग को याचिका दी, यह तर्क देते हुए कि उच्च न्यायालय ने भी दोषसिद्धि को बरकरार रखा। लेकिन यहां भी कुछ नहीं हुआ।
क्या मामला सुप्रीम कोर्ट भी पहुंचा था?
गुजरात उच्च न्यायालय से राहत नहीं मिलने पर कछाड़िया ने देश की सर्वोच्च अदालत का रुख किया। निचली अदालत द्वारा दोषी ठहराए जाने के 16 दिन बाद 29 अप्रैल को कछाड़िया को सुप्रीम कोर्ट ने बरी कर दिया। जस्टिस एन.वी. रमन्ना और मदन वी. लोकुर की खंडपीठ ने सांसद से माफी मांगने और पीड़ित को पांच लाख रुपये का मुआवजा देने को भी कहा।
गुजरात उच्च न्यायालय से राहत नहीं मिलने पर कछाड़िया ने देश की सर्वोच्च अदालत का रुख किया। निचली अदालत द्वारा दोषी ठहराए जाने के 16 दिन बाद 29 अप्रैल को कछाड़िया को सुप्रीम कोर्ट ने बरी कर दिया। जस्टिस एन.वी. रमन्ना और मदन वी. लोकुर की खंडपीठ ने सांसद से माफी मांगने और पीड़ित को पांच लाख रुपये का मुआवजा देने को भी कहा।