देवर्षि नारद को अहंकार हो गया था। एक दिन वे शिव जी के पास पहुंचे और कहने लगे कि मैंने कामदेव को जीत लिया है। शिव जी ने कहा कि ये बात आपने मुझे तो कह दी, लेकिन विष्णु जी से मत कहना।
नारद मुनि ने सोचा कि मैं तो विष्णु जी को भी ये बात जरूर कहूंगा। ऐसा सोचकर वे विष्णु जी के पास पहुंच गए और घमंड भरे शब्दों में कहा कि मैंने कामदेव को जीत लिया है। विष्णु जी ने नारद मुनि की बातें सुनीं और चुप रहे।
विष्णु जी से मिलने के बाद नारद मुनि कहीं ओर जा रहे थे। रास्ते में उन्हें एक बहुत सुंदर राज्य दिखाई दिया। नारद मुनि उस राज्य में रुक गए तो उन्हें मालूम हुआ कि यहां राजकुमारी का स्वयंवर होने वाला है। राज्य के राजा ने नारद मुनि को देखा तो उन्हें लेकर राजकुमारी के पास पहुंचे और आशीर्वाद देने के लिए कहा।
नारद मुनि ने राजकुमारी को देखा तो वे उसकी सुंदरता देखकर मोहित हो गए। राजकुमारी का नाम विश्वमोहिनी था।
विश्वमोहिनी को देखकर नारद मुनि के मन में विचार आया कि मुझे इससे विवाह करना चाहिए। स्वयंवर में अगर ये राजकुमारी मुझे पसंद कर लेगी तो मेरा भी विवाह हो जाएगा।
नारद मुनि तुरंत ही विष्णु जी के पास पहुंच गए और पूरी बात बता दी। नारद मुनि ने विष्णु जी से कहा कि मुझे आप अपनी सुंदरता दे दीजिए, ताकि वह राजकुमारी मुझे पसंद कर ले और मेरा विवाह उसके साथ हो जाए।
विष्णु जी ने कहा कि मैं आपको ऐसा रूप-रंग, सुंदरता दूंगा, जिससे आपकी भलाई होगी।
विष्णु जी ने नारद जी को बंदर यानी वानर का चेहरा दे दिया। नारद मुनि विवाह करने के उत्साह में थे तो वे तुरंत ही स्वयंवर में पहुंच गए। स्वयंवर में पहुंचे तो लोगों ने उनका वानर जैसा मुंह देखकर उनका बहुत अपमान किया।
जब नारद जी ने अपना मुंह देखा तो उन्हें बहुत गुस्सा आया और वे विष्णु जी के पास पहुंचे और पूछा कि आपने मेरे साथ सही नहीं किया है। मैंने तो सुंदरता मांगी थी, आपने मुझे वानर बना दिया।
विष्णु जी ने कहा कि जब आप मेरे पास आए थे तो मुझे समझ आ गया था कि आपको घमंड हो गया है और आपके जैसे ऋषि के लिए घमंड अच्छी बात नहीं है। इस वजह से मैंने आपका घमंड तोड़ने के लिए ही ये पूरी माया रची थी। वह राज्य, राजकुमारी, स्वयंवर सब मेरी माया ही थी। आप जैसे संत के मन में एक राजकुमारी के लिए कामवासना जागना सही नहीं है। आपको इन बुराइयों से दूर रहना चाहिए।
नारद मुनि को विष्णु जी का बातें समझ आ गईं और उन्होंने क्षमा मांगते हुए बुराइयों से बचाने के लिए विष्णु जी को धन्यवाद दिया।
कथा की सीख
इस कथा से दो संदेश मिलते हैं। पहला, हमें अपने गुणों का घमंड नहीं करना चाहिए। दूसरा, सुख-सुविधाएं किसी मांगे नहीं। इस कथा में बताई गई सुंदरता का अर्थ है सुख-सुविधाएं और योग्यता। सुख-सुविधाएं और योग्यता किसी और से मांगनी नहीं चाहिए। ये चीजें हमें खुद ही अर्जित करनी चाहिए। जब हम अपनी मेहनत इन्हें हासिल करेंगे तो उसका आनंद अलग ही रहता है।