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महाशिवरात्रि पर शिव के नौ नाम की नौ कहानियां:महाभारत में शिव को ईश्वर कहा गया, मौत का भय दूर करते हैं इसलिए नाम महाकाल

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आज महाशिवरात्रि है। इसे ऐसे समझें महाशिव-रात्रि यानी महाशिव की रात्रि। परंपरा तो इस दिन शिव-पार्वती के विवाह की है, लेकिन असल में इस दिन भगवान शिव पहली बार ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुए थे।

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शिवपुराण कहता है – वो रात थी और उस ज्योतिर्लिंग के प्रारंभ और अंत का कोई पता नहीं लगा सका। खुद भगवान ब्रह्मा और विष्णु भी नहीं। शिव का यही स्वरूप महाशिव कहलाया और वो रात महाशिवरात्रि।

शिव के कई स्वरूप हैं। कई नाम हैं और हर नाम के पीछे कोई कहानी है, कोई ऐसी बात है जो हमें आज भी जिंदगी जीने के कुछ तरीके सिखा सकती है। आज हम इन्हीं नामों के पीछे के कारण और अर्थ को समझेंगे।

1. सारे जीवों के स्वामी हैं इसलिए ईश्वर नाम पड़ा

महाभारत में विष्णु सहस्रनाम स्त्रोत में वेद व्यास ने भगवान शिव के लिए ईश्वर शब्द का इस्तेमाल किया है। शिव पुराण में भी शिव को कई जगह ईश्वर कहकर संबोधित किया गया है। ईश्वर का अर्थ है स्वामी यानी मालिक।

शिव को सृष्टि का स्वामी माना गया है। यही कारण है कि शिव के हर नाम में ईश्वर शब्द जोड़ा गया है। चाहे केदारेश्वर हो या महाकालेश्वर। काशी विश्वनाथ का एक नाम विश्वेश्वर भी है। जो हर चीज का स्वामी है वो ईश्वर है। शिव पुराण की रुद्र संहिता में ब्रह्मा के जन्म की कहानी है, जिसमें ब्रह्मा कहते हैं कि शिव ने अपनी इच्छा शक्ति से मुझे विष्णु के नाभि कमल से उत्पन्न किया है।

ईश्वर इसलिए भी कहे जाते हैं क्योंकि सृष्टि में संहार का काम भी शिव के पास है। जिसके पास चीजों को खत्म करने का अधिकार होता है। वास्तव में वो ही उसका स्वामी होता है।

2. सारी विद्याओं के पहले गुरु हैं शिव इसलिए नाम है विद्येश्वर

शिव पुराण में शिव को विद्येश्वर भी कहा गया है। इसका अर्थ है सारी विद्याओं के मालिक। देवताओं के गुरु बृहस्पति, दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य और पूरे मानव समाज को बनाने वाले सप्तऋषियों के गुरु भगवान शिव ही हैं। इन्हें आदिगुरु माना गया है। योग, ज्योतिष, तंत्र और चिकित्सा ये सारी विद्याएं शिव की ही हैं।

एक पौराणिक कहानी है कि समुद्र मंथन के बाद जब भगवान विष्णु ने देवताओं को मोहिनी रूप बनाकर सारा अमृत पिला दिया तो दैत्य न्याय के लिए शिव के पास पहुंचे। शिव के लिए सभी समान थे। दैत्यों के राजा बलि ने भगवान शिव को पूरी बात बताई और ये कहा कि देवताओं ने सारा अमृत पी लिया और अमर हो गए। अब वो हम दैत्यों के लिए खतरा हो गए हैं।

भगवान शिव ने पूरी स्थिति को समझा और ये कहा कि देवताओं को ऐसा नहीं करना चाहिए था। अगर बात अमृत को बराबर बांटने की हुई थी तो उन्हें इस बात पर खरा उतरना था। भगवान शिव ने दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य को उस समय मृत संजीवनी विद्या दी, जिससे वो किसी ऐसे व्यक्ति को भी जिंदा कर सकते थे, जिसे मारकर जला दिया गया हो और सिर्फ राख ही बची हो। उस राख से भी फिर उस व्यक्ति को जिंदा किया जा सकता था।

3. बुराई को ना खुद में उतारें, ना समाज में छोड़ें ये नीलकंठ का संदेश

नीलकंठ यानी जिसका गला नीला हो। ये कहानी भी समुद्र मंथन की ही है कि जब देवता और दानवों ने समुद्र का मंथन शुरू किया तो सबसे पहले उसमें से हलाहल नाम का विष निकला। ये जहर इतना तेज था कि सृष्टि का विनाश होने लगा।

तब भगवान विष्णु ने सारे देवताओं और दानवों को भगवान शिव से प्रार्थना करने की सलाह दी। सबकी रक्षा के लिए शिव आगे आए और सारा विष पी गए। उसे ना मुंह में रखा ना ही पेट में उतारा। बस गले में अटका लिया। विष के असर से उनका गला नीला पड़ गया और वे नीलकंठ कहलाए।

वास्तव में ये नीला रंग, ये विष बुराई का प्रतीक है। शिव नीलकंठ हैं क्योंकि वे बुराई को स्वीकार करने के बाद उसे अपने गले में ही रोक लेते हैं। ना बाहर निकालते हैं कि दुनिया पर उसका कोई बुरा असर हो, ना ही उसे खुद अपने पेट तक जाने देते हैं जिससे कि उनके शरीर पर उसका कोई बुरा असर हो।

शिव का नीलकंठ स्वरूप ये सिखाता है कि आप बुराई का असर ना खुद पर होने दें, ना ही समाज में फैलने दें। उसे ऐसी जगह रोक लें, जहां से वो आगे ना बढ़ पाए। इस काम में जो भी सक्षम है, वो शिव का ही रूप है।

4. शिव अघोरी इसलिए क्योंकि भेदभाव नहीं करते हैं

शिव तंत्र के देवता हैं। इन्हें आदि अघोरी यानी संसार का पहला अघोरी भी कहा जाता है। पौराणिक मत है कि अघोर वो है जिसकी बुद्धि और व्यवहार में कोई भेदभाव ना हो। जिनकी बुद्धि में दूसरों के लिए भेदभाव होते हैं, वो लोग घोर यानी भयंकर होते हैं। शिव अघोरी हैं यानी सौम्य स्वभाव के हैं। सबके लिए एक समान हैं।

सारे देवताओं की पूजा में सामग्रियों का विशेष महत्व होता है। अकेले शिव हैं, जिनकी पूजा की सामग्रियों में सबसे कम सावधानियां हैं। उन्हें सिर्फ जल चढ़ाकर भी प्रसन्न किया जा सकता है। भांग-धतूरा जैसी वो चीजें जो किसी भी पूजा में शामिल नहीं की जाती हैं, वो शिव को चढ़ाकर मनाया जा सकता है।

शिव मन के देवता हैं। शिव पुराण कहता है कि शिव आपके काम कम और मन के भाव ज्यादा देखते हैं। अगर अच्छे मन से कुछ चढ़ाएंगे तो उन्हें वो सब स्वीकार है। अगर बिना शुद्ध भावों के छप्पन भोग भी लगाएंगे तो शिव को वो मंजूर नहीं है। शिव सरल स्वभाव को पसंद करते हैं।

5. हमेशा अपने क्रोध पर नियंत्रण हो, व्यवहार में शीतलता का संदेश देते हैं चंद्रशेखर

चंद्रशेखर या आशुतोष दोनों के अर्थ समान हैं। जिसने अपने शिखर यानी माथे पर चंद्र को धारण किया है वो चंद्रशेखर है। शिव के इस नाम में उनका स्वभाव छिपा है। चंद्रमा को सिर पर धारण करना यानी दिमाग को हमेशा ठंडा रखना।

चंद्रमा शीतलता का प्रतीक है। सिर पर चंद्रमा का होना स्पष्ट करता है कि शिव के स्वभाव में शीतलता है। बहुत कम प्रसंग मिलते हैं जब शिव ने क्रोध किया हो। बहुत से राक्षसों का संहार करते समय भी शिव ने कभी क्रोध नहीं किया।

रामायण की कहानी है कि रावण ने शिव को कैलाश से लंका ले जाना चाहा। उसने सोचा कि मैं शिव को मनाकर ले जाऊंगा। उसने कैलाश पर्वत को अपने हाथों से उठाने की कोशिश की। जब शिव ने ये देखा कि रावण कैलाश सहित उठाकर लंका ले जाना चाहता है तो उन्होंने अपने पैर के अंगूठे से कैलाश को दबा दिया और रावण का हाथ वहीं दबा रह गया।

तब रावण को महसूस हुआ कि उसने शिव को क्रोधित कर दिया है। वास्तव में भगवान उस समय भी मुस्कुरा रहे थे। रावण ने शिव तांडव स्तोत्र की रचना कर शिव को सुनाई और शिव ने अपने पैर का अंगूठा हटाकर रावण को मुक्त कर दिया।

शिव कभी विचलित नहीं होते। हमेशा स्थिर रहते हैं। यही कारण है कि उन्हें चंद्रशेखर कहा जाता है।

6. परिस्थिति कैसी भी हो अपने जीवन मूल्यों को कभी ना झुकने दें, कहते हैं कैलाशवासी

शिव कैलाश पर्वत पर रहते हैं सिर्फ इसलिए उनका नाम कैलाशवासी नहीं है। वे अपने व्यक्तित्व में भी वैसे ही हैं इसलिए उन्हें ये कहा जाता है। कैलाश ऊंचाई का प्रतीक है, सबसे दुर्गम है। आज भी कैलाश मानसरोवर की यात्रा सबसे कठिन है।

शिव का कैलाश पर बसना ये बहुत बड़ा संकेत है। विद्वानों का मत है कि कैलाश ऊंचाई का प्रतीक है। शिव अपने तप की ऊंचाई पर हैं। समाधि के शिखर पर हैं। ये कैलाश उनकी तपस्या और ध्यान की ऊंचाई है।

कैलाश पर बैठे शिव हमें भी एक गहरी बात समझाते हैं। गले में सर्प, शरीर पर भस्म और कम से कम साधनों के साथ वे बर्फीले पहाड़ पर रहते हैं। ये आत्म सम्मान और जीवन मूल्यों के लिए समर्पण का संकेत हैं। आपके जीवन में संसाधन कितने ही कम क्यों ना हों। धन, वैभव और सुख की कमी भी रहे तो भी अपने आत्म सम्मान और जीवन मूल्यों की ऊंचाई को कम ना होने दें। ये शिव सिखाते हैं।

7. ध्यान में रहें और खुद को समय दें, ये सिखाते हैं वाघंबरधारी​​​​​​​

शिव को वाघंबरधारी भी कहा जाता है। वाघंबरधारी यानी बाघ की खाल को धारण करने वाले। शिव कोई अन्य कपड़े नहीं पहनते। वाघंबर में ही रहते हैं। कई जगहों पर ये भी उल्लेख मिलता है कि शिव का आसन भी सिंह के चमड़े का है।

इस बात में जीवन जीने का गहरा सूत्र छिपा है। बाघ और सिंह ये दो ऐसे जानवर हैं जो हरदम हिंसक नहीं होते। शिकार भी तब करते हैं जब उन्हें भूख हो। बेवजह ना तो खुद परेशान होते हैं ना जंगल को परेशान करते हैं। अपने आप में मगन रहते हैं।

शिव का वाघंबर धारण करना ये संकेत है कि शांति से जीवन जीने के लिए इस जीवन शैली को अपनाया जाए। ज्यादा समय अपने लिए और अपने परिवार के लिए निकालें, धन और रोजी-रोटी कमाने के लिए उतना ही समय दें, जितने में आपकी जरूरतें पूरी हो जाती हों।

एक और बात शेर और बाघ में समान है। इनमें कुंडलिनी शक्ति काफी सक्रिय होती है। अपने 20 किमी के इलाके में आने वाले हर प्राणी का इन्हें कहीं भी बैठकर अनुमान हो जाता है। ये अपने ध्यान में पक्के हैं। वाघंबरधारी शिव कहते हैं हर इंसान को ध्यान करना चाहिए। मेडिटेशन आपकी कुंडलिनी शक्ति को जागृत करता है।

8. मौत का डर दूर करते हैं, अकाल मृत्यु से बचाते हैं महाकाल

महाकाल का सीधा अर्थ है, जो कालों का काल है। मध्य प्रदेश के उज्जैन में इसी नाम से ज्योतिर्लिंग भी है। काल के दो अर्थ हैं एक मृत्यु और दूसरा समय। उज्जैन कालगणना का केंद्र है और महाकाल ज्योतिर्लिंग जिस जगह स्थापित है वो कर्क रेखा के गुजरने की जगह है।

महाकाल तंत्र के देवता हैं। अघोरियों के आराध्य हैं। ये मृत्यु के भय को दूर करते हैं। शिव का ये स्वरूप कहता है कि मृत्यु अटल है। उसे आना ही है। महाकाल मौत के डर को दूर करते हैं। जिस महामृत्युंजय मंत्र के लिए महाकाल प्रसिद्ध हैं वो वास्तव में अकाल मृत्यु को टालने का ही मंत्र मात्र नहीं है। वो मौत के डर को भी दूर करता है।

शिव कहते हैं मृत्यु का डर खत्म हो जाना ही मोक्ष का मार्ग है। कोई भी प्राणी तब तक मोक्ष प्राप्त नहीं कर पाता, जब तक कि उसके मन से मृत्यु का भय दूर ना हो जाए। मोह छूटना ही मोक्ष है।

9. कल्याण करते हैं इसलिए नाम है शंकर

शंकर का अर्थ है कल्याणकारी या शुभ करने वाला। भगवान शंकर कल्याण करने वाले हैं। वेद-पुराण कहते हैं “शं करोति सः शंकरः।” जो शमन करता है, मतलब जो सुख देता है वो शंकर हैं।

उन्हें शंकर कहा ही इसीलिए जाता है कि वो हर किसी को सिर्फ वरदान ही देते हैं। शिव अपनी आराधना करने वाले किसी भी इंसान में भेद नहीं करते हैं।

चाहे देवता हों या राक्षस। शिव के सामने सब समान हैं। जब-जब दैत्यों पर कोई मुसीबत आई, वे शिव की शरण में गए। शिव ने उन्हें सही रास्ता भी दिखाया।

शिव सिखाते हैं कि आपके मन में दूसरों का भला करने का भाव होना चाहिए। जो कोई आपके सामने मदद की गुहार लगाए और अगर आप सक्षम हैं तो उसे बिना किसी भेदभाव के मदद दें।

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