शनिवार (18 फरवरी) को महाशिवरात्रि है। इस दिन शिव जी की विशेष पूजा की जाएगी। भगवान विष्णु की तरह ही शिव जी ने भी समय-समय पर अवतार लिए हैं। शिवपुराण के मुताबिक, दुर्वासा मुनि भी शिव जी के ही अवतार थे। दुर्वासा हमेशा गुस्से में रहते थे। दुर्वासा मुनि ने इंद्र को शाप दिया था, क्योंकि इंद्र को अपने पद का घमंड हो गया था। जानिए दुर्वासा मुनि और इंद्र से जुड़ा किस्सा…
शिवपुराण कथाकार और ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के मुताबिक, ऋषि दुर्वासा के पास एक दिव्य माला थी। एक दिन उन्होंने सोचा कि ये माला मेरे किसी काम की नहीं है। उस समय उन्हें देवराज इंद्र दिखाई दिए।
दुर्वासा ऋषि ने वो माला इंद्र को दे दी। इंद्र अपने हाथी ऐरावत पर बैठे हुए थे। इंद्र देवताओं के राजा थे और ऐरावत पर बैठे थे, उन्हें अपने पद का ऊंचे वाहन का घमंड हो गया। घमंड की वजह से उन्होंने वह माला अपने हाथी को पहना दी।
ऐरावत ने उस माला को अपनी सूंड से पकड़ा और जमीन पर पटक दिया। ये सब दुर्वासा ऋषि ने देखा तो उनका गुस्सा बहुत बढ़ गया। अपने उपहार की ऐसी दशा और इंद्र के घमंड को देखकर उन्होंने स्वर्ग को श्रीहीन होने का शाप दे दिया।
दुर्वासा ऋषि शाप देकर चले गए, लेकिन ये शाप सुनते ही देवराज इंद्र और अन्य देवता घबरा गए। सभी देवता तुरंत ही भगवान विष्णु के पास पहुंचे।
विष्णु जी ने इंद्र से कहा कि ये सब आपके घमंड की वजह से हुआ है। आपको घमंड नहीं करना चाहिए। दुर्वासा ऋषि का शाप सच जरूर होगा। अब स्वर्ग की शोभा फिर से पाने के लिए सभी देवताओं को असुरों के साथ मिलकर समुद्र मंथन करना चाहिए। इस मंथन से कई दिव्य वस्तुएं निकलेंगी, जिनसे स्वर्ग फिर से दिव्य हो जाएगा। इनके साथ मंथन से अमृत भी निकलेगा, जिसे पीकर सभी देवता अजर-अमर हो जाएगा।
विष्णु जी की सलाह मानकर देवताओं ने असुरों के साथ मिलकर समुद्र मंथन किया और इंद्र के साथ ही सभी देवता अमृत पीकर अमर हो गए।
इस कथा में दुर्वासा ऋषि ने संदेश दिया है कि जो लोग अपने पद का घमंड करते हैं तो उस व्यक्ति का सबकुछ बर्बाद हो सकता है।