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साल का पहला ‘राष्ट्रीय कृषि अवार्ड’ गया छत्तीसगढ़ की झोली में : देश के सर्वोत्कृष्ट केवीके में छत्तीसगढ़ के “मां दंतेश्वरी हर्बल समूह” को मिला राष्ट्रीय अवार्ड

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फार्म एन फूड, कृषि विज्ञान केंद्र बस्ती, आचार्य नरेंद्र देव कृषि प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में दिया गया सम्मान

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राष्ट्रीय कृषक सम्मान समारोह कार्यक्रम में डॉ राजाराम त्रिपाठी ने दिया बीज-वक्तव्य

acn18.com रायपुर/छत्तीसगढ़ किसानों के लिए इस साल की नए साल की शुरुआत बड़ी धमाकेदार रही। साल का पहला तथा कृषि क्षेत्र का देश का बेहद प्रतिष्ठित माना जाने वाला “फार्म एन फूड नेशनल अवार्ड-2022” अवार्ड‌ बस्तर छत्तीसगढ़ के ‘मां दंतेश्वरी हर्बल समूह’ के खाते में गया।

यह पुरस्कार 6 जनवरी को कृषि विज्ञान केंद्र बस्ती व आचार्य नरेंद्र देव कृषि प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित भव्य राष्ट्रीय कार्यक्रम में प्रदान किया गया । इस अवसर पर प्रदेश के कृषि तथा उद्यानिकी के उच्चाधिकारी, वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिकों के साथ ही कृषि के क्षेत्र के देशभर के चुनिंदा नवाचारी किसान तथा क्षेत्र के बहुसंख्य प्रगतिशील किसान उपस्थित रहे। मां दंतेश्वरी हर्बल समूह की ओर से इस संस्था के संस्थापक प्रमुख डॉ राजाराम त्रिपाठी ने यह प्रतिष्ठित अवार्ड ग्रहण किया। डॉ त्रिपाठी इस कार्यक्रम के मुख्य वक्ता भी थे।

क्या है मां दंतेश्वरी हर्बल समूह?

यह मुख्य रूप से जैविक पद्धति से हर्बल तथा अन्य उच्च लाभदायक खेती करने वाले किसानों का समूह है इसमें मुख्य रूप से बस्तर के जनजातीय किसान शामिल हैं। डॉ राजाराम त्रिपाठी ने 1996 में जैविक पद्धति से उच्च लाभदायक कृषि तथा सामूहिक विपणन की अपनी विशिष्ट सोच के आधार “मां दंतेश्वरी हर्बल समूह”
( www.mdhherbals.com) की स्थापना की । आज हजारों जनजाति परिवार उनकी इस मुहिम से जुड़ कर न केवल अपनी आजीविका चला रहे हैं बल्कि भारत की विरासती अनमोल जड़ी-बुटियों को संजो भी रहे हैं.

इसके संस्थापक डॉ राजा राम त्रिपाठी को भारत का हरित-योद्धा कहा जाता है . दरअसल, डॉ त्रिपाठी ने भारतीय कृषि की बनी बनाई लीक तोड़ी है और वैज्ञानिक तत्व निहित खेती और उसकी लाभदायकता को परिभाषित किया है. उन्होंने विलुप्त हो रही जड़ी-बुटियों के संरक्षण के लिए न केवल महत्वपूर्ण कार्य किया है, उन्होंने बल्कि विलुप्त प्राय दुर्लभ वनौषधियों के लिए उनके प्राकृतिक रहवास (Natural habitats) में लिए “इथिनो मेडिको गार्डेन” के रूप में देश का पहला मानवनिर्मित हर्बल फारेस्ट भी विकसित किया है, जहां इन विलुप्त होती प्रजातियों का संरक्षण संवर्धन किया जा रहा है. छत्तीसगढ़ के अति पिछड़े व अतिसंवेदनशील क्षेत्र के रूप में बस्तर को जाना जाता है, वहीं डॉ त्रिपाठी जन्मे और पले बढ़े. इस पिछड़े इलाके में उन्होंने वहां उम्मीद की एक नई पौध का रोपण किया है।

इसके अलावा सेंट्रल हर्बल एग्रो मार्केटिंग फेडरेशन (CHAMF www.chamf.org) के माध्यम से देश के 50 हजार से अधिक आर्गेनिक फार्मर्स डॉ त्रिपाठी के इस अभियान में कदम ताल कर रहे हैं.
*बी.एससी, एलएलबी , हिंदी साहित्य, अंग्रेजी साहित्य, इतिहास, अर्थशास्त्र, राजनीति विज्ञान सहित पांच विषयों में एम. ए. व डाक्टरेट की उपाधि प्राप्त डॉ त्रिपाठी को देश का सबसे ज्यादा शिक्षा प्राप्त किसान माना जाता है.

विशेष:-
डा. त्रिपाठी को देश के ४५ पैंतालिस किसान संगठनों के महासंघ ,,,”अखिल भारतीय किसान महासंघ ( आईफा)” का राष्ट्रीय संयोजक बनाया गया है।डॉक्टर त्रिपाठी को हाल ही में देश के अग्रणी 223 किसान संगठनों के द्वारा बनाए गए “एमएसपी गारंटी-किसान मोर्चा” का राष्ट्रीय प्रवक्ता बनाया गया है।

डॉ त्रिपाठी के नेतृत्व में ‘मां दंतेश्वरी हर्बल समूह’ को देश का पहला आर्गेनिक (जैविक) सर्टिफाइड उत्पाद बनाने वाले कृषक समूह के रूप में २२ साल पहले वर्ष 2000 में मान्यता मिली. दो दशकों से वे अपने उत्पादों का यूरो,अमेरिका सहित कई देशों में निर्यात भी कर रहे हैं और वहां इसे काफी पसंद भी किया जा रहा है. इसके लिए इन्हें देश का “बेस्ट एक्सपोर्टर-अवार्ड” भी मिल चुका है.

इन्होंने भारत सरकार के सर्वोच्च शोध संस्थान के संगठन सी .एस .आई. आर. CSIR IHBT के साथ करार कर स्टिविया की खेती और स्टीविया की पूर्णतः कड़वाहट रहित और शक्कर से 250 गुना मीठी स्टिविया की शक्कर बनाने के लिए कारखाना लगाने के लिए करार भी किया है।

उल्लेखनीय है हर्बल या आर्गेनिक व्यवसाय से जुड़ी देश की बड़ी कंपनियां जंगली जड़ी-बुटियों का भारी मात्रा में दोहन तो कर रही हैं लेकिन उनके संरक्षण की दिशा में उनका योगदान नगण्य है, इसकी वजह से जुड़ी बुटियों की ढेर सारी प्रजातियां विलुप्त होने की कगार पर है. ऐसी विलुप्त हो रही जुड़ी-बुटियों को संरक्षित करने का महती कार्य वे कर रहे हैं. उनके इन योगदान को देखते हुए उन्हें की अंतरराष्ट्रीय स्तर के कई पुरस्कार जिनमें ग्रीन वारियर भी शामिल हैं, से नवाजा गया हैं.

इन्होंने पूर्णता जैविक पद्धति से देश के हर भाग में न्यूनतम देखभाल के साथ खेती करने योग्य एवं परंपरागत प्रजातियों से ज्यादा उत्पादन देने वाली और बेहतर गुणवत्ता की 1-कालीमिर्च की नई प्रजाति “मां दंतेश्वरी काली मिर्च-16, पीपली की नई प्रजाति”मां दंतेश्वरी पीपली -16” एवं स्टीविया की नई प्रजाति “मां दंतेश्वरी स्टीविया-16 आदि प्रजातियों का विकास भी किया है।

डॉ त्रिपाठी देश के पहले ऐसे किसान हैं,जिन्हें देश के सर्वश्रेष्ठ किसान होने का अवार्ड तीन-तीन बार ,भारत सरकार के कृषि मंत्री के हाथों मिल चुका है,अब तक देश-विदेश से उन्हें 150 से अधिक अवार्ड मिले हैं.

“फार्म एन फूड” दिल्ली प्रेस की देश के किसानों की लोकप्रिय पाक्षिक पत्रिका है, जहां से 30 पत्रिकाएं 9 नौ भाषाओं में प्रकाशित होती हैं। जिसमें सरस सलिल, सरिता, मुक्ता , गृहशोभा, सत्यकथा, मनोहर कहानियां, चंपक, द कैरेवां, मोटरिंग वर्ड जैसी पत्रिकाएं प्रमुख हैं। इनके द्वारा हर वर्ष पिछले 10 सालों से कृषि के विभिन्न क्षेत्रों में विशिष्ट योगदान हेतु राज्यस्तरीय अवार्ड दिए जा रहे हैं। इस पहले प्रतिष्ठित नेशनल-अवॉर्ड को ‘मां दंतेश्वरी हर्बल समूह’ को दिए जाने से बस्तर अंचल ही नहीं पूरी छत्तीसगढ़ की किसान गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं. डॉक्टर त्रिपाठी ने इस उपलब्धि का श्रेय बस्तर की माटी ,मां दंतेश्वरी हर्बल समूह से जुड़े हुए सभी साथियों, स्थानीय प्रशासन, परिजनों तथा मीडिया के माननीय साथियों को देते हुए कहा कि ‘अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता’ यह कहावत खेती पर काफी हद तक लागू होती है। इस सफलता में भी बहुत सारे लोगों का कठोर परिश्रम तथा उनका सतत योगदान शामिल है, उन सभी साथियों को ढेरों बधाइयां तथा धन्यवाद। उन्होंने कहा कि ऐसे अवार्ड तथा सार्वजनिक सम्मान प्राप्त होने से समाज के प्रति हमारा दायित्व और जिम्मेदारियां और अधिक बढ़ जाती है। निश्चित रूप से इससे हमें और बेहतर करने की प्रेरणा भी मिलेगी, और इसका लाभ पूरे समाज तथा देश को मिलेगा।

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