अन्नपूर्णा जयंती मार्गशीर्ष मास की पूर्णिमा पर अपने भक्तों को सुख-सौभाग्य प्रदान करने वाली देवी अन्नपूर्णा की पूजा हर्ष और उल्लास के साथ की जाती है। ऐसा माना जाता है कि एक बार प्राचीन काल में, जब पृथ्वी पर अन्न की कमी हो गई थी, तब माता पार्वती (गौरी) ने अन्न की देवी के रूप में ‘माँ अन्नपूर्णा’ का अवतार लिया था, ताकि पृथ्वी के लोगों को भोजन प्रदान किया जा सके और अपने आनंद से समस्त मानव जाति की रक्षा करना। जिस दिन मां अन्नपूर्णा का जन्म हुआ था, वह हिंदी कैलेंडर में मार्गशीर्ष मास की पूर्णिमा थी। इसी कारण मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन ‘अन्नपूर्णा जयंती’ मनाई जाती है। अन्नपूर्णा देवी की इस दिन पूरी श्रद्धा और विधि-विधान से पूजा की जाती है क्योंकि उन्हें भक्तों के लिए देवी गौरी के सर्वश्रेष्ठ अवतारों में से एक माना जाता है। इस दिन मां अन्नपूर्णा की विधि-विधान से पूजा-अर्चना करने से सुख-समृद्धि प्राप्ति होने की मान्यता है।
अन्नपूर्णा जयंती 2022 मुहूर्त
पूर्णिमा तिथि आरंभ: 7 दिसंबर, प्रातः 08:01 मिनट से
पूर्णिमा तिथि समाप्त: 8 दिसंबर प्रातः 9.37 पर
अन्नपूर्णा जयंती 8 दिसंबर 2022 को मनाई जाएगी।
- अन्नपूर्णा जयंती के दिन तामसिक भोजन का सेवन न करें।
- इस दिन गरीबों और ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए।
- इस दिन जरूरतमंदों की मदद भी करनी चाहिए।
- अनपूर्णा जयंती के दिन अन्न का अपमान न करें।
- इस दिन गाय को खाना खिलाएं।
- इस दिन सामर्थ अनुसार जरूरतमंदों को दान करें।
पूजा विधि
- ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान आदि से निवृत होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- इसके बाद रसोई की अच्छे से सफाई कर गंगा जल से शुद्ध करें।
- इसके बाद लाल कपड़े पर मां अन्नपूर्णा की तस्वीर रखें।
- इसके बाद मां को टीका लगाएं और पुष्प अर्पित करें।
- इसके बाद चूल्हें पर रोली, हल्दी और अक्षत लगाएं।
- इसके बाद मां अन्नपूर्णा की धूप और दीप लगाकर पूजा करें।
- अब मां पार्वती और भगवान शिव की भी पूजा करें।
- पूजा के बाद चूल्हे पर चावल की खीर बनाएं।
- सबसे पहले माता को भोग लगाएं और इसके बाद प्रसाद के रूप में सबको बांटें।
- अन्नापूर्णा जयंती महत्व
पौराणिक कथा के मुताबिक मार्गशीर्ष मास की पूर्णिमा के दिन माता पार्वती मां अन्नपूर्णा के रूप में धरती पर प्रकट हुई थी। मान्यता है कि इस दिन मां अन्नपूर्णा की पूजा करने से घर में कभी अन्न की कमी नहीं होती है। इसके साथ ही आर्थिक समृद्धि भी आती है। पूजा पाठ के बाद दान करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है। - दत्तात्रेय जन्मोत्सव 7 दिसंबर को:मार्गशीर्ष पूर्णिमा पर हुआ था अनुसुइया के पुत्र भगवान दत्तात्रेय का जन्म, इस दिन खत्म होगा मार्गशीर्ष