रविवार, 27 नवंबर को अगहन शुक्ल चतुर्थी है, इस तिथि पर गणेश जी की विशेष पूजा और व्रत किया जाता है। रविवार चतुर्थी होने से इस दिन सूर्य देव की भी पूजा जरूर करें। एक महीने में दो चतुर्थी आती हैं। इस तरह साल में कुल 24 चतुर्थी रहती हैं, जब किसी वर्ष में अधिक मास रहता है, तब दो चतुर्थी बढ़ जाती हैं। इस तिथि के स्वामी गणेश जी हैं, क्योंकि इसी तिथि पर गणेश जी प्रकट हुए थे।
उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के मुताबिक चतुर्थी पर किए गए व्रत-उपवास और पूजन से घर-परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहती है। इस दिन पूजन के साथ ही जरूरतमंद लोगों को अपनी शक्ति के अनुसार दान-पुण्य जरूर करना चाहिए। अभी ठंड का समय है तो कंबल, गर्म कपड़े का दान करें। किसी मंदिर में पूजन सामग्री भेंट करें। गणेश जी की पूजा करें, लेकिन ध्यान रखें गणेश जी को तुलसी नहीं चढ़ानी चाहिए।
गणेश जी को क्यों नहीं चढ़ाते हैं तुलसी?
तुलसी को पूजनीय और पवित्र माना जाता है और विष्णु जी, श्रीकृष्ण की पूजा तुलसी के बिना पूरी नहीं होती है, लेकिन गणेश जी और शिव जी को तुलसी नहीं चढ़ाई जाती है। इस संबंध में कई कथाएं प्रचलित हैं।
एक कथा के मुताबिक तुलसी गणेश जी से विवाह करना चाहती थीं और इसके लिए तुलसी ने भगवान से प्रार्थना भी की थी। उस समय गणेश जी विवाह नहीं करना चाहते थे, इस कारण उन्होंने तुलसी को मना कर दिया। इस बात से क्रोधित होकर तुलसी ने गणेश जी को दो विवाह होने का शाप दे दिया। गणेश जी ने भी तुलसी को शाप दे दिया कि तुम्हारा विवाह एक असुर से होगा।
इस घटना के बाद गणेश जी ने तुलसी को उनकी पूजा के लिए वर्जित कर दिया था। इस कारण गणपति को तुलसी नहीं चढ़ाई जाती है।
गणेश जी को दूर्वा क्यों चढ़ाते हैं?
इस संबंध में प्रचलित कथा के मुताबिक पुराने समय में गणेश जी ने अनलासुर नाम के एक दैत्य को निगल लिया था। इस वजह से उनके पेट में जलन होने लगी थी। तब ऋषियों ने गणेश जी को दूर्वा की गांठ बनाकर खाने के लिए दी। दूर्वा के सेवन से गणेश जी के पेट की जलन शांत हो गई। इसके बाद से भगवान को दूर्वा खासतौर पर चढ़ाई जाती है।