ACN18.COM बिलासपुर/छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने बच्चे की कस्टडी को लेकर प्रस्तुत अपील पर महत्वपूर्ण फैसला देते हुए कहा है कि समाज के कुछ शुतुरमुर्ग मानसिकता वाले सदस्यों के दिए गए चरित्र प्रमाण पत्र के आधार पर महिला का चरित्र तय नहीं किया जा सकता। जस्टिस गौतम भादुड़ी और जस्टिस संजय एस अग्रवाल की डिवीजन बेंच ने कहा कि जींस-टी शर्ट पहनने और किसी पुरुष के साथ घूमने से महिला के चरित्र का आंकलन करना गलत है। इस टिप्पणी के साथ ही कोर्ट ने महिला को उसके बच्चे को कस्टडी में देने का आदेश दिया है। हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट महासमुंद के आदेश को रद्द कर करते हुए बच्चे को उसके पिता से मिलवाने की शर्त पर उसकी मां को सौंपने का आदेश दिया है।
दरअसल, इस मामले में पिता ने अभिभावक अधिनियम 1890 की धारा 25 के तहत फैमिली कोर्ट में एक आवेदन प्रस्तुत कर बच्चे को संरक्षण में लेने की मांग की थी। बच्चा उसकी तलाकशुदा पत्नी और अपनी मां के साथ रहता था। इससे पूर्व पति और पत्नी के बीच विवाह को भंग करने वाली तलाक के आदेश में बच्चे की कस्टडी मां को दी गई थी। फैमिली कोर्ट में दिए अपने आवेदन में बच्चे के पिता ने आरोप लगाया था कि उसके बच्चे की मां किसी दूसरे पुरुष के संपर्क में रहती है। इससे बच्चे पर बुरा असर पड़ेगा। इस आधार के साथ ही आवेदन में महिला के पहनावे पर भी सवाल उठाए। पति ने यह तर्क दिया कि यदि बच्चे को उसकी कस्टडी में रखा जाता है, तो बच्चे के दिमाग पर बुरा प्रभाव पड़ेगा।
फैमिली कोर्ट के आदेश को दी थी चुनौती, मौखिक आरोप है, नहीं है कोई सबूत
पति ने फैमिली कोर्ट में दिए आवेदन में यह आरोप भी लगाए की महिला का अवैध संबंध है। शराब, गुटखा का सेवन और सिगरेट भी पीती है। इस आधार पर फैमिली कोर्ट ने बच्चे की अभिरक्षा पिता को देने का आदेश दे दिया। फैमिली कोर्ट के इस आदेश को बच्चे की मां ने चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में अपील प्रस्तुत की। इसमें महिला के वकील सुनील साहू ने तर्क दिया कि फैमिली कोर्ट का आदेश केवल तीसरे व्यक्ति के बयान पर आधारित है। मौखिक बयानों के अलावा तथ्य को स्थापित करने और पत्नी के चरित्र के अनुमान लगाने के लिए रिकॉर्ड में कुछ भी नहीं है।
नौकरी के सिलसिले में पुरुष के साथ जाने, पहनावे से चरित्र निर्धारण नहीं
दोनों पक्षों के गवाहों द्वारा दिए साक्ष्यों का परीक्षण करते हुए हाईकोर्ट ने पाया कि पिता की ओर से प्रस्तुत साक्ष्य उनके अपने विचार और अन्य लोगों की बातों पर आधारित है। इस संबंध में हाईकोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा है कि यदि एक महिला को अपनी आजीविका के लिए नौकरी करने की आवश्यकता है तो स्वाभाविक रूप से उसे एक जगह से दूसरे जगह जाने की जरूरत होगी। सिर्फ इस तथ्य के कारण कि वह सार्वजनिक रूप से पुरुष के साथ कार में आना-जाना करती है। इसके आधार पर यह अनुमान नहीं लगाया जा सकता है कि उसके चरित्र में दाग है।
हाईकोर्ट ने कहा- गलत कल्पनाओं को महत्व नहीं देंगे
शराब और धूम्रपान आदि के सेवन के आरोप पर हाईकोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा है कि जब महिला के चरित्र की हत्या के लिए हमला किया जाता है तो एक सीमा रेखा निर्धारित करना महत्वपूर्ण है। इस मामले में गवाहों के बयान से पता चलता है कि वे महिलाओं की पोशाक जैसे जींस और टी-शर्ट पहनना और किसी पुरुष सदस्य के साथ चलने से चरित्र का आंकलन करते हैं। कोर्ट ने कहा कि इससे हमें डर है कि अगर इस तरह की गलत कल्पना को महत्व दिया गया तो महिलाओं के अधिकार और स्वतंत्रता की रक्षा के लिए एक लंबी कठिन लड़ाई होगी। कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि अगर पूरी बात यह दिखाने के लिए है कि पत्नी के चरित्र के कारण, बच्चे पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा तो ऐसे मामलों में सबूत एकदम पुख्ता होनी चाहिए।
मां के संरक्षण में बच्चे का कल्याण, पिता को भी मिलने का अधिकार
रिकॉर्ड पर मौजूद सभी सबूतों पर विचार करते हुए हाईकोर्ट ने आदेशित किया है कि अगर बच्चे को मां के संरक्षण में रखा जाता है, तो बच्चे का कल्याण सुनिश्चित होगा। कोर्ट ने बच्चे की कस्टडी पिता को सौंपने फैमिली कोर्ट के आदेश को निरस्त कर दिया है। इसके साथ ही पिता को अपने बच्चे से मुलाकात करने का अधिकार देते हुए मां के लिए शर्तें तय किया गया है। इसके अनुसार शनिवार और रविवार को पिता वीडियो कॉलिंग से अपने पिता से बात कर सकेगा। इसी तरह समय-समय पर वह बच्चे से मिल भी सकेगा।