Acn18.com.भले ही भाजपा इस बात को जोर से कैंपेन करती है कि वह विश्व की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी है और उसमें अनुशासन कूट-कूट कर भरा हुआ है। हर तरफ इसके प्रदर्शन की उम्मीद भी की जाती है किंतु कोरबा में नगर निगम सभापति चुनाव में भाजपा की ओर से अधिकृत उम्मीदवार तब पराजित हो गया जब यहां भाजपा काफी मजबूत थी। संगठन को दरकिनार कर भाजपा के ही एक प्रत्याशी ने बगावत की और फॉर्म भर दिया । चुनाव में उसे 15 वोट से जीत मिली। कहा जा रहा है कि चुनाव में भाजपा ने ही भाजपा प्रत्याशी को हरा दिया।11 फरवरी को नगर निगम कोरबा के चुनाव हुए थे जिसके परिणाम 15 फरवरी को घोषित हुए भाजपा की संजू देवी राजपूत महापौर निर्वाचित हुई जबकि 45 वार्ड से इसी पार्टी के पार्षद जीतकर आये। इससे कहा जा रहा था कि सभापति चुनाव में भाजपा के उम्मीदवार को बड़ी आसानी से जीत मिल जाएगी। सभापति के लिए कोरबा से कई पार्षदो ने दावा किया। पर्यवेक्षक से लेकर मंत्रियों तक बात पहुंची फिर भी सहमति नहीं बन सकी। पार्टी कार्यालय दीनदयाल कुंज में काफी मशक्कत के बाद भाजपा संगठन ने पूर्व नेता प्रतिपक्ष हितानन्द अग्रवाल को प्रत्याशी घोषित कर दिया। हैरान करने वाली बात यह रही कि अधिकृत प्रत्याशी की घोषणा के बावजूद भाजपा पार्षद नूतन सिंह ने नामांकन दाखिल कर दिया। जबकि निर्दलीय व अन्य के समर्थन से निर्दलीय पार्षद अब्दुल रहमान ने भी नामांकन पेश किया। अजीत वसंत के द्वारा औपचारिकताओं के साथ मतदान की प्रक्रिया कराई गई। वोट की गिनती हुई तो हर कोई चौक उठा। भाजपा के घोषित प्रत्याशी हितानन्द अग्रवाल को महज 18 वोट मिले। जबकि नूतन को 33 वोट प्राप्त प्राप्त हुए। वे विजयी हुए। जीत का अंतर 15 वोट का रहा। वही निर्दलीय अब्दुल रहमान को 16 वोट मिले।कलेक्टर ने चुनाव के नतीजे की घोषणा की।
चुनाव के नतीजे को लेकर मीडिया ने कैबिनेट मंत्री लखन लाल देवांगन से बातचीत की तो उनका कहना था कि पांच लोगों के नाम पैनल में थे। किसी पर भी सहमति नहीं बन सकी। चुनाव में भाजपा संगठन ने अधिकृत रूप से हिता नंद अग्रवाल को प्रत्याशी बनाया था हालांकि जिसकी जीत हुई है वह भी भाजपा का ही पार्षद है।
सभापति निर्वाचित नूतन सिंह ने बताया कि सदन में सबको साथ लेकर चलने का प्रयास किया जाएगा।
छत्तीसगढ़ के अधिकांश नगरीय निकायों में भाजपा ने अपने संख्या बल के आधार पर सभापति और उपाध्यक्ष का चुनाव आम सहमति से करने में सफलता प्राप्त कर ली। इस मामले में कोरबा को लेकर अपवाद कहा जा सकता है कि यहां सभापति के चुनाव में आम सहमति बन नहीं सकी और अनुशासन की कलई खुल गई। इसके साथ ही संगठन की अंतरकलह भी खुलकर उजागर हो गई। सभापति चुनाव के नतीजे के बाद अब हर तरफ इसी बात की चर्चा है कि राजनीति में कई ऐसे कारण होते हैं जिससे अपने लोग ही अपनों को निपटा दिया करते हैं। अब कहां जा रहा है कि कोरबा से जुड़ा यह मामला प्रदेश के साथ-साथ केंद्र तक जरूर पहुंचेगा क्योंकि अनुशासन की डोर तो वहां से बंधी हुई है।