ग्रामीण क्षेत्र के एक पत्रकार के द्वारा देहदान करने के संकल्प की पूर्ति को अभी एक पखवाड़ा पूरा भी नहीं हुआ था कि उनके बेटे और बहू ने भी मरणोपरांत देहदान करने की इच्छा जताई है । यह घोषणा दशगात्र कार्यक्रम के दौरान की गई। ऐसे मामलों में परिवार से लेकर समाज के बीच होने वाले विरोध और उत्पन्न होने वाली स्थिति को लेकर उन्होंने मीडिया से अपने अनुभव साझा किए। देहदानी परिवार का भारत विकास परिषद द्वारा सम्मान किया गया।
कोरबा जिले के बरपाली गांव के पत्रकार प्रदीप महतो का अक्टूबर की शुरुआती दिनों में निधन हो गया था। 5 वर्ष पहले उन्होंने अपने जन्मदिन पर मरणोपरांत देहदान की घोषणा की थी। रविवार को सामाजिक मान्यताओं के अंतर्गत गांव में परिवार के द्वारा उनका दशगात्र संपन्न किया गया। आसपास के कई गांवों और कोरबा शहर के प्रतिष्ठित लोग कार्यक्रम में शामिल हुए। इस अवसर पर स्वर्गीय प्रदीप महतो की बहु प्रीति महतो और उनके पुत्र महेंद्र महतो ने भी भविष्य में देहदान करने की घोषणा की। सार्वजनिक कार्यक्रम में उनकी इस घोषणा को कुछ लोगों ने सहजता से लिया तो काफी लोग भौचक रह गए। इस घोषणा को लेकर सरकारी स्कूल में प्राचार्य के पद पर कार्यरत बहु प्रीति महतो ने बताया कि उन्होंने काफी पहले संकल्प कर लिया था लेकिन इसकी विधिवत घोषणा आज की गई है। इसकी प्रेरणा उन्हें बाबूजी यानी स्वर्गीय प्रदीप महतो से मिली ।
प्रीति ने बताया कि उनके ससुर के द्वारा देहदान की घोषणा और मृत्यु होने पर अगली प्रक्रियाओं को लेकर विवाद की स्थिति बनी थी। लेकिन हमने उसे संभाला।
प्रदीप के पुत्र महेंद्र महतो ने बताया कि अपने जीवन काल में पिता से काफी कुछ सीखने को मिला है और उनकी प्रेरणा से ही उन्होंने देहदान का निर्णय लिया है। इस तरह की घोषणाओं को लेकर परिवार और समाज स्वाभाविक रूप से विरोध करता है और ऐसा पिता की मृत्यु के मामले में भी हुआ।
भारत विकास परिषद प्रस्तावित नेत्र बैंक प्रकोष्ठ के प्रभारी महेश गुप्ता सह प्रभारी डीके कुदेशिया और एसीएन ग्रैंड न्यूज़ के संपादक कमलेश यादव देहदान करने वाले परिवार द्वारा किए गए इस पुनीत कार्य की भूरि भूरि प्रशंसा करते हुए कहा कि समाज महतो परिवार के इस योगदान को कभी विस्मृत नहीं कर पाएगा।
पत्रकार सनद दास दीवान ,घासी गिरी गोस्वामी और इंजीनियर प्रशांत महतो ने लोगों के द्वारा देहदान किए जाने के संकल्प को लेकर अलग-अलग दृष्टिकोण रखा।
शाश्वत मान्यता यही है कि जीवन के बाद मृत्यु अटल सत्य मानी जाती है । हिंदू परंपरा के अंतर्गत मृत व्यक्तियों का अंतिम संस्कार करने की अपनी व्यवस्था है जिसे हर समाज की स्वीकृति मिली हुई है। माना जाता है कि मृत्यु के बाद शरीर पांच तत्वों में विलीन हो जाता है इसलिए उसे प्रमुख रूप से अग्नि तत्व को समर्पित किया जाता है। इन सब से हटकर चिकित्सा विज्ञान के द्वारा पिछले कुछ वर्षों से अनुसंधान संबंधित कार्यों के लिए मृत सम्पूर्ण शरीर या उसके कुछ अंगों का दान करने के लिए समाज में जागरूकता फैलाई जा रही है। समय के साथ विभिन्न हिस्सों में इसके परिणाम सामने आ रहे हैं। इसके कारण चिकित्सा से जुड़े नवीन अनुसंधान का काम आसान हो रहा है। इस पूरी प्रक्रिया के पीछे सामाजिक और धार्मिक क्षेत्र से जुड़े लोग अलग तर्क देते हैं और चिकित्सा जगत अपनी जरूरत बताता है। चिकित्सको का कहना है कि कम से कम भारत के संदर्भ में देहदान को लेकर आदर्श स्थिति बनने में अभी कुछ और वर्ष लग सकते हैं