सोमवार को गोपाष्टमी का पर्व गो भक्तों ने गौ माता की पूजा अर्चना कर मनाया। गोपाष्टमी का त्योहार सर्वाधिक ब्रज में मनाया जाता है किंतु देश के सभी हिस्सों में गौ भक्त इस दिन गोमांता की पूजा अर्चना कर भगवान श्री कृष्णा की भी आराधना करते हैं
कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को गोपाष्टमी पर्व मनाये जाने की परंपरा है। यह पर्व 20 नवंबर सोमवार को मनाया गया। इस पवित्र पर्व के विषय में कथा है कि जब भगवान श्री कृष्ण 6 वर्ष के हो गए तो उन्होंने अपनी मां यशोदा से कहा कि वह बछड़ों की बजाय गौ माता को चराने जंगल लेकर जाएंगे। माता ने उन्हें पिता नंद बाबा से अनुमति लेने को कहा। नंद बाबा ने गोचरण तिथि के लिए श्री कृष्ण को ब्राह्मण के पास भेजा।श्री कृष्ण ने ब्राह्मण से कहा कि वह आज की ही तिथि निकाल दें तो उन्हें वह मक्खन खिलाएंगे ।पंडित जी नंद बाबा के घर गए और उन्होंने भगवान श्री कृष्ण की इच्छा के अनुसार कह दिया कि आज ही वह शुभ दिन है इसके बाद एक वर्ष तक यह तिथि नहीं आएगी । नंद बाबा ने पूजा अर्चना कर भगवान श्री कृष्ण को गोचरण की अनुमति दे दी।
गोपाष्टमी के दिन ही भगवान श्री कृष्ण ने वन में ले जाकर गौ माता को चराने का कार्य शुरू किया था। कथा है की गोपाष्टमी के दिन ही कामधेनु ने भगवान श्री कृष्ण का अभिषेक किया था। गोपाष्टमी की तिथि पर गायों को नहला धुला कर पूजा की जाती है। इस परंपरा का निर्वहन ब्रज में पूरी श्रद्धा के साथ किया जाता है लेकिन कोरबा में भी गोपाष्टमी के दिन गौ माता की पूजा की गई।
गौरतलब है की एक समय कहा जाता था कि जिसके पास गोधन है वह दुनिया का सबसे अमीर व्यक्ति है लेकिन अब परिस्थितिया बदली है। अधिकांश लोग गायों को दूध निकालने के बाद मुक्त कर देते हैं यह गाए यत्र तत्र भटकती रहती है दुर्घटना में उनकी मौत हो जाती है अथवा प्लास्टिक इत्यादि खाकर वह बीमार होकर मौत को प्राप्त हो जाती हैं। ऐसी गायों की सेवा करने के लिए भी अनेक स्थानों पर गोभक्त सक्रिय हैं। ऐसे लोग न केवल गौ माता की रक्षा करते हैं बल्कि इसके जरिए पुण्य के भागी भी बनते हैं