Acn18.com/चीनी कंपनी सेपको सहित जीडीसीएल और बीएससी से जुड़े 13 अधिकारियों की मुश्किल खत्म नहीं हुई है। वर्ष 2009 में हुए बालको चिमनी हादसे में इन्हें आरोपी नामजद किया गया था। मामले में आरोपियों को अंतरिम राहत प्राप्त हुई थी जिसे हाई कोर्ट ने रद्द कर दिया है। इसके साथ ही सभी आरोपियों पर मुकदमा चलाने और 1 वर्ष के भीतर निपटारा करने का आदेश दिया है।
1200 मेगावाट बिजली उत्पादन क्षमता वाले बिजली घर का निर्माण बालकों के द्वारा कराए जाने के दौरान उसकी विशाल चिमनी सितंबर 2009 को धराशाई हो गई थी। इस घटना में झारखंड, बिहार और मध्य प्रदेश के 40 मजदूरों की मौत हो गई थी जो मौके पर काम कर रहे थे। मजदूरों की मौत के लिए चिमनी बनाने वाली कंपनी सेप्को, जीडीसीएल और एंसीसीबीएस के तेरा अधिकारियों को जिम्मेदार माना गया। शासकीय लोक अभियोजक रोहित राजवाड़े ने बताया कि स्थानीय एडीजे कोर्ट ने आरोपियों के खिलाफ आरोप तय किए थे इसके बाद संबंधित लोगों ने हाई कोर्ट में क्रिमिनल रिवीजन दायर किया था। हाई कोर्ट के द्वारा अंतरिम राहत को समाप्त करते हुए कहा गया है कि कोरबा न्यायालय में यह मामला जारी रहेगा।
जानकारी के मुताबिक कोरबा कोर्ट द्वारा आरोप तय किए जाने के बाद उपरोक्त तीनों कंपनियों के आरोपित अधिकारियों ने राहत प्राप्त कर ली थी। इस प्रकरण में हाईकोर्ट ने सीआरपीसी की धारा 397/401 के तहत संशोधन के साथ पिछली अंतरिम जमानत को खारिज कर दिया है। हाई कोर्ट के जस्टिस रमेश सिन्हा ने आदेश में कहा कि इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि घटना सितंबर 2009 की है और मुकदमा वर्ष 2010 से लंबित है और 13 साल से अधिक समय बीत चुका है। इस न्यायालय द्वारा पारित अंतरिम आदेश के कारण वर्तमान मामले को इसके तार्किक अंत तक नहीं लाया गया है, इसलिए ट्रायल कोर्ट को निर्देश दिया जाता है कि वह मुकदमे को शीघ्रता से निपटाए और निष्कर्ष निकाले
यदि कोई कानूनी बाधा नहीं है, तो पार्टियों को अनावश्यक स्थगन दिए बिना, इस आदेश की प्रमाणित प्रति प्रस्तुत करने की तारीख से एक वर्ष की अवधि के भीतर कानून के अनुसार इसे निर्णीत किया जाए।
रजिस्ट्रार (न्यायिक) को आवश्यक जानकारी और अनुपालन के लिए इस आदेश की एक प्रति संबंधित ट्रायल कोर्ट को भेजने का भी निर्देश दिया गया है। याद रहे भारत अल्युमिनियम कंपनी की मनमानी के किस्से काफी समय से सुर्खियों में रहे हैं। कभी जमीन कब्जाने तो कभी आम रास्ते को बाधित करने के साथ-साथ जन स्वास्थ्य के खतरे उत्पन्न करने के आरोप उस पर लगाते रहे हैं। बालको में चिमनी हादसे की जांच को लेकर गठित बख्शी आयोग के कार्यकाल को छह बार बढ़ाने के बाद एक तरह से इस मामले को भुला दिया गया था। अब हाई कोर्ट के नए निर्णय ने हादसे के दोषियों की चिंता बढ़ा दी है।