Acn18.com/आज (5 सितंबर) शिक्षक दिवस है। ये दिवस भारत के प्रथम उपराष्ट्रपति और दूसरे राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिन पर मनाया जाता है। शास्त्रों में गुरु यानी शिक्षकों का स्थान सबसे ऊंचा बताया गया है। जानिए गुरु का महत्व बताने वाले कुछ खास दोहे और श्लोक…
1.
गुरु कुम्हार शिष्य कुंभ है, गढ़ि-गढ़ि काढ़ै खोट।
अंदर हाथ सहार दै, बाहर बाहै चोट॥ (कबीरदास)
अर्थ – गुरु कुम्हार की तरह होते हैं और शिष्य घड़े के जैसे। कुम्हार घड़े के अंदर हाथ लगाता है और बाहर चोट मार-मार गढ़ता है। गुरु भी इसी तरह शिष्य की बुराई निकालते हैं।
2.
सब धरती कागज करूं, लिखनी सब बनराय।
सात समुद्र की मसि करूं, गुरु गुण लिखा न जाय॥ (कबीरदास)
अर्थ – पूरी धरती को कागज बना दो, जंगल की सभी लकड़ियों को कलम और सातों समुद्रों को स्याही बनाकर लिखने पर भी गुरु के गुण नहीं लिखे जा सकते हैं।
3.
बंदउँ गुरु पद कंज कृपा सिंधु नर रूप हरि।
महामोह तम पुंज जासु बचन रवि कर निकर।। (श्रीरामचरित मानस बालकांड, तुलसीदास)
अर्थ- गुरु कृपा के समुद्र और नर रूप में विष्णु जी के समान हैं। गुरु के वचन यानी सीख हमारे महामोह के अंधकार को दूर करने के लिए सूर्य की किरणों के समूह हैं।
4.
बंदउँ गुरु पद पदुम परागा। सुरुचि सुवास सरस अनुरागा।
अमिअ मूरिमय चूरन चारू। समन सकल भव रूज परिवारू। (श्रीरामचरित मानस बालकांड, तुलसीदास)
अर्थ – गुरु के चरणों की धूल को प्रणाम है, जो सुंदर स्वाद, सुगंध और अनुराग के रस से परिपूर्ण है। गुरु के चरणों की रज अमर मूल यानी संजीवनी जड़ी की तरह है। ये सभी भव रोगों के परिवार का नाश करने वाली है।
5.
गुरुर्ब्रह्मा ग्रुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः।।
अर्थ – गुरु ब्रह्मा हैं, गुरु विष्णु हैं, गुरु ही शिव हैं। गुरु ही साक्षात् परब्रह्म हैं। उन सद्गुरु को प्रणाम है।
6.
धर्मज्ञो धर्मकर्ता च सदा धर्मपरायणः।
तत्त्वेभ्यः सर्वशास्त्रार्थादेशको गुरुरुच्यते ॥
अर्थ – धर्म के जानकार, धर्म के अनुसार आचरण करने वाले, धर्म परायण और सभी शास्त्रों में से तत्वों का ज्ञान देने वाले गुरु होते हैं।
7.
निवर्तयत्यन्यजनं प्रमादतः स्वयं च निष्पापपथे प्रवर्तते।
गुणाति तत्त्वं हितमिच्छुरंगिनाम् शिवार्थिनां यः स गुरु र्निगद्यते।।
अर्थ – गुरु वह होते हैं जो शिष्य को बुरे रास्तों पर जाने से रोकते हैं, खुद हमेशा निष्पाप रास्ते पर चलते हैं, शिष्यों के हित और कल्याण की कामना करते हैं।
8.
किमत्र बहुनोक्तेन शास्त्रकोटि शतेन च।
दुर्लभा चित्त विश्रान्तिः विना गुरुकृपां परम्।।
अर्थ – बहुत ज्यादा कहने से भी क्या लाभ है, करोड़ों शास्त्रों से भी क्या लाभ, मन की शांति गुरु के ज्ञान के बिना मिलना दुर्लभ है।
9.
प्रेरकः सूचकश्वैव वाचको दर्शकस्तथा।
शिक्षको बोधकश्चैव षडेते गुरवः स्मृताः।।
अर्थ – हमें प्रेरणा देने वाले, सूचना देने वाले, सत्य बताने वाले, रास्ता बताने वाले, शिक्षा देने वाले और ज्ञान कराने वाले, ये सभी गुरु समान होते हैं। इनका आदर करना चाहिए।
10.
गुकारस्त्वन्धकारस्तु रुकार स्तेज उच्यते।
अन्धकार निरोधत्वात् गुरुरित्यभिधीयते।।
अर्थ – गुरु में गु शब्द यानी अंधकार और रु शब्द यानी तेज। जो अज्ञान रूपी अंधकार को अपने ज्ञान के प्रकाश से दूर करता है, वही गुरु होता है।