अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव की सरगर्मियां तेज हो गई हैं। रिपब्लिकन पार्टी में पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प को भारतवंशी विवेक गणपति रामास्वामी (38 साल) कड़ी टक्कर दे रहे हैं। पार्टी में उम्मीदवारी की दौड़ में दूसरे नंबर पर चल रहे रामास्वामी पहले हिंदू उम्मीदवार हैं। उन्हें अपनी हिंदू आस्था और पहचान के बारे में गर्व है।
रामास्वामी ने अपने बेहद व्यस्त कार्यक्रम में से समय निकालकर भारत-अमेरिका संबंध, बदलते वर्ल्ड ऑर्डर, प्रवासियों और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बारे में बातचीत की। पेश है भास्कर से उनसे बातचीत के प्रमुख अंश..
सवाल 1. आप अपने चुनाव प्रचार अभियान में हिंदू धर्म को फोकस में क्यों रखते हैं?
मैं हिंदू धर्म को मानता हूं। यह मुझे मेरे परिवार से विरासत में मिला है। अमेरिका यहूदी-ईसाई धर्म के मूल्यों पर स्थापित हुआ है। हिंदू धर्म की ही तरह यहूदी-ईसाई धर्म में भी त्याग, निष्काम कर्म और विधि का विधान जैसी शिक्षाएं हैं। हिंदू धर्म के अनुसार ईश्वर आपके भीतर ही है और ईसाई धर्म के अनुसार आपको ईश्वर ने अपनी ही छवि में बनाया है।
एक हिंदू होने के नाते मैं अन्य नेताओं के मुकाबले दूसरों की धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकारों की बेहतर ढंग से रक्षा कर सकता हूं। मेरा उद्देश्य अमेरिकी समाज में परिवार, आस्था और देशभक्ति के मूल्यों को सहज करना है। अमेरिकी समाज इन मूल्यों को खोता जा रहा है।
अमेरिका में असल समस्या विभिन्न धर्मों में नहीं बल्कि परंपरागत रूप से धर्म को मानने वालों और धर्मनिरपेक्षता (सेक्युलरिज्म) को धर्म के रूप में मानने वालों के बीच में है। सेक्युलरिज्म के तौर पर आज वोक्जिम (उदारवाद), ग्लोबलिज्म, ट्रांसजेंडरिज्म और यहां तक कि कोविडिज्म को मानने वाले लोग हो गए हैं।
अमेरिका में दिक्कत तब पैदा होती है जब धर्मनिरपेक्षता के नाम पर इन अलग-अलग वाद और विचारधाराओं को मानने वाले लोग इनको ही धर्म के रूप में अपना लेते हैं और फिर अन्य परंपरागत तथा स्थापित धर्मों के अस्तित्व को ही मानने से इनकार करते हैं।