छत्तीसगढ़ के किसानों को टमाटर नहीं फेंकने होंगे:दुर्ग में लगेगा देश का तीसरा ऐसा प्लांट… जो हर सब्जी-फलों को 6 से 8 महीना

Acn18.com/छत्तीसगढ़ में टमाटर अभी 120 से 150 रुपए किलो चल रहा है, लेकिन अक्टूबर से मार्च के बीच हर साल दो बार ऐसे मौके आते हैं, जब किसान भाव नहीं मिलने से टमाटर फेंकने या मुफ्त बांटने पर विवश हो जाते हैं। पिछले दो दशक से प्रदेश में टमाटरों को प्रिजर्व करने की सरकारों की कोशिशें अब तक नाकाम रही हैं, लेकिन अब दुर्ग के मर्रा में केंद्र सरकार ऐसा प्लांट लगाने जा रही है, जिसमें 15 सेकंड तक गामा किरणों के इस्तेमाल से सब्जियां-फल, अनाज, मसाले और दुग्ध उत्पाद तक 6 से 8 महीने रखने लायक यानी प्रिजर्व किए जा सकेंगे।

भाभा एटॉमिक सेंटर (बार्क) की इस तकनीक से यहां सरकारी अंडरग्राउंड फूड इरेडिएटर प्लांट लगेगा। यह अहमदाबाद और बेंगलुरू के बाद देश में तीसरा होगा। बीज निगम को इस प्लांट के लिए नोडल एजेंसी बनाया गया है। 5 एकड़ जमीन अलॉट होने के बाद इसका टेंडर जारी कर दिया गया। प्लांट 2 साल में शुरू हो जाएगा। छत्तीसगढ़ चावल के बाद टमाटर की बंपर पैदावार वाला राज्य है। हर साल अक्टूबर से मार्च के बीच रोजाना 150 से 250 टन तक टमाटर खेतों से निकल रहा है।

रेडिएशन मैथड से सब्जी-फल प्रिजर्व करने के 3 फायदे

1. स्टोरेज : फल, सब्जी, अनाज, मसाले, दुग्ध, वेटनरी उत्पाद का लंबे समय तक भंडारण संभव। 2. कम खर्च: प्लांट से प्रिजर्व उत्पाद को किसान किसान अपने घर-गोदाम रखेंगे, जिससे खर्च बचेगा। 3. स्टोरेज: प्रिजर्व सब्जियों को बेचने के लिए किसानों को वक्त मिलेगा। इससे निर्यात भी आसान होगा।

ऑफ सीजन में भी रेट पर काबू
प्रदेश में साल में 2-3 बार फल, सब्जी और अनाज के दाम आसमान छूते हैं। क्योंकि मांग व आपूर्ति में अंतर हो जाता है। आवश्यकता से अतिरिक्त फल, सब्जी और अनाज को प्रिजर्व करके रखने से इन महंगे दिनों में सप्लाई की कमी इनसे पूरी हो सकती है। दाम काबू में रहेंगे। इंदिरा गांधी कृषि विवि के विशेषज्ञ, बीज निगम अफसर तथा बार्क का मानना है कि इस नई तकनीक से प्रति किसानों को जागरुक किया जाएगा।

खराब होना बंद, कीड़े भी नहीं लगेंगे
छत्तीसगढ़ में 38 लाख कृषक परिवार हैं, जिनमें 80 प्रतिशत लघु और सीमांत श्रेणी के हैं। धान, सोयाबीन, उड़द, अरहर, चना, मक्का, मूंग, और तिवरा प्रमुख फसलें हैं। कुछ साल से मिलेट्स की पैदावार और मांग दोनों बढ़ी हैं। इंदिरा गांधी कृषि विवि के प्रोफेसर गजेंद्र चंद्राकर के मुताबिक फूड रेडिएशन मैथड से कृषि उत्पादों की शेल्फ लाइफ बढ़ती है। सड़ने-गलने, फफूंद और कीड़े लगने की आशंका नहीं रहती।
खाद्यान्न के टेस्ट पर असर नहीं पड़ता और कोल्ड स्टोरेज की आवश्यकता कम हो जाती है।

विशेषज्ञों ने बताया-15 से 45 पैसे किलो में संरक्षित
भास्कर ने देश में संचालित फूड इरेडिएटर प्लांट को लेकर जानकारी जुटाई। विशेषज्ञों ने बताया कि फूड रेडिएशन मैथड से खाद्यान को प्रिजर्व करने का खर्च प्रति किलो 15 से 45 पैसे तक बैठता है। यह उचित भंडारण न होने से खराब हो रहे खाद्यान के नुकसान की तुलना में बहुत कम है। दूसरी तरफ, अगर अभी कहीं भी निर्यात करना है तो खाद्य सामग्री का रेडिएशन (गामा किरणों) सर्टिफाइड होना जरूरी है।

खाद्यान्न से नमी खत्म करने की तकनीक
कोबाल्ट-60 गामा किरणें सब्जी-अनाज की नमी खत्म कर देती हैं। इसलिए वह खराब नहीं होते। बार्क की इस टेक्नोलॉजी में रेडिएशन का इस्तेमाल न सिर्फ फल-सब्जियों को सुरक्षित रखने, बल्कि अनाज की नमी को खत्म करने के लिए भी किया जाने लगा है। बीज निगम में संयुक्त संचालक आरके कश्यप और मंडल सदस्य जालम सिंह पटेल ने बताया कि फूड इरेडिएटर प्लांट के शुरू होते ही किसानों के उत्पाद की मार्केट वैल्यू बढ़ेगी। राज्य की आय बढ़ेगी।​​​​​​​