Acn18.com/आज सावन का पहला सोमवार है। देशभर में कांवड़ यात्राएं निकल रही हैं। शिवलिंग का दुग्ध, जल और पंचामृत से अभिषेक किया जा रहा है। फूल-धतूरों से श्रृंगार किया जा रहा है। घट-घट आस्था का ज्वार उमड़ रहा है।
ऐसे में हम आपको दर्शन कराते हैं, ऐसे शिवलिंग के, जिसका निर्माण महाराणा प्रताप के पूर्वज महाराणा कुंभा ने कराया। शिव के भक्त महाराणा कुंभा सावन के सोमवार को इस मंदिर में शिवलिंग के सामने तांडव नृत्व भी किया करते थे।
ब्लैक टचस्टोन यानी कसौटी के पत्थर से बना यह शिवलिंग है राजसमंद जिले के कुंभलगढ़ फोर्ट में नीलकंठ महादेव मंदिर में।
करीब 600 साल पहले 1468 ईसवी में नीलकंठ महादेव मंदिर का निर्माण महाराणा कुंभा ने कुंभलगढ़ फोर्ट में कराया था। खासतौर से विशाल शिवलिंग कसौटी के पत्थर से बनवाया।
कसौटी के पत्थर पर सोने की परख की जाती है। यह बेशकीमती पत्थर होता है। इसलिए नीलकंठ महादेव मंदिर बेहद खास और अन्य शिव मंदिरों से अलग है।
राजस्थान का दक्षिण-पूर्वी जिला राजसमंद जो उदयपुर से सटा है और दुनिया की सबसे ऊंची शिव प्रतिमा विश्वास स्वरूपम के कारण अब विश्व में पहचान कायम कर रहा है। यहीं नाथद्वारा में श्रीनाथजी मंदिर और एकलिंग महादेव का प्राचीन शिव मंदिर भी है।
धार्मिक स्थलों के लिए पहचान रखने वाले राजसमंद में कुंभलगढ़ फोर्ट में कसौटी के काले पत्थर से बना सवा 4 फीट लंबा और सवा 2 फीट गोलाई वाला यह शिवलिंग खास है। नीलकंठ महादेव मंदिर में पूरे सावन श्रद्धालुओं की कतारें लगती हैं।
प्राचीन स्तंभ और शिखर शैली में यह मंदिर एक मेहराब (प्लेटफार्म) पर बना है। पत्थर पर किया गया बारीक काम स्थापत्य का बेजोड़ नमूना है। मंदिर के गर्भगृह में नीलकंठ महादेव हैं तो सामने खुले जगमोहन में द्वारपाल नंदी की बड़ी प्रतिमा है।
नंदी महादेव शिव के वाहन हैं, भक्त नंदी की पूजा और दर्शन के बिना शिव की आराधना को अधूरा माना जाता है।
शिव को प्रसन्न करने के लिए करते थे तांडव नृत्य
मंदिर के पुजारी अर्जुन आमेटा ने बताया कि महाराणा कुंभा करीब 7 फीट के थे। वे श्रावण में वे बैठकर नीलकंठ महादेव की पूजा आराधना किया करते थे। पूजा के लिए बैठे हुए उनकी आंखें शिवलिंग के समानांतर होती थीं।
महाराणा कुंभा शिव को प्रसन्न करने के लिए तांडव नृत्य भी किया करते थे।
उनके बाद मेवाड़ की रियासत को जितने भी महाराणाओं ने चलाया, उन्होंने इस मंदिर में शिव आराधना को जारी रखा। इस तरह 600 साल से लगातार श्रावण में इस मंदिर में पूजा होती आ रही है।
150 साल पहले आमेटा परिवार को मिली पूजा की जिम्मेदारी
महाराणा प्रताप के वंशज महाराणा फतेह सिंह ने नीलकंठ महादेव मंदिर में पूजा की जिम्मेदारी करीब 150 साल पहले आमेटा परिवार को सौंपी थी। वर्तमान में आमेटा परिवार के सदस्य अर्जुन आमेटा मंदिर मंदिर में नियमित पूजा करते हैं।
अर्जुन ने बताया कि परिवार दुर्ग पर ही रहता है। उनके पूर्वज इस मंदिर में पूजा करते रहे हैं।
नीलकंठ महादेव मंदिर में महाराणा कुंभा के वंशज महाराणा सांगा ने जीर्णोद्धार कराया और शिलालेख भी अंकित कराया।
पुजारी अर्जुन आमेटा ने बताया कि वे हर रोज नीलकंठ महादेव मंदिर में सूर्योदय से सूर्यास्त तक सेवा-पूजा करते हैं। इससे पहले उनके पिता और दादा भी इसी मंदिर में पूजा किया करते थे।
ग्रीक शिल्प की तर्ज पर मन्दिर का स्ट्रक्चर
मंदिर के गर्भगृह की कलात्मकता अद्भुत है। नीलकंठ महादेव मंदिर का निर्माण वास्तु शास्त्र और ग्रीक शिल्प कला के तौर पर किया गया। मंदिर परिसर में ऊंचे- ऊंचे स्तम्भों वाले बरामदे हैं।
मंदिर के भवन में कुल 36 कलात्मक स्तंभों का निर्माण कराया गया। मंदिर का स्ट्रक्चर भी यहां आने वाले टूरिस्ट और श्रद्धालुओं को काफी प्रभावित करता है।
नीलकंठ मंदिर के ऊपरी भाग में 6 शिखर बने हुए हैं। जिसमें गर्भगृह के ऊपर वाला शिखर सबसे बड़ा है। गर्भगृह की छत के अंदरूनी हिस्से में कमल की डिजाइन बनी हुई है। मंदिर की ऊंचाई धरातल से 41 फीट के करीब है।
मंडोर विजय कर लाए थे कुम्भा गणेश प्रतिमा
महाराणा कुंभा भगवान गणेश को भी अपना आराध्य देव मानते थे। कुंभलगढ दुर्ग के गेट को पार करते ही अंदर की तरफ गणेशजी की प्रतिमा बनी है। महाराणा कुंभा ने 1443 ईसवी में मंडोर विजय की थी। गणेश प्रतिमा वे वहीं से लेकर आए थे और यहां स्थापित की थी।
यह प्रतिमा दक्षिण मुखी है। ऐसा माना जाता है कि यहां गणेश कार्य सिद्धी करते हैं। यहां बैठे हुए गणेशजी की प्रतिमा है।
कुंभलगढ दुर्ग के अंदर हैं 360 मंदिर
नीलकंठ महादेव मंदिर के अलावा कुंभलगढ़ दुर्ग में 360 मंदिर हैं, जिनमें महाराणा कुंभा के समय से 300 मंदिर तो केवल जैन समाज के हैं।
इसके अलावा सभी धर्मों के 60 मंदिर यहां पर बने हुए हैं। वर्तमान में कई मंदिरों के अवशेष यहां पर हैं, जिन्हें देखने के लिए दुनियाभर पर्यटक से आते हैं।
कुम्भलगढ़ किले में नीलकंठ महादेव मंदिर कहां स्थित है?
कुंभलगढ़ किले के पहले द्वार में प्रवेश करते ही बायीं ओर टिकट काउंटर है। उसके ठीक बाद, कुंभलगढ़ किले के दूसरे द्वार में प्रवेश करना होता है। जैसे ही अराईट पोल से प्रवेश करते हैं, तो बायीं ओर एक छोटा गणेश मंदिर और दाईं ओर खुला मैदान दिखाई देता है।
इस खुले मैदान में वेद मंदिर दिखाई देता है और नीलकंठ महादेव मंदिर कुंभलगढ़ किले के अराईट पोल से लगभग 150-200 मीटर की दूरी पर है।
आमतौर पर लोग पहले नीलकंठ महादेव मंदिर और फिर वेदी मंदिर जाते हैं। किले की दीवार तक सीढ़ियां किले के शीर्ष तक जाती हैं, जहां बादल महल है।
भक्त अनोप सिंह चुंडावत ने बताया कि वह हर साल महाशिवरात्रि और सावन में यहां पूजा करने आते हैं। इसके साथ ही मन्दिर में अभिषेक भी करवा चुके हैं।
व्यापारी सतीश गुप्ता ने बताया कि वे पिछले 15 साल से रोजाना नीलकंठ महादेव मंदिर में दर्शन करने आते हैं। सावन में भी हर सोमवार यहां पर पूजा-आराधना करते हैं।