ACN18.COM कवर्धा/शहरों में आम लोग प्यास लगने पर ठंडा साफ पानी पी सकते हैं, रुपए खर्चकर किसी भी फ्लेवर में ठंडी कोल्ड्रिंक भी। मगर छत्तीसगढ़ के कवर्धा जिले में कुछ ग्रामीण आदिवासियों के लिए प्यास बुझाना न तो इतना आसान न ही इतने स्वादिष्ट विकल्प वाला। कवर्धा जिला मैकल पहाड़ से घिरा हुआ है। इन्हीं के बीच पंडरिया ब्लॉक का देवानपटपर गांव पहाड़ी पर करीब 3 कीलोमीटर (लगभग 10 हजार फीट) की ऊंचाई पर बसा है। आईये जानते है कि इस भीषण गर्मी में कैसे बीत रही है इन पहाड़ों पर बसने वाले बैगा जनजाति के आदिवासियों की जिंदगी।
देवानपटपर गांव के नाम में देवान का मतलब है बैगा आदिवासियों के देवता और पटपर से मतलब है एक बराबर सतह से। इस गांव तक पहुंचने के लिए एक सड़क लगभग 10 साल पहले बनी थी अब उस जगह पर मिट्टी और गिट्टी का ढेर है । किनारे पर विशाल, साजा और चार के पेड़ों की घाटी है आगर नदी इन्हीं के बीच से पत्थरी सतह पर बहती है, फिलहाल ये नदी भी सूख हुई थी। ऊपर करीब 3 किलोमीटर तक की चढ़ाई तीखे पहाड़ी किनारे पर बने खतरनाक मोड़ से भरी थी।
पहाड़ के ऊपर पहुंचते ही, गांव का नाम देवानपटपर लिखा एक बोर्ड और कुछ बैगा आदिवासी ग्रामीण नजर आए। अपनी मुश्किल जिंदगी से तंग ग्रामीण धन सिंह ने कहा- यहां पानी की ही समस्या से हम रोज परेशान हैं। कई बरस बीत गई नेता और अफसरों को ये कहते-सुनते कि हमारे गांव में साफ पानी देंगे देंगे, मगर आज तक इन आंखों ने साफ पानी नहीं देखा।
दूसरे ग्रामीण सोन सिंह ने इशारे से बताया कि पहाड़ों के नीचे जाकर एक गड्ढे (झिरिया) से जहां पानी रिसकर जमा होता है, वहीं से लाते हैं । दो तीन मिनट तक पथरीले रास्ते से नीचे उतरते रहे और ग्रामीण यही कहते रहे, हमारे गांव में पीने के पानी की बहुत समस्या है , इसे दूर करवा दिजिए और हमें कुछ नहीं चाहिए।
नीचे उतरने के बाद पहाड़ी के एक कोने में गड्ढे में जमा पानी में महिलाएं बर्तन धो रही थीं। पानी के इसी स्रोत से हाथ से मटमैला पानी हटाकर ग्रामीण इसे पीने लगे। धन सिंह ने बताया कि सालों से वो यही गंदा पानी पी रहे हैं, क्या करें जिंदगी तो गुजारनी है। सोन सिंह ने बताया कि कुछ ही दिन में ये झिरिया सूख जाएगा। फिर 3 किलोमीटर और ऊपर पहाड़ पर चढ़कर एक ऐसे ही गड्ढे से पानी लाएंगे। बारिश के दिनों में ये गढ्डे डूब जाते हैं, फिर पहाड़ से रिसता हुआ पानी हम पीते हैं। हमें सपने में अपने घर में लगा नल दिखता है, जिसमें से साफ पानी आए। हमारी बस यही ख्वाहिश है और कुछ नहीं चाहिए।
जंगल में मौजूद चार (चिरौंजी), महुआ, आम, इमली को बीनकर ये ग्रामीण इसे स्थानीय बाजार में बेचते हैं। इसी से इनकी रोजी रोटी चलती है। जंगली और पहाड़ी इलाका होने की वजह से ऐसा भी नहीं है कि बड़े-बड़े खेतों में किसानी कर पाएं। पेड़ों पर ही इनकी जिंदगी आश्रित है। गांव में लकड़ियों और मिट्टी के छोटे घर हैं। देवानपटपर पर 300 से ज्यादा बैगा आदिवासी रहते हैं। पूरे कवर्धा जिले में इसी तरह हजारों आदिवासी ग्रामीण पहाड़ों में रहते हैं।
विधायक बोलीं- भेजेंगे मदद
कवर्धा जिले के पंडरिया विधानसभा की विधायक ममता चंद्राकर ने इस मुद्दे पर बात की। उन्होंने बताया कि जिले के कई पहाड़ी और जंगली इलाकों में पीने के पानी की समस्या है। मैंने इस संबंध में PHE विभाग को खत लिखा है। देवानपटपर इलाके में हम ऊपर तक टैंकर भेजेंगे ताकि ग्रामीणों को राहत मिले। गर्मी के दिनों में और भी मुश्किल बढ़ जाती है। ऐसे और भी हिस्सों में रह रहे लोगों की दिक्कतों को ध्यान में रखकर प्रशासन से टैंकर का इंतजाम कराऐंगे, हम उन हिस्सों में जल्द ही मदद भेजेंगे।