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World Water Day 2025: असम के बाढ़ प्रभावित गांवों में मोबाइल वॉटर ट्रीटमेंट यूनिट से मिलेगी राहत

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जल ही जीवन है”, “जल है तो कल है”, ये कुछ ऐसी कहावतें हैं, जो जीवन में पानी की अहमियत को समझाते हैं। धरती पर जीवन जीने के लिए पानी बेहद जरूरी है और इसलिए पानी की अहमियत को समझाने के लिए हर साल 22 मार्च को विश्व जल दिवस मनाया जाता है। हालांकि, यह दिन हमें यह भी याद दिलाता है कि क्लाइमेट चेंज अब कोई दूर का खतरा नहीं रह गया है। खासकर भारत में शहरों और कस्बों से दूर रहने वाले लोगों के लिए यह रोज की एक समस्या बन चुकी है।

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ऐसा ही कुछ बाढ़-ग्रस्त तुकरग्राम के साथ हर साल होता है, जो असम की बराक घाटी में 32 घरों की एक बस्ती है। यह बस्ती हर साल बाढ़ के कारण महीनों तक एक अलग-थलग द्वीप बन जाती है। सड़क, बिजली या सरकारी पानी की पाइपलाइन न होने के कारण, यहां रहने वाले लोग लंबे समय से दूषित झील के पानी पर निर्भर हैं, जिससे डायरिया, स्किन इन्फेक्शन और अन्य पानी से होने वाली बीमारियां अक्सर फैलती रहती हैं।

मुश्किल हो गया था जीवन

हालात ऐसे हैं कि महिलाएं और बच्चे पानी इकट्ठा करने में घंटों बिता देते हैं, जिससे उनके स्वास्थ्य और जीवन पर असर पड़ता है। इन हालातों के चलते पानी से होने वाली बीमारियां, आर्थिक तंगी, शिक्षा और आजीविका के सीमित अवसर पैदा हुए हैं। हालांकि, एक मोबाइल वॉटर ट्रीटमेंट यूनिट साफ पानी उपलब्ध कराकर तुकरग्राम में जीवन बदल रही है। एक समुदाय द्वारा संचालित यह पहल एक सरल लेकिन बदलाव लाने वाला विचार है।

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मोबाइल वॉटर ट्रीटमेंट यूनिट ने बदली काया

मोबाइल वॉटर ट्रीटमेंट यूनिट साफ पानी से कहीं ज्यादा है। यह जलवायु अनुकूलन, आपदा प्रबंधन और लिंग-समावेशी विकास के लिए एक मॉडल है। खास बात यह है कि महिलाएं इस अभियान का नेतृत्व कर रही हैं, जबकि स्थानीय शासन इसकी सस्टेनिबिलिटी सुनिश्चित कर रही है। परियोजना की सफलता अन्य बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों के लिए एक खाका है, क्योंकि इस स्केलेबल समाधान में असम और उसके बाहर बाढ़ प्रभावित समुदायों को बदलने की क्षमता है। असम सरकार, यूनिसेफ इंडिया और स्थानीय भागीदारों के समर्थन वाली इस परियोजना की पहल बीमारियों को कम कर रही है, महिलाओं को सशक्त बना रही है और जलवायु रेसिलिएंस के लिए एक स्केलेबल मॉडल पेश कर रही है।

पश्चिम कुमारपाड़ा भी बाढ़ का मारा

इसी तरह, असम के कछार जिले के एक गांव पश्चिम कुमारपाड़ा में, जलवायु परिवर्तन अक्सर अनदेखे तरीकों से जीवन को नया रूप दे रहा है। इस क्षेत्र में बराक नदी लाइफलाइन और खतरा दोनों है। हर साल आने वाली बाढ़ और नदी के किनारों के कटाव की वजह से परिवारों को विस्थापित होना पड़ता है। यह घरों को नष्ट करता है और लोगों की आजीविका को छीन लेता है। यहां भी यूनिसेफ के समर्थन वाले मल्टी-पार्टनर इनवेंशन्स यहां के समुदायों को अपने भविष्य को बेहतर करने और दोबारा प्राप्त करने के लिए सशक्त बना रहे हैं।

रंग ला रही मेहनत

यह इनवेंशन्स साबित कर रहे हैं कि स्थानीयकृत, समुदाय-नेतृत्व वाले समाधान स्थायी लचीलापन और सिस्टमेटिक बदलाव ला सकते हैं। बाढ़-रोधी शौचालय, हाइजीन किट्स-सैनिटरी पैड और कम्युनिटी ट्रेनिंग प्रोग्राम जैसे जमीनी स्तर के प्रयास लोकल कम्युनिटी के लिए सम्मान, सुरक्षा और आशा बहाल कर रहे हैं। असम में बाढ़, फूड इनसिक्योरिटी और बीमारी जैसे जलवायु से जुड़े खतरे बच्चों के स्वास्थ्य और शिक्षा को खतरे में डालते हैं। साल 2050 तक, असम में तापमान 1.7-2.0 डिग्री सेल्सियस बढ़ने का अनुमान है, जो उम्र, स्वास्थ्य और सामाजिक-आर्थिक स्थिति से जुड़ी कमजोरियों को बढ़ाएगा।

असम का डिजास्टर रिस्क रिडक्शन रोडमैप 2030, जिसे यूनिसेफ का सपोर्ट भी हासिल है, डिजास्टर मैनेजमेंट और रिस्पॉन्स सिस्टम को मजबूत कर रहा है। इसके लिए उनकी कई सारी पहल जैसे चाइल्ड फ्रेंडली स्पेस, द स्कूल-इन-ए-बॉक्स प्रोग्राम, क्लाइमेट रेजिलिएंट वॉश इन्फ्रास्ट्रचर और मेंटल हेल्थ ट्रेनिंग काफी कारगर साबित हो रही है।

हालात बिगाड़ सकती है क्लाइमेट कंडीशन

स्टेट ऑफ द वर्ल्ड्स चिल्ड्रन 2024 में साल 2050 तक, क्लाइमेंट क्राइसिस, डेमेग्राफिक शिफ्ट्स और तबाह करनेवाला प्रौद्योगिकियों के कारण बच्चों को होने वाली चुनौतियों को हाइलाइट किया है। इसके मुताबिक साल 2050 के दशक तक, हीटवेव जैसे एक्सट्रीम क्लाइमेट कंडीशन के संपर्क में आने वाले बच्चों की संख्या आठ गुना बढ़ जाएगी, जिसका खामियाजा कम आय वाले देशों को भुगतना पड़ेगा।

क्या कहता है स्थानीय प्रशासन

इस बारे में कछार जिला जिले के डीडीएमए के परियोजना अधिकारी शमीम लस्कर का कहना है कि मोबाइल वॉटर ट्रीटमेंट यूनिट तुकरग्राम के लिए एक गेम-चेंजर रही है, जो विशेष रूप से बाढ़ के दौरान सुरक्षित पेयजल सुनिश्चित करती है। डीडीएमए ने जरूरतों का आकलन करने से लेकर संसाधन जुटाने और हितधारकों के साथ समन्वय करने तक में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इसे बनाए रखने के लिए, हम स्वयंसेवकों को प्रशिक्षित करने, साझेदारी बनाने और भविष्य की तैनाती के लिए समर्पित धन सुरक्षित करने पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं।

उन्होंने आगे कहा कि “दूरस्थ, बाढ़-ग्रस्त क्षेत्रों में स्थायी जल और स्वच्छता समाधानों को लागू करना आसान नहीं है। पहाड़ी इलाके पहुंच को मुश्किल बनाते हैं। फंडिंग एएसडीएमए और राजस्व विभाग पर निर्भर करती है और बुनियादी ढांचे की कमी बनी रहती है। सामुदायिक जागरूकता बढ़ाना और विभिन्न हितधारकों के बीच समन्वय स्थापित करना चुनौती को बढ़ाता है, लेकिन हम समाधान खोजने के लिए तत्पर हैं।”

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