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देखिए वीडियो : बस्तर दशहरा..फूल रथ से नगर परिक्रमा :नवरात्रि के दूसरे दिन 40 फीट लंबे मां दंतेश्वरी के रथ को सैकड़ों लोगों ने खींचा

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acn18.com / 75 दिनों तक चलने वाले विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा में अब रथ की नगर परिक्रमा करवाने की रस्में शुरू हो चुकी है। शारदीय नवरात्र के दूसरे दिन आराध्य देवी मां दंतेश्वरी का छत्र 4 पहियों वाले फूल रथ पर रखा गया, फिर इस रथ को विभिन्न समुदाय के लोगों ने खींचकर सालों से चली आ रही परंपरा निभाई। बताया जा रहा है कि यह रथ करीब 40 फीट लंबा, 20 फीट चौड़ा और करीब 30 फीट ऊंचा है। इस रथ को खींचने के लिए आदिवासी समुदाय के सैकड़ों लोग इस बार भी अपनी मर्जी से पहुंचे हैं। यह रथ फूलों से सजा होता है, इसलिए इसे फूल रथ कहा जाता है।

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सैकड़ों लोग शामिल हुए।
सैकड़ों लोग शामिल हुए।

जगदलपुर के मां दंतेश्वरी मंदिर के प्रधान पुजारी कृष्ण कुमार ने बताया कि, शारदीय नवरात्र के दूसरे दिन से रथ परिक्रमा करवाने की परंपरा है। शुरुवाती 6 दिनों तक चार पहिए वाले फूल रथ की नगर परिक्रमा करवाई जाएगी। मंगलवार को मां दंतेश्वरी के छत्र को रथ पर विराजित किया गया। फिर सैकड़ों लोगों ने रथ को खींच सालों से चली आ रही परंपरा निभाई। उन्होंने बताया कि, हर एक साल के अंतराल में 4 और 8 पहिए वाले फूल और विजय रथ निर्माण करने का नियम बनाया गया है। यह नियम रियासत काल से चला आ रहा है।

रथ खींचते लोग
रथ खींचते लोग

यह है मान्यता

दरसअल, तत्कालीन राजा पुरुषोत्तम देव भगवान जगन्नाथ के भक्त थे। बस्तर इतिहास के अनुसार वर्ष 1408 के कुछ समय बाद राजा पुरुषोत्तम देव ने जगन्नाथपुरी की पदयात्रा की थी। वहां भगवान जगन्नााथ की कृपा से उन्हें रथपति की उपाधि दी गई थी। उपाधि के साथ उन्हें 16 पहियों वाला विशाल रथ भी भेंट किया गया था। उन दिनों बस्तर के किसी भी इलाके की सड़कों में इन्हें चलाना मुश्किल था।

जगदलपुर में स्थित मां दंतेश्वरी मंदिर।
जगदलपुर में स्थित मां दंतेश्वरी मंदिर।

तीन हिस्सों में बांटा गया था रथ

16 पहियों वाले विशाल रथ को तीन हिस्सों में बांटा गया था। चार पहियों वाला रथ भगवान जगन्नााथ के लिए बनाया गया। वहीं बस्तर दशहरा के लिए दो रथ बनाए गए। जिनमें से एक फूल रथ और दूसरा विजय रथ है। फूलरथ तिथि अनुसार 6 दिनों तक चलता है। इसमें चार पहिए होते हैं, वहीं दशहरा और दूसरे दिन चलने वाले 8 पहिए के विशाल रथ को विजय रथ कहते हैं। इस रथ संचलन को स्थानीय बोली में भीतर रैनी और बाहर रैनी भी कहते हैं।

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