आनंद भगवान बुद्ध के आदेशानुसार तालाब के पास पानी लेने के लिए पहुंचता है, वहां देखता है कि तालाब का पानी बहुत ही गंदा हो रखा है, क्योंकि उसे जानवरों ने गंदा कर दिया है. गंदे पानी को देखकर आनंद खाली पात्र लेकर लौटता है और बोलता है तथागत इस तालाब का पानी पीने लायक नहीं है, क्योंकि जानवरों ने इस को गंदा कर दिया है.
कुछ समय इंतजार करने के बाद भगवान बुद्ध पुनः आनंद को बोलते हैं कि अब फिर से जाकर पानी लेकर आ जाओ. आनंद आज्ञा अनुसार तालाब के किनारे जाकर देखता है कि पानी अभी भी गंदा लग रहा है जो कि पीने लायक नहीं है, फिर लौटकर आ जाता है. कुछ समय बाद भगवान आनंद फिर से पानी लेने के लिए भेजते हैं. अब आनंद देखता है कि तालाब का पानी अब साफ सुथरा दिखाई दे रहा है. आनंद पानी को पात्र में भरकर तथागत को पीने के लिए देते हैं. तथागत पानी को देखकर आनंद से पूछते हैं की क्या यह वही पानी है, जिसको तुमने पहली बार जाकर के तालाब में देखा था. आनंद कहता है हां तथागत पानी तो वही है, लेकिन उस समय यह बहुत ही गंदा था और पीने लायक भी नहीं था.
तथागत पूछते हैं तो अब यह साफ कैसे हो गया ? आनंद जवाब देते हैं जो गंदगी पानी के साथ मिली हुई थी वह अब नीचे बैठ गई है, जिससे यह पानी साफ सुथरा हो गया है.
इसी बात पर तथागत आनंद को कहते हैं ऐसे ही जब कोई व्यक्ति क्रोध से भरा रहता है उस समय उसके मस्तिष्क में एक तरह की गंदगी जमा हो जाती है और उस समय वह व्यक्ति किसी भी प्रकार का कोई निर्णय लेता है तो वह गलत ही होता है या यूं कह सकते हैं कि उसके सोचने की क्षमता कम हो जाती है. कई बार इस क्रोध में वह कोई अपराध भी घटित कर देता है, लेकिन यदि वह व्यक्ति कुछ समय के लिए चुप हो जाए या कोई बात ना करें, कोई काम ना करें तो उसका दिमाग शांत हो जाता है.
जैसे कि उस गंदे पानी में मिली हुई गंदगी कुछ समय के बाद नीचे बैठ जाती है और पानी साफ हो जाता है. वैसे ही दिमाग को कुछ समय देने पर दिमाग में फैली हुई गंदगी यानी क्रोध/ आक्रोश शांत हो जाता है और वह व्यक्ति कोई भी गलत निर्णय लेने से बच जाता है. कहने का मतलब यह है कि यदि क्रोध आए तो कुछ समय के लिए अपने दिमाग को समय दो एवं शांत हो जाओ. किसी से कोई बात ना करें. ऐसा करके हम ना तो किसी का नुक़सान कर पाएंगे और ना ही अपना खुद का भी नुक़सान कर पाएंगे.